यांगून : म्यांमार में 1 फरवरी को तख्तापलट कर सेना ने सत्ता हथिया ली, जिसके बाद देश की सर्वोच्च नेता के तौर पर मान्य स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची सहित कई नेताओं को हिरासत में ले लिया गया। पुलिस के अनुसार उन्हें 15 फरवरी तक के लिए हिरासत में रखा गया है। यह तख्तापलट दुनियाभर में सुर्खियां बटोर रहा है। अमेरिका सहित दुनिया के कई देश यहां लोकतंत्र की बहाली की मांग कर रहे हैं।
बाइडन प्रशानस ने तख्तापलट करने वाले सैन्य नेतृत्व, उनके व्यापारिक हितों व नजदीकी परिजनों पर प्रतिबंधों के साथ-साथ अमेरिका स्थित म्यांमार के फंड फ्रीज करने की बात भी कही है। वहीं, म्यांमार में लोकतंत्र बहाली की मांग करने वालों में यहां के युवा भी पीछे नहीं हैं। वे सैन्य शासन के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं तो रचनात्मक तरीके से भी सत्ता हथियाने वाले सैन्य नेतृत्व का विरोध कर रहे हैं।
युवाओं की यह रचनात्मकता उन प्रदर्शनों में देखी जा सकती है, जिसमें उनके हाथों में कई ऐसे बैनर नजर आए हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी हैं। लोकतंत्र बहाली की मांग को लेकर पिछले दिनों सड़कों पर उतरी युवतियों के हाथों में नजर आए उस बैनर ने खूब ध्यान खींचा, जिसमें लिखा था, 'मेरा पूर्व पार्टनर खराब था, लेकिन लेकिन सेना उससे भी खराब है।'
ऐसे ही एक अन्य पोस्टर पर लिखा नजर आया, 'मुझे तानाशाही नहीं, बॉयफ्रेंड चाहिए।' कई प्रदर्शनकारी चुटीले अंदाज में सैन्य शासन का विरोध कर रहे हैं। कुछ लोगों के हाथों में जो बैनर व पोस्टर नजर आए, उनमें लिखा था, 'आपने गलत पीढ़ी से पंगा ले लिया है।' प्रदर्शनों के दौरान युवाओं के हाथों में जो बैनर या पोस्टर नजर आए हैं, उनमें सैन्य शासन के खिलाफ व्यंग्य, आलोचना भी आसानी से देखा जा सकता है।
म्यांमार में सैन्य शासन के खिलाफ हो रहे इन प्रदर्शनों ने 2007 की उस केसरिया क्रांति की याद दिला दी है, जब सैन्य शासन के खिलाफ केसरिया वस्त्र धारण किए हजारों लोग सड़कों पर उतर आए थे। सैन्य शासन के खिलाफ हुए इस व्यापक विरोध प्रदर्शन में सबसे आगे बौद्ध भिक्षु होते हैं, जो केसरिया वस्त्र पहनते हैं। इस विरोध प्रदर्शन में बड़ी संख्या में छात्रों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं और महिलाओं ने भी हिस्सा लिया था।
म्यांमार में वर्ष 2011 में ही बीते पांच दशकों से चले आ रहे दमनकारी सैन्य शासन का अंत हुआ था, जब सेना जनता द्वारा चुनी गई सरकार को चरणबद्ध तरीके से सत्ता सौंपने के लिए राजी हो गई थी। इसके बाद 2015 में यहां चुनाव हुआ, जिसमें आंग सान सू ची की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) पार्टी को जीत मिली। नवंबर 2020 में हुए चुनाव में भी एनएलडी को 80 फीसदी से अधिक वोट मिले।
इसके बाद विपक्ष ने चुनाव में धोखाधड़ी का आरोप लगाया, जिसे म्यांमार की सेना का समर्थन हासिल था। बाद में म्यांमार के कार्यकारी राष्ट्रपति मीएन स्वे की ओर से जारी बयान में कहा गया कि चुनाव आयोग 8 नवंबर को हुए आम चुनाव में वोटर लिस्ट की बड़ी गड़बड़ियों को ठीक करने में विफल रहा। इसके साथ ही उन्होंने देश में सालभर के लंबा आपातकाल की घोषणा कर दी और सेना ने सत्ता अपने हाथों में ले ली।