PM Modi in Japan: अभी Quad Summit शुरू भी नहीं हुआ कि चीन को मिर्ची लगने लगी है। उसने पहले से ही बोलना शुरू कर दिया है कि क्वॉड सम्मेलन सफल नहीं होगा क्योंकि अमेरिका ने उसे चीन को 'काबू' में रखने के लिए तैयार किया है। और स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के नाम पर उसकी इंडो-पेसिफिक रणनीति कारगर नहीं होने वाली है। सवाल उठता है कि चीन को भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान द्वारा बनाए गए क्वॉड (Quad) से क्या परेशानी है। असल में चीन QUAD को हमेशा से ही उसे घेरने की अमेरिकी चाल बताता रहा है। इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ताइवान मामले पर बेहद सख्त बयान दे दिया है। उन्होंने कहा कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो उनका देश सैन्य हस्तक्षेप करेगा। ताइवान के खिलाफ बल प्रयोग करने का चीन का कदम न केवल अनुचित होगा बल्कि यह यूक्रेन में की गई कार्रवाई के समान होगा।
15 साल पुराना है क्वॉड
वैसे तो क्वॉड का गठन साल 2007 में हुआ था। लेकिन वैश्विक स्तर पर बदलती परिस्थियों ने इसका महत्व और बढ़ा दिया है। एक तरफ चीन दक्षिणी चीन सागर में अपनी विस्तारवादी नीति अपनाए हुए हैं। दूसरी तरफ रूस और यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक परिस्थितियां बदल दी हैं। ऐसे में जापान मे हो रहे क्वॉड सम्मेलन का महत्व बढ़ गया है। इसीलिए चीन के विदेश मंत्री वांग यी का क्वॉड सम्मेलन से पहले सख्त बयान आया है। असल में चीन की प्रशांत महासागर, हिंद महासागर से लेकर दक्षिणी चीन सागर में हो रही विस्तारवादी गतिविधियों ने ही क्वॉड के गठन के लिए प्रेरित किया था। और भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया के हित सीधे तौर पर चीन से टकराते हैं। इसे रोकने के लिए ही अमेरिका के साथ मिलकर तीनों देशों ने क्वॉड का गठन किया है। संगठन का मकसद हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अहम व्यापार के रास्तों को किसी भी सैन्य या राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रखना है।
क्वॉड को चीन क्यों खतरा मानता है
चीन को यह लगता है कि न केवल एशिया में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ साझेदारी कर भारत उसके लिए चुनौती बनता जा रहा है। बल्कि उसके सुपर पावर बनने की राह में क्वॉड रोड़ा बनता जा रहा है। इसीलिए चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र को भू-राजनीतिक मंच बनने के बजाय शांतिपूर्ण विकास की भूमिका में होना चाहिए था। उन्होंने कहा कि एशिया-प्रशांत को नाटो या शीत युद्ध' में तब्दील करने की कोशिश कभी सफल नहीं होगी।
असल में क्वॉड के बाद भारत और क्ववॉड देशों के आर्थिक रिश्ते मजबूत होते जा रहे हैं। इसी कड़ी में करीब 8 साल से अटके भारत-ऑस्ट्रेलिया मुक्त व्यापार समझौत की राह खुली और दोनों देशों ने मुक्त व्यापार समझौता किया। इसके अलावा भारत के जापान के साथ बेहतर संबंध हैं। इसके अलावा रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका की कोशिश है कि भारत उसका सैन्य साझीदार बने। और इसके लिए वह लगातार भारत पर डोरे डाल रहा है। जिसे भी चीन अपने लिए चुनौती मानता है।
भारतीय सीमा पर चीन की हरकतों को लगेगी लगाम
चीन भले ही कितने दावे करे लेकिन भारत पर सीमा विवाद सुलझाने की दिशा में पहले करते नहीं दिख रहा है। इसीलिए क्वॉड की मजबूती भारत के लिए हमेशा फायदेमंद रहने वाली है। क्योंकि चीन की सीमा पर किसी तरह की नापाक हरकत पर क्वॉड देश भारत के साथ खड़े हो सकते हैं। और इस बात की आशंका हमेशा से चीन की बनी हुई है। इसीलिए 2007 में अपने गठन के बाद से QUAD को चीन प्रभावी नहीं होने देना चाहता है। उसका असर था कि शुरू में भारत भी इस संगठन से दूर रहा और 2010 में ऑस्ट्रेलिया अलग हो गया । लेकिन बाद में फिर शामिल हो गया। और 2017 में भारत,अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने चीन की बढ़ता हिमाकतों को रोकने के लिए फिर से रिवाइव करने का फैसला लिया।
क्वॉड के अलावा भारत का द्विपक्षीय वार्ता पर भी जोर
प्रधानमंत्री मोदी ने जापान रवाना होने से पहले कहा था, मैं जापान में क्वाड नेताओं की आमने-सामने की दूसरी शिखर वार्ता में हिस्सा लूंगा, जिससे चार देशों के नेताओं को क्वॉड के कदमों की प्रगति की समीक्षा करने का अवसर मिलेगा। उन्होंने कहा कि हम हिंद-प्रशांत क्षेत्र से संबंधित घटनाक्रमों और पारस्परिक हितों से जुड़े वैश्विक मुद्दों पर भी विचारों का अदान-प्रदान करेंगे।जापान के प्रधानमंत्री के आमंत्रण पर तोक्यो पहुंचे मोदी शिखर सम्मेलन के इतर बाइडन, किशिदा और अल्बानीस के साथ अलग-अलग द्विपक्षीय वार्ता भी करेंगे।
इंडो पेसिफिक इनकोनॉमिक फ्रेमवर्क नई चुनौती
इस बीच जापान पहुंचते ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने Indo-Pacific Economic Framework का 13 देशों के साथ शुरू करने का ऐलान कर दिया है। हालांकि अभी यह तय नहीं है कि भारत इन 13 देशों में शामिल होगा या नहीं। लेकिन अमेरिका आज ही इस फ्रेमवर्क की घोषणा कर सकता है। इंडो पेसिफिक इनकोनॉमिक फ्रेमवर्क के जरिए बाइडेन प्रशासन एशिया में चीन के खिलाफ मजबूत गठजोड़ तैयार करना चाहता है।यूएस कांग्रेस के रिसर्च पेपर के अनुसार नया फ्रेमवर्क कोई परंपरागत व्यापार समझौता नहीं होगा। इसमें कई अलग-अलग मॉड्यूल होंगे जिनमें फेयर एंड रेजिलिएंट ट्रेड, सप्लाई चेन रेजिलियंस, इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड डिकार्बनाइजेशन और टैक्स एंड एंटीकरप्शन आदि जैसे क्षेत्रों में देशों के बीत सहयोग बढ़ाया जाएगा। इस कदम को कोरोना काल में चीन द्वारा सप्लाई चेन में आई बाधा का जवाब माना जा रहा है।