इमरान खान की दिखी लाचारी, बोले- न तो अमेरिका और न ही भारत पाकिस्तान को समझना चाहते हैं

दुनिया
Updated Sep 23, 2019 | 20:30 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

काउंसिल ऑफ फॉरेन मिनिस्टर्स की मीटिंग में इमरान खान ने भारत के साथ रिश्तों, कट्टरपंथ और आतंकवाद पर अपनी बात रखी। लेकिन जिस तरह से उन्होंने दलील दी उसमें उनकी लाचारी साफ नजर आ रही थी।

imran khan
पाकिस्तान के पीएम हैं इमरान खान 
मुख्य बातें
  • काउंसिल ऑफ फॉरेन मिनिस्टर्स में बोले इमरान खान
  • पाकिस्तान की बात सुनने के लिए भारत और अमेरिका तैयार नहीं-इमरान खान
  • 'चुनावी नतीजों के बाद मौजूदा सरकार की पाकिस्तान नीति में हुआ बदलाव'

नई दिल्ली। संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में बैठक के लिए दुनिया के सभी सदस्य देश न्यूयॉर्क में हैं। एक तरफ जहां पीएम नरेंद्र मोदी दुनिया के सामने भारत की नीति को तमाम सारे मुद्दों पर रखेंगे, वहीं इमरान खान पाकिस्तान की नीति से दुनिया को रूबरू कराएंगे। उससे पहले काउंसिल ऑफ फॉरेन रिलेशंस की बैठक में इमरान खान ने कट्टरपंथ, आतंकवाद और भारत के साथ रिश्तों पर खुलकर अपनी बात रखी जिसमें लाचारी नजर आई। 

पाकिस्तान में कट्टरपंथ के बारे में डोनाल्ड ट्रंप की राय पर कहा कि उन्होंने कहा कि ट्रंप इस बात को क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि पाकिस्तान क्यों कट्टरपंथ की राह पर आगे बढ़ा। वो कहते हैं कि 1980 के दशक में अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ जिहाद के लिए पाकिस्तान की मदद ली और यह सिलसिला राष्ट्रपति रीगन के दौर में जारी रहा। अफगानिस्तान की हालात का सामना करने के लिए सैन्य समाधान नहीं हैं। वो कहते हैं कि 2008 में बराक प्रशासन के सामने अपनी बात रखी थी। लेकिन उनको यकीन नहीं हुआ। अफगानिस्तान, किसी भी विदेशी ताकत के खिलाफ इकठ्ठा हुआ। यही नहीं पाकिस्तान में लाखों की संख्या में अफगानी शरणार्थी हैं। हमें इस बात की जानकारी मिली कि ट्रंप प्रशासन ने तालिबान के साथ बातचीत को रोकने का फैसला किया है, यह बहुत बड़ी भूल है। वो इस मुद्दे को ट्रंप के साथ मुलाकात में जरूर उठाएंगे।

तालिबान आज इस बात को मानते हैं कि वो पूरे अफगानिस्तान को अपने नियंत्रण में नहीं ले सकते हैं। इसके साथ ही वो ये भी मानते हैं कि न तो अफगानी सेना भी नियंत्रण स्थापित नहीं कर सकती है। ऐसे में सिर्फ राजनीतिक समाधान ही मसले का हल है और यूएस की फौज बिना किसी समाधान के बाहर नहीं निकल सकती है। 
इमरान खान से पूछा गया कि जब एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को मारा गया तो जांच क्यों नहीं कराई गई। इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हमने जांच की थी। लेकिन वो कहना चाहेंगे कि पाकिस्तान की फौज ने 9/11 के पहले अल कायदा को ट्रेनिंग दी थी और इस वजह से अल कायदा और पाकिस्तान के बीच संबंध स्थापित किया जाता है। लेकिन सेना में ऐसे लोग भी थे जो 9/11 के बाद नीति में बदलाव से सहमत नहीं हुए। 

भारत के साथ संबंध पर कहा कि पड़ोसी देश से रिश्तों को सुधारने के लिए हमने करतारपुर कॉरिडोर को खोला। वो लगातार अफगानिस्तान के राष्ट्रपति घनी के संपर्क में रहते हैं। उन्होंने पीएम मोदी को बताया कि हम नई नीति के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं। हम एक नई शुरुआत चाहते हैं, इसके जवाब में पीएम मोदी ने पूछा क्या वो आश्वस्त है खासतौर से पाक सेना के संदर्भ में इस सवाल के जवाब में कहा कि निश्चित तौर पर।

जब पीएम मोदी ने आतंकवाद के बारे में पूछा तो मेरा जवाब था कि वो आतंकी नेटवर्क को नेस्तनाबूद करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। लेकिन असली समस्या विश्वास की है। दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच पिछले साल मुलाकात होनी थी। लेकिन भारत की तरफ से उस मुलाकात को निरस्त कर दिया गया। हमें ऐसा लगता है कि चुनाव नतीजों के बाद भारत के नजरिए में बड़ा बदलाव आया। 

पुलवामा के बाद उन्होंने भारत से कहा था कि वो पाकिस्तान के हाथ होने का सबूत दे। लेकिन भारत ने हमारे ऊपर बमबारी की। हमने भारत के पायलट को बिना किसी सवाल जवाब के वापस कर दिया। लेकिन भारत ने इसे हमारी कमजोरी समझी। हमने यह पाया कि एफएटीएफ के जरिए भारत, पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट में शामिल करने का दबाव बना रहा है और तब जाकर हमें लगा कि वो एक एजेंडे के तहत काम कर रहे हैं। 

इमरान खान ने कहा कि उन्हें लगता है कि भारत सरकार आरएसएस के एजेंडे पर काम कर रही हैं। समस्या ये है कि जब किसी मुद्दे पर तीसरा देश शामिल होने की कोशिश करता है तो भारत कहता है कि सभी मुद्दे द्विपक्षीय हैं। लेकिन वो पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय बातचीत में शामिल नहीं होना चाहता है। वो इन सभी मुद्दों को संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच से उठाएंगे ताकि यूएन दखल कर सके। 

अगली खबर