रूस-यूक्रेन के बीच तनाव बढ़ता ही जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र समेत दुनिया के शांतिप्रिय देशों ने गहरी चिंता व्यक्त की है। भारत ने कहा कि इस मुद्दे को कूटनीतिक संवाद के जरिए ही हल किया जा सकता है। चीन ने भी कहा है कि सभी देशों को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुरूप शांतिपूर्ण तरीकों से विवादों को हल करना चाहिए। दूसरी ओर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के दोनेत्स्क और लुहांस्क गणराज्य को स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता दे दी है। इससे तनाव और बढ़ गया है। उधर अमेरिका और 6 अन्य देशों के अनुरोध पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सोमवार को आपात बैठक बुलाई थी।
युद्ध को टालने के लिए अमेरिका और रूस के राष्ट्रपति के बीच बैठक हो सकती है। लेकिन अमेरिका राष्ट्रपति जो बाइडन का कहना है कि रूस यूक्रेन पर हमला कर सकता है। हालांकि रूस ने यूक्रेन पर हमले की योजना से इनकार किया है। लेकिन रूस चाहता है कि पश्चिमी देश इसकी गारंटी दें कि यूक्रेन समेत पूर्व सोवियत संघ के अन्य देशों को NATO का सदस्य नहीं बनाएगा। इस लड़ाई की जड़ 30 साल पुरानी है। दोनों देश पहले एक ही देश सोवियत संध के हिस्सा थे। वर्ष 1991 में कम्युनिस्ट शासन के खत्म होने के बाद सोवियत संघ का विघटन हो गया। कई नए देश का निर्माण हो गया। उस समय यूक्रेन भी एक नया देश बन गया।
सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस के नए राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने यूक्रेन को एक अलग देश के तौर पर मान्यता दे दी। उस समय रूस ने क्रीमिया को यूक्रेन का हिस्सा बताया था। 2004 में विक्टर यानुकोविच यूक्रेन के नए राष्ट्रपति बने। इन्हें रूस का समर्थक माना जाता था। लेकिन 2008 में विपक्षी नेता विक्टर युशेचेनको ने यूक्रेन को नाटो में शामिल कराने का प्रस्ताव पेश किया। लेकिन रूस नहीं चाहता था कि यूक्रेन नाटो का सदस्य बने।अमेरिका इस प्रस्ताव का समर्थन किया। फिर नाटो ने यूक्रन और जॉर्जिया को शामिल करने का ऐलान किया। इससे नाराज होकर रूस ने जॉर्जिया पर हमला कर दिया।
2010 के चुनाव में विक्टर यानुकोविच एक बार फिर चुनाव जीत गए। उन्होंने यूक्रेन को नाटो में शामिल होने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इससे यूक्रेन को 15 अरब डॉलर के आर्थिक पैकेज का नुकसान हुआ। इससे नाराज लोग यानुकोविच के विरोध में सड़कों पर उतर गए। उधर 2014 में क्रीमिया में जनमत संग्रह कराया गया। 97 प्रतिशत जनता ने रूस में शामिल होने के पक्ष में वोट दिया। उसके बाद क्रीमिया आधिककारिक तौर पर रूस का हिस्सा बन गया। इसके बाद भी दोनों देशों के बीच संघर्ष जारी रहा। 2019 के चुनाव में वोलोदिमीर जेलेंस्की राष्ट्रपति चुने गए। फिर नाटो में शामिल होने की कोशिशें तेज हो गईं। फिर विवाद और बढ़ गया।
रूस ने यूक्रेन की सीमाओं पर तीन ओर करीब 1,50,000 सैनिक तैनात कर लिए हैं जो शीत युद्ध के बाद सबसे बड़ी तैनाती है। वहीं, पश्चिमी देशों के अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन यूक्रेन पर हमले के लिए कोई कारण की तलाश कर रहे हैं, क्योंकि यूक्रेन रूस के साथ आने से मना कर दिया है। रूस ने यूक्रेन में नाटो द्वारा हथियारों की तैनाती रोकने और पूर्वी यूरोप में तैनात बलों को वापस बुलाने की मांग रखी है। हमले के हालात बनने के बावजूद उम्मीद की जा रही है कि कूटनीति इस भीषण संघर्ष को टालने में कामयाब होगी, क्योंकि युद्ध हुआ तो बड़ी संख्या में लोग मारे जाएंगे और बड़े पैमाने पर रूस से मिलने वाली ऊर्जा पर आधारित यूरोप की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचेगा।
यूक्रेन पर रूस के संभावित हमले को टालने के अंतिम प्रयास के तहत अमेरिका और रूस के राष्ट्रपति के बीच बैठक होने की संभावना है। पूर्वी यूक्रेन में संघर्ष वाले क्षेत्र में सोमवार को जारी गोलाबारी के बीच यह संभावना बनी है। वहीं पश्चिमी शक्तियों को इस बात का डर सता रहा है कि इस गोलाबारी से व्यापक स्तर पर युद्ध शुरू हो सकता है। हालांकि, अगर रूस, यूक्रेन पर आक्रमण करता है तो दोनों देशों के बीच यह बैठक रद्द कर दी जाएगी। इस संबंध में अमेरिका पहले से चेतावनी दे रहा है कि रूस ने यूक्रेन पर हमला करने की ठान ली है।