नेल्सन मंडेला : दक्षिण अफ्रीका के 'मदीबा', जिन्‍होंने मिटाई गोरे-काले के बीच की रेखा

रंगभेद, नस्‍लभेद विरोध के वैश्विक प्रतीक बन नेल्‍सन मंडेला को आज ही के दिन सरकार के खिलाफ साजिश का दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी, जिसके बाद वह 27 साल तक जेल में रहे थे। 

नेल्सन मंडेला : दक्षिण अफ्रीका के 'मदीबा', जिन्‍होंने मिटाई गोरे-काले के बीच की रेखा
नेल्सन मंडेला : दक्षिण अफ्रीका के 'मदीबा', जिन्‍होंने मिटाई गोरे-काले के बीच की रेखा  |  तस्वीर साभार: AP, File Image

Nelson Mandela: नेल्सन मंडेला आज दुनिया में रंगभेद, नस्‍लभेद विरोध के वैश्विक प्रतीक बन गए हैं। दक्षिण अफ्रीका में उन्‍हें वही दर्जा प्राप्‍त है, जो भारत में राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी को हासिल है। दक्षिण अफ्रीका के लोग प्यार से मंडेला को 'मदीबा' कहते थे, जिसका मतलब स्थानीय भाषा में पिता है। जिस तरह दक्षिण अफ्रीका में ट्रेन से बाहर फेंके जाने की घटना ने महात्‍मा गांधी की पूरी राजनीतिक-सामाजिक चेतना को बदल दिया था, उसी तरह रंगभेद से जुड़ी ऐसी कई घटनाएं रहीं, जिन्‍होंने मंडेला की लड़ाई को एक नई दिशा दी थी।

रंगभेद ने पहुंचाई गहरी चोट

यह वो दौर था, जब दक्षिण अफ्रीका में अश्‍वेत लोगों को आम लोगों के साथ बैठकर क्रिकेट मैच देखने की अनुमति भी नहीं थी। अश्‍वेत लोगों के लिए स्टेडियम में कंटीले तार वाले पिंजरे रखे गए थे, जिनमें बैठकर ही वे मैच देखा करते थे। उन्‍हें काफी पहले से इसका एहसास था कि अश्वेत लोगों के प्रति दुराग्रह की जड़ें दक्षिण अफ्रीकी समाज में बहुत गहरी हैं। इन घटनाओं ने उन्‍हें ऐसी गहरी चोट पहुंचाई कि अंतत: उन्‍होंने इसे खत्‍म करके ही दम लिया। उन्‍होंने रंगभेद के खिलाफ आवाज उठाई, जेल गए और अंतत: गोरे और काले के बीच खींची रेखा को मिटाकर ही दम लिया।

FILE - In this Feb. 11, 1990 file photo, Nelson Mandela gestures as he addresses supporters at the Cape Town, South Africa City Hall after his release from 27 years in prison. Tuesday, Feb. 11, 2020 marks the 30 year anniversary of the release of the former South African president. (AP Photo/File)

गिरफ्तारी में सीआईए की भूमिका

मंडेला को आज ही के दिन (12 जून) 1964 में सरकार के खिलाफ साजिश का दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी, जिसके बाद वह 27 साल तक जेल में रहे थे। इस दौरान 18 साल उन्‍होंने रोबेन आइलैंड जेल में बिताए, जो बाद में स्वतंत्रता का प्रतीक बन गई। एक रिपोर्ट के मुताबिक, मंडेला की 1962 में हुई गिरफ्तारी में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की अहम भूमिका थी। दरअसल, यह वो दौर था, जब द्वितीय विश्‍वयुद्ध के बाद दुनिया दो ध्रुवों-अमेरिका, सोवियत संघ में बंटी हुई थी और अमेरिका को लगता था कि मंडेला सोवियत संघ के नियंत्रण में हैं।

FILE - In this Feb. 11, 1990 file photo, Nelson Mandela, gestures as he addresses supporters at the Cape Town, South Africa City Hall after his release from 27 years in prison. Tuesday, Feb. 11, 2020 marks the 30 year anniversary of the release of the former South African president. (AP Photo/Udo Weitz, File)

गांधीवाद से मिली मजबूत प्रेरणा

दक्षिण अफ्रीका में रंग भेद के खिलाफ जंग के मसीहा मंडेला का आंदोलन महात्‍मा गांधी के सत्‍याग्रह और अहिंसा से प्रेरित था, लेकिन ऐसा भी नहीं था कि वह हमेशा से इस विचारधारा का पालन करने वाले रहे। मंडेला ने अपने शांतिपूर्ण आंदोलन के साथ कभी हिंसक क्रांति का भी आह्वान किया था। 1961 में उन्होंने अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस की एक सशस्त्र शाखा का भी गठन किया था, जिसके वह कमांडर-इन-चीफ थे। उनका रूझान साम्यवादी विचारधारा की ओर भी था और वह क्यूबा के आन्दोलन से भी खासे प्रभावित थे। लेकिन गांधीवाद उनके लिए सबसे बड़ी प्रेरणा साबित हुआ।

FILE - In this Feb. 11, 1990 file photo, Nelson Mandela's release from prison in Cape Town, is celebrated in Soweto, South Africa. Mandela's release set off joyous celebrations and violent clashes as supporters welcomed Mandela back from 27 years in jail. Tuesday, Feb. 11, 2020 marks the 30 year anniversary of the release of the former South African president. (AP Photo/Raymond Preston/File)

हाशिये के लोगों के नेता

मंडेला 1990 में जेल से रिहा किए गए और चार साल बाद 1994 में वह दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्‍वेत राष्‍ट्रपति चुने गए। उन्होंने राष्ट्रपति के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा किया और फिर पद छोड़ दिया। साल 2013 में 95 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। लेकिन अपने साहस, धैर्य, जनता से जुड़ाव, मानव मूल्‍यों के लिए संघर्ष की गाथा ने उहें उन्‍हें अफ्रीका ही नहीं, दुनियाभर के अश्वेत और हाशिये पर रह रहे लोगों का नेता बना दिया और भी वह दुनिया में कहीं भी किसी भी तरह के भेदभाव के खिलाफ जंग की एक बड़ी प्रेरणा बने हुए हैं।

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