इस्लामाबाद : जब पाकिस्तान और भारत फरवरी 2021 में अत्यधिक अस्थिर नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर शांति बहाल करने के लिए सहमत हुए, तो ऐसा लगा कि वे फिर से दुश्मनी और अविश्वास की ऊबड़-खाबड़ राह से मुड़ने के लिए तैयार हैं। हालांकि, आने वाले कुछ महीनों में साफ हो गया कि यह एक और मृगतृष्णा थी।
पाकिस्तान-भारत संबंधों की कहानी 'एक कदम आगे, दो कदम पीछे' कहावत वाली है। अब तक, द्विपक्षीय संबंधों के संदर्भ में लगभग हर सकारात्मक कदम पर जन्मजात शत्रुता हावी रही है जो अक्सर आम भावनाओं से प्रेरित रहती है।
25 फरवरी को एक चौंकाने वाली घोषणा में, भारत और पाकिस्तान ने कहा कि वे नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम पर सभी समझौतों का सख्ती से पालन करने पर सहमत हुए हैं। भारत और पाकिस्तान ने 2003 में संघर्ष विराम समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन पिछले कई वर्षों में समझौते के पालन से अधिक उल्लंघन कर,इसका अक्षरश: पालन नहीं किया गया है।
नियंत्रण रेखा पर 2003 के संघर्ष विराम समझौते की बहाली कोई अपवाद नहीं थी। जल्द ही इसके बाद खबरें आईं, जिनमें कहा गया कि दोनों पक्ष अरब के रेगिस्तानों के किसी गोपनीय अड्डे में एक गुप्त कूटनीति में लगे हुए थे (तथाकथित वार्ता कथित तौर पर संयुक्त अरब अमीरात में आयोजित की जा रही थी)। वार्ता की स्थिति के बारे में कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया लेकिन संबंध जस के तस रहे।
हफ्तों बाद मार्च में, सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने कहा कि यह भारत और पाकिस्तान के लिए ‘अतीत को भूलने और आगे बढ़ने’ का समय है। पाकिस्तान के सुरक्षा प्रतिष्ठान के कई पदाधिकारियों की भागीदारी वाली पहली इस्लामाबाद सुरक्षा वार्ता को संबोधित करते हुए, जनरल बाजवा ने कहा कि ‘स्थिर भारत-पाक संबंध पूर्व और पश्चिम एशिया के बीच संपर्क सुनिश्चित करके दक्षिण और मध्य एशिया की अप्रयुक्त क्षमता को सामने लाने की कुंजी है', लेकिन यह भी कहा कि कश्मीर द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य करने में मुख्य बाधा है।
पहले पाकिस्तान ने कश्मीर में अगस्त, 2019 के कदमों (अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों को निरस्त करना) को उलटने पर भारत के साथ बातचीत शुरू करने की शर्त रखी थी, लेकिन जनरल बाजवा ने यह कहकर स्वर धीमे कर लिए कि भारत को अनुकूल माहौल बनाना चाहिए। प्रधानमंत्री इमरान खान, जिन्होंने 2019 में भारत द्वारा जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने के बाद से कड़ा रुख अपनाया था, ने भी यह कहकर अपनी बयानबाजी को कम कर दिया कि पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सर्वोपरि हैं।
31 मार्च को, पाकिस्तान ने भारत को लगभग चौंका दिया जब उसकी निर्णय लेने वाली शीर्ष संस्था, आर्थिक समन्वय समिति (ईसीसी) ने भारत से चीनी और कपास के आयात पर प्रतिबंध हटा दिया। वित्त मंत्री हम्माद अजहर ने यह बड़ा फैसला सुनाया था। महीनों बाद नवंबर में, पाकिस्तान ने चुपचाप भारत को कश्मीर और संयुक्त अरब अमीरात के बीच सीधी उड़ानों के लिए अपने हवाई क्षेत्र का उपयोग करने की अनुमति दी, लेकिन उसकी नियति भी पिछले सकारात्मक कदमों से अलग नहीं थी। एक हफ्ते बाद इस्लामाबाद ने अनुमति वापस ले ली। उड़ानों की अनुमति क्यों दी गई और उन्हें क्यों बंद किया गया, इसका कोई कारण नहीं बताया गया।
अफगानिस्तान में हुई एक घटना ने एक बड़ा मोड़ ले लिया जब अगस्त में तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया, जिससे पाकिस्तान को अफगानिस्तान में मजबूती मिलती दिखी। अफगानिस्तान में शासन में बदलाव के मद्देनजर, इस्लामाबाद का पूरा ध्यान काबुल पर चला गया और यह तालिबान की अंतरिम सरकार को वैश्विक मान्यता देने के लिए नई स्थिति में समायोजित करने के लिए समय देने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहा है। अफगानिस्तान की अंतरिम सरकार में शामिल कम से कम 14 सदस्यों को संयुक्त राष्ट्र द्वारा काली सूची में रखा गया है।
अफगानिस्तान की स्थिति ने पाक-भारत संबंधों के संदर्भ में एक सकारात्मक घटनाक्रम को उभारा। दिसंबर में, पाकिस्तान ने भारत को वाघा सीमा पार के माध्यम से अफगानिस्तान को 50,000 टन गेहूं और जीवन रक्षक दवाओं की मानवीय खेप भेजने की अनुमति दी। उड़ानों की अनुमति वाले फैसले के उलट इस फैसले को वापस नहीं लिया गया। लेकिन इसकी द्विपक्षीय संबंधों में एक सफलता के रूप में व्याख्या करना मुश्किल है।
नवंबर में, भारत ने करतारपुर गलियारा को फिर से खोल दिया, जो पाकिस्तान में गुरु नानक देव के अंतिम विश्राम स्थल,गुरुद्वारा दरबार साहिब को पंजाब के गुरदासपुर जिले में डेरा बाबा नानक गुरुद्वारे से जोड़ता है। साल के अंत में, प्रधानमंत्री खान ने नौ दिसंबर को इस्लामाबाद में एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि कश्मीर विवाद के समाधान तक भारत के साथ शांति संभव नहीं है। लेकिन उन्होंने इस बार एक और बाधा बताई: आरएसएस की विचारधारा।
भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों के लिए, जैसे-जैसे एक और साल समाप्त होता जा रहा है, चीजें फिर से उसी ढर्रे पर लौट गईं। दोनों पक्ष इस बात पर सहमत होने में भी विफल रहे कि पाकिस्तान में सजायाफ्ता भारतीय कैदी कुलभूषण जाधव को एक पाकिस्तानी सैन्य अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के खिलाफ इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में उनकी समीक्षा अपील में उनका प्रतिनिधित्व कैसे किया जाना चाहिए।
अक्टूबर में, पेरिस स्थित वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) ने पाकिस्तान को अपनी 'ग्रे लिस्ट' में बनाए रखने का फैसला किया, जब तक कि वह यह प्रदर्शित नहीं करता कि जमात-उद-दावा प्रमुख हाफिज सईद और जैश-ए -मोहम्मद के संस्थापक मसूद अजहर जिन्हें संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक आतंकवादी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। वर्ष के दौरान, पाकिस्तान ने विभिन्न शहरों में घातक विस्फोटों का भी सामना किया और ग्वादर में स्थानीय निवासियों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन झेला। बलोचिस्तान में विरोध, ग्वादर में चीन की मौजूदगी से बढ़ते असंतोष का हिस्सा है।