ओम तिवारी
नई दिल्ली: बदलाव प्रकृति का नियम है और कोरोना महामारी के बाद वैश्विक समीकरण में भी बड़ा बदलाव दिखने लगा है. बदलाव अगर बेहतरी के लिए हो तो ठीक है, लेकिन इस बार बदलाव कई डरावने संकेत दे रहा है। जिस कोल्ड वॉर को दुनिया बहुत पीछे छोड़ चुकी थी, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जिसका साया करीब 44 सालों तक दुनिया पर मंडराता रहा, तीसरे विश्व युद्ध की चेतावनी देता रहा, 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद जिसके खौफ से दुनिया उबर चुकी थी, पिछले 29 सालों में जिसे लोग एक बुरी याद समझकर भूल चुके थे, कोरोना महामारी से बदले वैश्विक माहौल में एक बार फिर दुनिया उस कोल्ड वॉर की तरफ बढ़ती दिखाई दे रही है। इस बार किरदार जरूर बदल चुका है. सोवियत संघ की जगह इस बार चीन और अमेरिका के बीच बढ़ता तनाव शीत युद्ध काल की अनिश्चितता के लौटने की आहट दे रहा है।
दोनों देशों के बीच हालात कितने बिगड़ चुके हैं इसका अंदाजा इससे लगाया जाता है कि चीनी सरकार के एक सलाहकार ने अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन को ‘बेहद कमजोर राष्ट्रपति’ कह दिया और शी जिनपिंग सरकार को आगाह किया कि आने वाले समय में भी चीन को लेकर अमेरिका के रुख में कोई बदलाव नहीं आने वाला है क्योंकि अमेरिका में कोल्ड वॉर के पक्षधर काफी सक्रिय हो गए हैं। अब डोनाल्ड ट्रंप के शासन में अमेरिका और चीन के रिश्ते किस कदर बिगड़ चुके थे यह बात किसी से छिपी नहीं है. ट्रेड और टैरिफ के मसले पर दोनों देशों में शुरू हुई तनातनी कोरोना महामारी के बाद अपने चरम पर पहुंच चुकी है।
कारोबार और सामरिक क्षेत्र में अभूतपूर्व तनातनी
कारोबार के मोर्चे पर देखें तो जहां चीन में मौजूद अमेरिकी और दूसरी विदेशी कंपनियां अब दूसरे देशों में जमीन तलाश रही हैं, वहीं जासूसी का आरोप झेल रही Huawei जैसी चीनी कंपनियों पर अमेरिका और यूरोपीय देशों की पाबंदी ने चीन को बड़ा आर्थिक झटका दे दिया है। कूटनीतिक स्तर पर रिश्ते इतने खराब हो चुके हैं दोनों देश एक दूसरे पर कार्रवाई कर एक-एक दूतावास बंद कर चुके हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जो बाइडेन ने बड़ी जीत हासिल की लेकिन चीन ने उन्हें शुभकामना देने में एक हफ्ते का वक्त लगा दिया। सामरिक स्तर पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन और अमेरिका एक दूसरे के सामने खड़े हैं। जहां अमेरिका के जंगी जहाज साउथ और ईस्ट चाइना सी में चीन की हेकड़ी से परेशान देशों की रक्षा के लिए समंदर में मुस्तैद हैं, वहीं चीनी सेना समंदर में मिसाइल परीक्षण और प्रोपेगेंडा वीडियो के जरिए रोज अमेरिका को नई चेतावनी दे रही है।
चीनी वायरस का सबसे बड़ा शिकार अमेरिका
ट्रंप प्रशासन कई बार यह शक जाहिर कर चुका है कि कोरोना महामारी भी चीन की साजिश का हिस्सा हो सकती है। आरोप है कि चीन ने वायरस की खबर दुनिया से छिपाई, शी जिनपिंग सरकार अपने देश में कोविड-19 के संक्रमण को रोकने के सारे उपाय करती रही, लेकिन न तो दूसरे देशों की इसकी खबर दी, न ही अंतरराष्ट्रीय आवाजाही पर रोक लगाई। लिहाजा इस घातक बीमारी ने कुछ ही महीनों में पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया। सबसे बड़ा नुकसान अमेरिका को हुआ, जहां एक करोड़ बीस लाख से ज्यादा लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए और इनमें से ढाई लाख से ज्यादा लोगों की जान चली गई। जबकि वुहान से पूरे विश्व में फैले इस वायरस की भनक लगते ही चीन ने चुपके से कार्रवाई कर न सिर्फ एक अरब चालीस करोड़ की आबादी वाले देश में संक्रमण के आंकड़े को हजारों में सीमित रखा बल्कि हताहतों की तादाद भी अब तक पांच हजार से नीचे बनी है।
कोरोना महामारी चीन की साजिश का हिस्सा थी या नहीं इस पर बहस जारी है। बिना किसी ठोस सबूत के किसी नतीजे तक नहीं पहुंचा जा सकता। लेकिन न तो इसमें कोई शक है कि महामारी का सबसे बुरा असर अमेरिका पर पड़ा, न ही चीन की यह मंशा अब छिपी रह गई है कि वह अमेरिका को पीछे छोड़कर सुपरपावर नंबर वन बनना चाहता है। चीन की विस्तारवादी महत्वाकांक्षा पिछले कुछ सालों में पूरी दुनिया के सामने आ चुकी है। शी जिनपिंग की सरकार इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है।
PPP में चीनी इकोनॉमी ने अमेरिका को पीछे छोड़ा
