कहा जाता है कि हर देश की एक सेना होती है लेकिन यह बात पाकिस्तान पर लागू नहीं होती है। पाकिस्तान दुनिया के ऐसे कुछ देशों में शुमार है जिसकी सेना के पास एक देश है। पाकिस्तान के शीर्ष कारोबारियों के साथ वहां के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के साथ बुधवार को एक लंबी और गोपनीय बैठक हुई। इस बैठक के बाद यह बात फिर साबित हो गई कि पाकिस्तान में सेना ही सब कुछ है। सेना के आगे वहां किसी लोकतांत्रिक संस्थाओं का कोई वश नहीं चलता। सेना जो चाहे करे उसके फैसलों पर कोई सवाल नहीं उठा सकता।
पाकिस्तानी सेना का इतिहास दागदार रहा है। वह चुनी हुई सरकारों को सत्ता से उखाड़कर बाहर फेंकती आई है। जब-जब उसे नागरिक सरकारों से चुनौती मिलती दिखा या उनके हितों का टकराव हुआ तब-तब सेना ने अपनी ताकत के बल पर तख्तापलट किया और अपनी हुकूमत चलाई। दरअसल, पाकिस्तान कहने मात्र को एक लोकतांत्रिक देश है। यहा सबकुछ सेना नियंत्रित करती है। उसने लोकतांत्रिक संस्थाओं को पनपने नहीं दिया है। सभी महत्वपूर्ण जगहों पर सेना के लोग काबिज हैं। यह बात इसी से समझी जा सकती है कि उसकी अंतरिक्ष एजेंसी सुपार्को का नियंत्रण सेना के जनरल रैंक के अधिकारी के हाथ में है। अंतरिक्ष एजेंसी में वैज्ञानिकों को होना चाहिए लेकिन यह विडंबना है कि सेना का जनरल अंतरिक्ष कार्यक्रमों को देखता है।
पाकिस्तान की आर्थिक हालत अपनी बदहाली के सबसे खराब दौर से गुजर रही है। उसकी अर्थव्यवस्था की हालत ऐसी हो गई है कि वह कोई बड़ा झटका बर्दाश्त नहीं कर सकती। महंगाई अपने चरम पर है। पाकिस्तान में पेट्रोल से ज्यादा महंगा दूध बिक रहा है। एक नॉन (रोटी) की कीमत 12 रुपए है। पाकिस्तानी रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार लुढ़क रहा है। एक डॉलर की कीमत 162 रुपए से ज्यादा की हो गई है। वह दिन ज्यादा दूर नहीं है जब एक डॉलर की कीमत 250 रुपए तक पहुंच जाएगी। पाकिस्तान में नया निवेश नहीं हो रहा है। कारोबारियों को सहूलियतें नहीं मिल रही हैं। व्यापारी और कारोबारी देश के माहौल से निराश हैं। कारोबारियों की सबसे ज्यादा निराशा सरकार से है क्योंकि उनका मानना है कि सरकार की कथनी और करनी में अंतर है। सरकार कारोबारी दशा सुधारने के लिए लंबे-चौड़े वादे करती है लेकिन धरातल पर कुछ नहीं होता।
कारोबारियों में भरोसा जगाने के लिए जनरल बाजवा के दखल के कई मायने हैं। एक तो वैश्विक समुदाय में इस बात का साफ संकेत गया है कि पाकिस्तान की इमरान खान सरकार में वह काबिलियत एवं योग्यता नहीं है जो अपने कारोबारियों की चिंताओं एवं समस्याओं का हल निकाल सके। अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर इमरान सरकार नाकाम हो गई है। इमरान को सरकार में आए एक साल से ज्यादा का समय बीत चुका है। इन एक सालों में अर्थव्यवस्था संभलने की बजाय वह लड़खड़ाती गई है। अपने चुनाव प्रचार में इमरान ने बड़े-बड़े दावे किए थे लेकिन उन्होंने अपने वादों से यू-टर्न ले लिया। इमरान देश में कारोबार के लिए अनुकूल माहौल बनाने में भी असफल रहे। यही नहीं उन्होंने राजस्व बढ़ाने के लिए कारोबारियों एवं आम नागिरकों पर तरह-तरह के टैक्स लगा दिए। इससे व्यापारी और आम नागरिकों में इमरान सरकार के प्रति आक्रोश दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।
(डिस्क्लेमर: इस प्रस्तुत लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता है।)