अशरफ गनी राज की तुलना में तालिबान राज में काबुल अधिक सुरक्षित ! रूस के बयान का क्या है मतलब

अशरफ गनी राज की तुलना में तालिबान राज में काबुल अधिक सेफ है इस तरह का बयान रूसी राजनयिक दिया है। इस बयान का मतलब क्या है इसे समझने की जरूरत है।

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अशरफ गनी राज की तुलना में तालिबान राज में काबुल अधिक सुरक्षित, रूस के बयान का क्या है मतलब  |  तस्वीर साभार: AP
मुख्य बातें
  • अफगानिस्तान पर अब तालिबान का शासन
  • अमेरिका में बताया 20 साल में कड़ा सबक मिला
  • रूस के मुताबिक तालिबान राज में काबुल अधिक सुरक्षित

अफगानिस्तान में तालिबान राज स्थापित हो चुका है। तालिबान की तरफ से कहा जा रहा है कि किसी को डरने की जरूरत नहीं, वो लोग विदेशी दूतावासों और राजनयिकों या जो लोग अफगानिस्तान छोड़कर जा रहे हैं उन्हें निशाना नहीं बनाएंगे। इन सबके बीच अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि पिछले 20 वर्षों में कड़ा सबक मिला तो दूसरी तरफ यह भी कहा कि अमेरिका का मिशन अफगानिस्तान में राष्ट्र निर्माण की नहीं थी। लेकिन इन सबके बीच अफगानिस्तान में रूसी राजनयिक का कहना है कि गनी राज की तुलना में तालिबान राज में अफगानिस्तान ज्यादा सेफ है। 

रूसी राजनयिक का खास बयान
अफगानिस्‍तान में रूस के राजदूत दिमित्री हीरनोव ने कहा कि तालिबान ने पिछले 24 घंटों में काबुल को पिछली सभी सरकारों के मुकाबले सुरक्षित बनाया है। उन्होंने कहा कि हालात को सामान्य बनाने पर बल देना चाहिए। 

आरोप लगाने का समय नहीं-यूएन में अफगानी राजदूत
संयुक्त राष्ट्र में अफगानिस्तान के राजदूत ने कहा है कि अब आरोप-प्रत्यारोप का समय नहींहै। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और वैश्विक संस्था  के महासचिव से अनुरोध किया कि वे युद्ध से जर्जर देश में हिंसा और मानवाधिकारों का हनन रोकने के लिए अपने पास उपलब्ध सभी साधनों का फौरन उपयोग करें।

क्या कहते हैं जानकार
अब सवाल यह है कि रूसी राजनयिक के इस बयान का क्या मतलब है। इसे लेकर जानकार कहते हैं कि अफगानिस्तान के मुद्दे पर अमेरिका मात खा चुका है। अमेरिकी सरकार को इस बात का अंदाजा नहीं था कि तालिबान बहुत जल्द पांव पसार लेगा। अमेरिका का यह बयान भी खास है कि अशरफ गनी ने लड़ाई नहीं लड़ी और अमेरिका का मिशन भी कभी राष्ट्रनिर्माण का नहीं था। राष्ट्रनिर्माण का काम तो अफगानी लोगों का था। अब ऐसे में सवाल यह है कि तालिबान को लेकर रूस मुलायम क्यों हो रहा है तो इसके पीछे ऐतिहासिक आधार है। 1980 के दशक में जब तालिबान को अमेरिकी मदद मिलनी शुरू हुई तो उसे लेकर रूस को विरोध था। 

1980 से पहले और उसके बाद जब तक सोवियत संघ का विभाजन नहीं हुआ दुनिया दो ध्रुवों में बंटी हुई थी और उसकी वजह से अमेरिका और रूस के हित टकराया करते थे। अमेरिका का साफ मानना था कि अगर दक्षिण एशिया में उसे अपनी पैठ बनानी है तो रूस समर्थित अफगानी सरकार के खिलाफ दूसरे धड़े को आगे बढ़ाना होगा और अमेरिका अपनी उस मुहिम में बहुत हद तक कामयाब भी हुआ था। समय के साथ हालात बदले और अब मौजूदा स्थित में रूस को लगता है कि अमेरिका पर नकेल कसने के लिए उसे तालिबान के पक्ष में सधी टिप्पणी करनी चाहिए। 

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