नई दिल्ली : जर्मन राजदूत वाल्टर जे लिंडनर ने सोमवार को कहा कि जर्मनी के लिए भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक अहम देश बनता जा रहा है तथा बर्लिन की अगली गठबंधन सरकार के भारत के साथ प्रगाढ़ संबंध कायम रखने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि पिछले एक दशक में भारत व जर्मनी के बीच व्यापार तथा निवेश सहित विभिन्न क्षेत्रों में संबंधों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है तथा नई सरकार के तहत रिश्तों के और प्रगाढ़ होने की संभावना है।
उनकी टिप्पणी तब आई जब जर्मनी में संसदीय चुनावों के बाद नयी गठबंधन सरकार के सत्ता में आने की संभावना है। खबरों के अनुसार, सोशल डेमोक्रेट (एसपीडी) संघीय चुनावों में एंजेला मर्केल के सत्तारूढ़ रूढ़िवादी गठबंधन से आगे थी। संघीय चुनावों के साथ जर्मन चांसलर के रूप में मर्केल के 16 साल के कार्यकाल का अंत होने को है। इस अवधि के दौरान भारत-जर्मनी संबंधों में महत्वपूर्ण विस्तार हुआ। मर्केल पहले ही इस शीर्ष पद पर एक और कार्यकाल से इनकार कर चुकी हैं।
जर्मन राजदूत ने संवाददाताओं से कहा, "हिंद-प्रशांत अधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है तथा भारत इस क्षेत्र में एक प्रमुख देश के रूप में उभरा है। हमारे भारत के साथ मधुर संबंध रहे हैं और इसके आगे भी कायम रहने की उम्मीद है।" उन्होंने कहा, "भारत के बिना किसी भी वैश्विक मुद्दे का हल नहीं किया जा सकता, चाहे यह जलवायु परिवर्तन हो या ग्लोबल वार्मिंग या व्यापार मुद्दे या कोविड-19 टीकाकरण या आतंकवाद...। भारत हमारे लिए महत्वपूर्ण है।" उन्होंने कहा कि विदेश नीति के मुद्दों पर प्रमुख जर्मन दलों के बीच बहुत मतभेद नहीं हैं और वे सभी भारत के महत्व को समझते हैं, तथा संबंधों में निरंतरता बनी रहेगी, हालांकि "विवरण में कुछ अंतर हो सकता है"।
राजदूत ने कहा कि जर्मनी में अगली सरकार क्रिसमस तक गठित होनी चाहिए और गठबंधन के सहयोगी विभिन्न प्राथमिकताओं को सूचीबद्ध करने के लिए "गठबंधन संधि" को अंतिम रूप देने का प्रयास करेंगे। अफगानिस्तान के बारे में उन्होंने कहा कि अफगान सरकार को ऐसी किसी भी चीज से निपटना चाहिए जिससे आतंकवाद को बढ़ावा मिलता हो, चाहे वह मदद देश से बाहर से हो या देश के अंदर से। उन्होंने कहा कि देश में मानवीय सहायता की जरूरत पर गौर करने की आवश्यकता है। तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जा किए जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि तालिबान ने जिस गति से देश पर कब्जा किया, उसका ठीक अनुमान लगाने में विश्व समुदाय असफल रहा। उन्होंने कहा कि अच्छी खुफिया जानकारी की भी कमी थी।
राजदूत ने कहा, "किसी ने भी इस स्थिति की भविष्यवाणी नहीं की, हर किसी ने सोचा था कि इसमें और अधिक समय लगेगा तथा लोगों को बाहर निकालने के लिए अधिक समय मिल जाएगा।’’ उन्होंने कहा कि 9/11 की घटना के बाद "सबसे ज्यादा उम्मीदें", अल-कायदा और आईएसआईएस से छुटकारा पाने तथा उसके बाद लोकतंत्र व मानवाधिकारों को बढ़ावा देने और एक बेहतर अफगानिस्तान का निर्माण करने की थीं जो टिकाऊ और एक अच्छी सेना वाला देश होता। लिंडनर ने कहा, ‘लेकिन ऐसा नहीं हो सका, तालिबान बहुत मजबूत थे, इसका विश्लेषण करना होगा... क्या हम तालिबान से बात करते हैं? हां, हम (दूसरों की तरह) बात करते हैं, लेकिन संबंध स्थापित करने के लिए नहीं, बल्कि अपने उन लोगों को बाहर निकालने के लिए जो अब भी वहीं हैं... हमारे लोग अब भी वहां हैं जिन्होंने हमारे लिए काम किया है।" उन्होंने कहा कि तालिबान के साथ बातचीत का मकसद संयुक्त राष्ट्र के जरिए तत्काल राहत मुहैया कराना होगा।