क्या सियासी फायदे के लिए मज़हब का इस्तेमाल कर रहे हैं इमरान खान?

दुनिया
राहुल उपाध्याय
Updated Mar 29, 2022 | 14:36 IST

पाकिस्तान में इमरान खान सरकार के खिलाफ आठ मार्च को लाये गये अविश्वास प्रस्ताव के कारण पाकिस्तान का राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ है, अविश्वास प्रस्ताव का नतीजा अब शुक्रवार या अगले हफ्ते के सोमवार को आने की उम्मीद है।

Is Imran Khan using religion for political gains
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान।  |  तस्वीर साभार: AP

नई दिल्ली: इमरान सरकार के खिलाफ आठ मार्च को लाये गये अविश्वास प्रस्ताव के कारण पाकिस्तान का राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ है, अविश्वास प्रस्ताव का नतीजा अब शुक्रवार या अगले हफ्ते के सोमवार को आने की उम्मीद है। इमरान खान अपने पद के लिए सबसे बड़े खतरे का सामना कर रहे हैं,  हालांकि खान ने अपनी सरकार के खिलाफ अविश्वास मत से पहले जनता का समर्थन जुटाने के लिए अपने “लास्ट कार्ड” का इस्तेमाल करना बखूबी शुरू कर दिया है।  

पाकिस्तान राजनितिक जानकार मानते हैं, की इमरान खान का आखरी कार्ड उनका इस्लाम कार्ड है. दरअसल अगर इमरान खान के पिछले कुछ बयानों को देखे तो खान, पाकिस्तान के कट्टर धार्मिक जनता के बीच समर्थन जुटाने के लिए खुद को एक मजहबी राजनीतिक चेहरे के रूप में जम कर पेश किया है।  

इस्लामॉफ़ोबिया पर पश्चिमी देशों को घेरा
इमरान खान ने इस्लामाबाद में मंगलवार (22 मार्च) को इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC )की 48वीं विदेश मंत्रियों की परिषद में दर्शकों से कहा,  "वे (पश्चिमी देश ) हमारे धर्म को बदनाम करने में सक्षम थे और फिर भी मुस्लिम दुनिया से कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं मिली।" उन्होंने सवाल किया कि इस्लाम की तुलना आतंकवाद से क्यों की जाती है, उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस्लामिक देश इस छवि का मुकाबला करने में सक्षम नहीं थी। इसके बाद इमरान खान ने इस्लामोफोबिया को वास्तविकता के रूप में स्वीकार किए जाने पर खुशी जताई। ये साफ़ संकेत देता है की मजहब का इस्तेमाल और पश्चिमी दुनिया के खिलाफ उनकी बयानबाजी का निशाना काफी हद तक पाकिस्तान की कट्टर जनता है। जानकर ये भी मानते हैं की इमरान खान को डर है कि वह आगामी अविश्वास मत खो सकते हैं और मजहब का इस्तेमाल कर वह अगले चुनाव कि तैयारी में लग गए हैं।

रियासते मदीना का जिक्र
प्रधान मंत्री इमरान खान अपने देश में "रियासत ऐ मदीना" स्थापित करने की अपनी इच्छा बार - बार दोहरा चुके हैं। सातवीं शताब्दी में मुसलमानों की पहली खिलाफत, जिसे इमरान खान, उनके समर्थक और पाकिस्तान की मुस्लिम आबादी एक आदर्श राज्य मानती हैं। अपनी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव से पहले इस्लामाबाद में एक विशाल सभा को संबोधित करते हुए भी , इमरान खान ने बार-बार पैगंबर मुहम्मद के सिद्धांतों के आधार पर पाकिस्तान में "रियासत ए मदीना" को फिर से बनाने की बात कही। ऐसे दावों से ना सिर्फ आम जनता का समर्थन बल्कि उन धर्म गुरुओं का भी साथ मिल जाता है जो पाकिस्तान को इस्लामिक खिलाफत की तरह चलता देखना चाहते हैं।  

क्या नाकामियों को छुपाने के लिए मजहब का इस्तेमाल कर रहे हैं इमरान? 

पाकिस्तान के विपक्षी नेताओं का मानना है की इमरान खान मजहब का इस्तेमाल अपनी तमाम नाकामियों को छुपाने के लिए कर रहे हैं। इसी साल की शुरुवात में इमरान खान ने जब अख़बार DAWN में रियासत ऐ मदीना पर एक लेख लिखा था, तब पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) की नेता मरियम औरंगजेब ने कहा था की इमरान खान इस्लामिक मजहब के नाम का इस्तेमाल कर फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं...मरियम औरंगज़ेब ने उन्हें religious exploiter  बताया था। हालांकि सिर्फ विपक्ष के नेता ही नहीं अब उनके अपने ही इमरान के मजहबी राजनीती पर सवाल खड़ा करने लगे हैं । इमरान खान की पार्टी पीटीआई के असंतुष्ट सांसद बासित बुखारी भी कह रहे हैं की इमरान खान ने राजनीति में धर्म का इस्तेमाल तब किया जब उन्हें एहसास हुआ कि वह अंक गणित का खेल हार गए हैं। अविश्वास प्रस्ताव पेश होने पर बासित ने अविश्वास प्रस्ताव को सफल बनाने की कसम खाते हुए कहा की अगले सोमवार को प्रधानमंत्री का जाना तय है।  

अब देखना ये है की अविश्वास प्रस्ताव के मतदान के दौरान इमरान खान अपनी सरकार बचाने में सफल होते हैं या नहीं, क्यूंकि अगर मौजूदा समीकरणों की माने तो इमरान अंक गंणित में पिछड़ते दिख रहे हैं। लेकिन जैसा आंतरिक मामलो के मंत्री शेख रशीद ने पाकिस्तान में जल्द चुनाव होने का संकेत दिया है, ऐसे में विपक्षी गुटबाजी से कहीं ज्यादा तैयार चुनावों के लिए इमरान खान दिख रहे हैं।

अगली खबर