2049 में चीन की आजादी के सौ साल पूरे होने तक वह विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति बनने का लक्ष्य बना चुका है। इसकी नींव 40 साल पहले चीन के सुप्रीम लीडर डेंग शियाओ पिंग ने ही रख दी थी। आधुनिक चीन के संस्थापक माओ जेडोंग की मौत के बाद चीन को बदहाली से निकालने के लिए डेंग शियाओ पिंग ने आर्थिक सुधार का सहारा लिया और देश की अर्थव्यवस्था को दुनिया के लिए खोल दिया। यह नीतियां उनके बाद भी जारी रहीं और देश में तमाम भ्रष्टाचार के बावजूद विकास की रफ्तार बनी रही, 2001 में चीन विश्व व्यापार संगठन (WTO) का हिस्सा बना, और IMF के ताजा आंकड़ों के मुताबिक क्रय शक्ति समता (Purchasing Power Parity) के हिसाब से चीन विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। इस लिहाज से जहां अमेरिका 20.8 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी है, चीन की इकोनॉमी 24.2 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच चुकी है।
चीनी नौ सेना ने संख्या में अमेरिका को दी मात
अमेरिका के लिए सबसे बड़ी खतरे की घंटी है चीन की सामरिक तैयारी। इसकी चिंता अमेरिकी रक्षा विभाग ने अपनी ताजा रिपोर्ट में भी जाहिर की है। रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि 350 जंगी जहाज और सबमरीन के साथ चीन दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना वाला देश बन गया है, जबकि अमेरिका के पास इससे काफी कम 293 जहाज मौजूद हैं। हालांकि एयरक्राफ्ट कैरियर में अब भी अमेरिका चीन से आगे है, लेकिन इस प्रतिस्पर्धा में भी चीन बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसके अलावा चीन अगले 10 साल में अपने परमाणु भंडार को दोगुना करने की योजना बना रहा है। शी जिनपिंग सरकार ने तय किया है कि साल 2049 तक चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी विश्व स्तर की सेना बन जाएगी यानी कि सामरिक क्षेत्र में हर स्तर पर अमेरिका को टक्कर देने की पूरी तैयारी होगी। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका को बार-बार चुनौती देकर चीन अब सीधी टक्कर की मंशा भी जाहिर कर चुका है।
अमेरिका के दुश्मनों को चीन ने बनाया दोस्त
आर्थिक और सामरिक क्षेत्र के अलावा चीन कूटनीतिक क्षेत्र में भी अमेरिका को पटखनी देने की रणनीति बना रहा है। अमेरिका के दुश्मनों को चीन अपना दोस्त बना रहा है। ईरान के साथ 400 अरब डॉलर की डील से चीन की कूटनीतिक चाल साफ हो चुकी है। बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट के जरिए चीन एशिया से लेकर यूरोप और अफ्रीका के देशों तक सड़क, रेल, बंदरगाह और हवाई अड्डों का जाल बिछा रहा है। कारोबार के नाम पर कर्ज देकर चीन जरूरतमंद देशों को अपनी मुट्ठी में करने की ताक में है।श्रीलंका और मालदीव जैसे कई छोटे देश चीन के जाल में फंस चुके हैं। अपनी विस्तारवादी योजना को अंजाम देने के साथ-साथ चीन बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट से जुड़े देशों का गुट बनाकर अमेरिका को अपनी कूटनीतिक ताकत दिखाने की तैयारी कर रहा है।
नई रणनीति से बाइडेन करेंगे चीन का सामना
गौर करने की बात यह है कि डोनाल्ड ट्रंप के शासन में मित्र देशों के साथ अमेरिका के संबंध भी कमजोर हुए। नाटो जैसे संगठन की साख गिरी। ऐसे में अमेरिका की चुनौती और बढ़ गई है। क्योंकि कोरोना काल में कमजोर हुई वैश्विक अर्थव्यवस्था का फायदा उठाकर चीन अपने लक्ष्य की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। अमेरिका और सोवियत संघ के बीच चार दशकों तक चले कोल्ड वॉर की बात अलग थी। 1980 के दशक में शीत युद्ध के दिनों में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच सालाना 2 अरब डॉलर का कारोबार होता था। आज रोजाना चीन और अमेरिका के बीच दो अरब डॉलर का कारोबार होता है। पिछले चार दशकों में दुनिया की तस्वीर बदली है तो कोल्ड वॉर के मायने भी बदले हैं। नए माहौल में इसका असर दूरगामी होगा, वैश्विक व्यवस्था पर इसका अप्रत्याशित प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए अमेरिका और चीन के बीच बनते शीत युद्ध जैसे हालात दुनिया के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकते हैं। अमेरिका के खिलाफ चीनी सरकार का आक्रामक रुख कोल्ड वॉर की चिंगारी को भड़का कर इसे बड़ी जंग की शक्ल दे सकता है।
भारत के साथ मिलकर चीन पर काबू करेगा अमेरिका
उम्मीद है कि जो बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिका की नई सरकार नई रणनीति के साथ ड्रैगन पर काबू करने में कामयाब होगी और शी जिनपिंग के खौफनाक इरादों से दुनिया को महफूज रखेगी। जो बाइडेन सरकार में विदेश मंत्री का पदभार संभालने जा रहे एंटनी ब्लिंकेन ने साफ कर दिया है कि चीन पर अमेरिका नई रणनीति तैयार करेगा, एक कदम पीछे हटकर अपनी स्थिति मजबूत करेगा और अपनी शर्तों पर चीन के साथ रिश्तों को आगे बढ़ाएगा। ब्लिंकेन ने कहा चीन भारत और अमेरिका दोनों के लिए बड़ी चुनौती बन चुका है, इस चुनौती से निपटने के लिए अमेरिकी सरकार भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलेगी।
(प्रस्तुत आलेख में लेखक के विचार निजी हैं। टाइम्स नाउ हिंदी उसके लिए उत्तरदायी नहीं है।)