नई दिल्ली: भारत ने संयुक्त राष्ट्र (India in UN) में कहा है कि धार्मिक भय (Religiophobia) पर 'दोहरे मानदंड' नहीं हो सकते हैं और इसका मुकाबला करना एक 'चुनिंदा कवायद' नहीं होनी चाहिए जिसमें केवल एक या दो धर्म शामिल हों। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी. एस. तिरुमूर्ति ने कहा कि भारत आतंकवाद, खासकर सीमा पार आतंकवाद का सबसे बड़ा शिकार रहा है। उन्होंने देशों से एक ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित करने का आह्वान किया जो बहुलवाद और लोकतंत्र के सिद्धांतों को बढ़ावा देकर आतंकवाद का मुकाबला करने में सही मायने में योगदान दे।
तिरुमूर्ति ने 'घृणास्पद भाषण से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस' की पहली वर्षगांठ के मौके पर आयोजित एक उच्च स्तरीय कार्यक्रम में कहा, 'जैसा कि हमने बार-बार जोर दिया है कि केवल एक या दो धर्मों को शामिल कर रिलिजियोफोबिया के मुकाबले की कवायद चुनिंदा नहीं होनी चाहिए, बल्कि गैर-अब्राहम धर्मों के खिलाफ भी यह फोबिया पर समान रूप से लागू होनी चाहिए। जब तक ऐसा नहीं किया जाता, ऐसे अंतरराष्ट्रीय दिवस अपने उद्देश्यों को कभी हासिल नहीं कर पाएंगे। रिलिजियोफोबिया पर दोहरे मापदंड नहीं हो सकते।'
तिरुमूर्ति ने संयुक्त राष्ट्र में कई मौकों पर रेखांकित किया है कि धार्मिक भय के समकालीन रूपों को गुरुद्वारों, मठों और मंदिरों जैसे धार्मिक स्थलों पर हमलों में वृद्धि या कई देशों में गैर-अब्राहम धर्मों के खिलाफ घृणा और दुष्प्रचार के प्रसार में देखा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि भारत की बहुसांस्कृतिक विशेषता ने सदियों से इसे भारत में शरण लेने वाले सभी लोगों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल बना दिया है, चाहे वह यहूदी समुदाय हो या पारसी या तिब्बती। उन्होंने कहा, 'यह हमारे देश की अंतर्निहित ताकत है जिसने समय के साथ कट्टरपंथ और आतंकवाद का सामना किया है।'
उन्होंने जोर देकर कहा कि कट्टरपंथ, उग्रवाद और आतंकवाद का मुकाबला करने में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है। तिरुमूर्ति ने कहा, 'भारत आतंकवाद का सबसे बड़ा शिकार रहा है, खासकर सीमा पार आतंकवाद का। हम देशों से एक ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित करने का आह्वान करते हैं जो बहुलवाद और लोकतंत्र के सिद्धांतों को बढ़ावा देकर उनका मुकाबला करने में सही मायने में योगदान दे।'