बीजिंग : चीन ने बृहस्पतिवार को कहा कि उसका नया भूमि सीमा कानून मौजूदा सीमा संधियों के कार्यान्वयन को प्रभावित नहीं करेगा और संबंधित देशों को 'सामान्य कानून' के बारे में 'अनुचित अटकलें' लगाने से बचना चाहिए। चीन की यह टिप्पणी कानून पर भारत द्वारा आपत्ति जताए जाने के एक दिन बाद आई है। चीन की राष्ट्रीय विधायिका- नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) ने 23 अक्टूबर को भूमि सीमा क्षेत्रों के संरक्षण पर नया कानून अपनाया। इस पर भारत ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है, क्योंकि इसे पूर्वी लद्दाख में दोनों पक्षों के बीच लंबे समय से चले आ रहे सैन्य गतिरोध के बीच पारित किया गया।
भारत और भूटान दो ऐसे देश हैं जिनके साथ चीन को अभी सीमा समझौतों को अंतिम रूप देना है, जबकि बीजिंग 12 अन्य पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद सुलझा चुका है। दिल्ली और बीजिंग के बीच जहां 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर विवाद है तो चीन और भूटान के बीच लगभग 400 किलोमीटर लंबी सीमा पर विवाद है। भारत ने नया भूमि सीमा कानून लाने पर बुधवार को बीजिंग पर हमला बोलते हुए कहा कि वह उम्मीद करता है कि चीन कानून के 'बहाने' सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थिति को 'एकतरफा' रूप से बदलने वाली कोई भी कार्रवाई करने से बचेगा।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कानून लाने के चीन के फैसले को 'चिंता' का विषय बताया क्योंकि इसका सीमा के प्रबंधन और समग्र सीमा प्रश्न संबंधी मौजूदा द्विपक्षीय समझौतों पर प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने कहा, 'ऐसा कानून लाने का चीन का एकतरफा फैसला हमारे लिए चिंता का विषय है जो सीमा प्रबंधन के साथ-साथ सीमा के सवाल पर हमारी मौजूदा द्विपक्षीय व्यवस्था पर प्रभाव डाल सकता है।' भूमि सीमा कानून पर सवालों के जवाब में, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा, “यह एक सामान्य घरेलू कानून है जो हमारी वास्तविक जरूरतों को पूरा करता है और अंतरराष्ट्रीय परिपाटी की पुष्टि भी करता है।
विदेश मंत्रालय के नियमित संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा, 'इस कानून में अपने पड़ोसी देशों के साथ चीन के सहयोग और भूमि सीमा मुद्दों से निपटने के लिए स्पष्ट शर्तें हैं।' भारत की चिंताओं के स्पष्ट संदर्भ में, वांग ने कहा, 'यह चीन की मौजूदा सीमा संधियों के कार्यान्वयन को प्रभावित नहीं करेगा और न ही यह पड़ोसी देशों के साथ हमारे सहयोग में मौजूदा परिपाटी को बदलेगा।' उन्होंने कहा, 'इसका मतलब यह नहीं है कि सीमा संबंधी मुद्दे पर हमारे रुख में बदलाव आया है।'
भारत द्वारा कानून की आलोचना किए जाने से संबंधित एक सवाल के जवाब में वांग ने कहा, 'मैंने अभी आपको कानून के पीछे के विचारों के बारे में जानकारी दी है। हमें उम्मीद है कि संबंधित देश चीन में सामान्य कानून के बारे में अनुचित अटकलें लगाने से बचेंगे।' इससे पहले, एनपीसी द्वारा पिछले हफ्ते अपनाए गए नए कानून के प्रावधानों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए वांग ने कहा कि राष्ट्रपति शी चिनपिंग ने 'डिक्री नंबर 99' पर हस्ताक्षर किए, जिसमें घोषणा की गई कि कानून 1 जनवरी, 2022 से लागू होगा।
उन्होंने कहा, 'कानून का अनुच्छेद 62 इसे लागू करने में सैन्य और स्थानीय क्षेत्रीय विभागों के कर्तव्यों को निर्धारित करता है। यह सीमांकन प्रक्रियाओं के लिए नियम निर्धारित करता है और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के रूप में सीमाओं के रक्षा और प्रबंधन के क्षेत्रों को भी शामिल करता है।' उन्होंने कहा, 'चीन की 22,000 किलोमीटर की भूमि सीमा है। इसके 14 पड़ोसी देश हैं। कानून की घोषणा सीमा प्रबंधन को मजबूत करने और प्रासंगिक सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए एकीकृत मानकों का समन्वय करने के लिए है।'
वांग ने कहा, 'यह कानून के शासन को आगे बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय है। यह एक सामान्य घरेलू कानून है जो हमारी वास्तविक जरूरतों को पूरा करता है और अंतरराष्ट्रीय परिपाटी की पुष्टि भी करता है।' भारत और भूटान दो ऐसे देश हैं जिनके साथ चीन को अभी सीमा समझौतों को अंतिम रूप देना है, जबकि बीजिंग 12 अन्य पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद सुलझा चुका है। दोनों पक्ष यह कहते रहे हैं कि सीमा मुद्दे के अंतिम समाधान तक सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बनाए रखना आवश्यक है।
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता बागची ने अपने बयान में यह भी कहा था कि भारत को उम्मीद है कि चीन इस कानून के बहाने भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में स्थिति को एकतरफा बदल सकने वाली कोई कार्रवाई करने से बचेगा। प्रवक्ता ने कहा, 'इसके अलावा, इस नए कानून का पारित होना हमारे विचार में 1963 के तथाकथित चीन-पाकिस्तान "सीमा समझौते" को कोई वैधता प्रदान नहीं करेगा, जिसके बारे में भारत सरकार लगातार कहती रही है कि यह एक अवैध समझौता है।'
समझौते के तहत, पाकिस्तान ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) का लगभग 5,300 किलोमीटर क्षेत्र चीन को सौंप दिया था। बागची चीन के नए भूमि सीमा कानून पर मीडिया के सवालों का जवाब दे रहे थे, जो पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों के बीच 17 महीने से जारी सीमा गतिरोध के बीच आया है। भारत और चीन की सेनाओं के बीच पूर्वी लद्दाख में पिछले साल पांच मई को पैंगोंग झील क्षेत्र में हिंसक झड़प के बाद गतिरोध उत्पन्न हो गया था और फिर दोनों पक्षों ने धीरे-धीरे हजारों सैनिकों के साथ-साथ सीमा पर भारी अस्त्र-शस्त्र भी तैनात कर दिए थे।
पिछले साल 15 जून को गलवान घाटी में भीषण झड़प के बाद दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया था। कई दौर की सैन्य और कूटनीतिक वार्ता के बाद दोनों पक्षों ने फरवरी में पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारे से तथा अगस्त में गोगरा क्षेत्र से सैनिक पीछे हटा लिए थे। गत 10 अक्टूबर को हुई एक और दौर की वार्ता गतिरोध के साथ समाप्त हुई जिसके लिए दोनों पक्षों ने एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराया था।