नेपाल में राष्‍ट्रपति के फैसले से अस्थिरता के हालात, सुप्रीम कोर्ट के आसपास कड़ी की गई सुरक्षा

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Updated May 23, 2021 | 17:10 IST

नेपाल में प्रतिनिधि सभा को भंग करने के राष्‍ट्रपति विद्या देवी भंडारी के फैसले से अस्थिरता के हालात पैदा हो गए हैं। विपक्षी गठबंधन की गतिविधियों के बीच सुप्रीम कोर्ट के आसपास सुरक्षा बढ़ा दी गई है।

नेपाल में अल्पमत की सरकार का नेतृत्व कर रहे प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली 
नेपाल में अल्पमत की सरकार का नेतृत्व कर रहे प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली   |  तस्वीर साभार: AP, File Image

काठमांडू : नेपाल के प्राधिकारियों ने रविवार को उच्चतम न्यायालय की इमारत के आस-पास सुरक्षा कड़ी कर दी। मीडिया में आई खबर के मुताबिक अधिकारियों ने यह कदम राष्ट्रपति द्वारा प्रतिनिधि सभा को 'असंवैधानिक' तरीके से भंग करने के खिलाफ विपक्षी गठबंधन के नेताओं द्वारा शीर्ष अदालत में रिट याचिका दायर करने की तैयारी के बीच उठाया।

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने शनिवार को पांच महीने में दूसरी बार प्रतिनिधि सभा को भंग करने का आदेश जारी किया। उन्होंने अल्पमत की सरकार का नेतृत्व कर रहे प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सलाह पर नवंबर में मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा की। उन्होंने प्रधानमंत्री ओली और विपक्षी गठबंधन के सरकार बनाने के दावे को खारिज कर दिया।

बढ़ाई गई सुरक्षा

ओली और विपक्षी नेता शेर बहादुर देउबा ने अलग-अलग राष्ट्रपति से मुलाकात कर सरकार बनाने का दावा पेश किया था। हिमालयन टाइम्स ने खबर दी कि विपक्षी गठबंधन के नेता अदालत का रुख करने की तैयारी कर रहे हैं, सुरक्षा बलों ने उच्चतम न्यायालय सिंहदरबार इलाके में निगरानी बढ़ा दी है। नेपाली पुलिस ने कहा कि इलाके में भीड़ और प्रदर्शन को रोकने के लिए सुरक्षा बढ़ाई गई है।

उन्होंने बताया कि पुलिस ने कुछ राजनीतिक समूहों के लोगों को गिरफ्तार किया है जो सरकार के कदम के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन करने उतरे थे। खबर के मुताबिक नेपाली कांग्रेस, माओवादी केंद्र, उपेंद्र यादव नीत जनता समाजवादी पार्टी-नेपाल और राष्ट्रीय जनमोर्चा के नेता रिट याचिका दायर करने के लिए सांसदों के हस्ताक्षर एकत्रित कर रहे हैं।

वहीं, दूसरी ओर सत्तारूढ़ सीपीएन-यूएमएल के माधव नेपाल, झालानाथ खनाल गुट के नेताओं के भी याचिका पर हस्ताक्षर करने की उम्मीद है। विपक्षी गठबंधन ने शनिवार को आगे की रणनीति पर चर्चा करने के लिए बैठक की थी और एकजुट होकर सरकार के कथित अंसवैधानिक, पीछे ले जाने वाले, अधिनायकवादी कदम का राजनीतिक और कानूनी तरीके से विरोध करने का फैसला किया था।

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