Imran Khan News: पाकिस्तान में अब करीब-करीब साफ हो गया है कि इमरान खान की सरकार जाने वाली हैं। क्योंकि नेशनल असेंबली में उनके पास बहुमत नही है और सुप्रीम कोर्ट ने असेंबली को भंग करने के फैसले को पलट दिया है। ऐसे में आने वाले दिनों में नई सरकार का गठन होगा या फिर आम चुनाव होंगे इसकी तस्वीर कुछ दिनों में साफ हो जाएगी। लेकिन इस बीच सबसे हैरान करने वाला रवैया पाकिस्तान की सेना का रहा है। जो बार-बार यह जताने की कोशिश कर रही है कि उसकी पाकिस्तान की राजनीति में कोई दखल नहीं है। असल में उसकी सफाई ही असल हकीकत बयां करती है।
ऐसा है सेना का रसूख
पाकिस्तान को आजाद हुए करीब 74 साल हो चुके हैं। उसमें करीब 21 साल पाकिस्तान की कमान सैन्य शासकों के पास रही है। और उसका असर यह हुआ कि एक तो पाकिस्तान की सेना को सत्ता का स्वाद मिल गया। दूसरे उसने इस अवधि में बड़े पैमाने पर पाकिस्तान के सिविल सिस्टम में पैठ बना ली। ऐसे में चाहे सैन्य शासक सीधे तौर पर सत्ता न संभाले लेकिन रिमोट कंट्रोल उन्हीं के पास रहता है। और वह कोई ऐसी सरकार नहीं चाहते हैं जो उनके सिस्टम को हिला सके। इसीलिए जब 2018 में पाकिस्तान में इमरान खान सत्ता में आए तो उन्हें इलेक्टेड नहीं सेलेक्टेड कहा जाता था। पाकिस्तान के राजनीति, बिजनेस में सेना का किस तरह दखल हो चुका है। इसका खुलासा 2016 की एक रिपोर्ट करती है।
20 अरब डॉलर का बिजनेस
साल 2016 में तत्ताकालीन रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने नेशनल असेंबली में बताया था 'पाकिस्तान की सेना करीब 50 प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। जिसके जरिए 20 अरब डॉलर का बिजनेस किया जा रहा है।' अहम बात यह है कि अगर सेना के बिजनेस की लिस्ट देखा जाय तो वह काफी हैरान करने वाली है। क्योंकि उसे देखकर यही सवाल उठता है कि अगर ये काम सेना करती है तो फिर वहां की सरकार क्या करती है..
1. बेकरी
2. बैंकिंग
3. पॉवर प्लांट
4.शुगर फैक्ट्री
5.ट्रांसपोर्ट नेटवर्क
6.हाउसिंग कॉलोनी
7. सीमेंट
8. गैस
9.एयरलाइन सर्विसेज आदि
जो कि फौजी फाउंडेशन, शाहीन फाउंडेशन, बहरियाा फाउंडेशन, ऑर्मी वेलफेयर ट्रस्ट, और डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी के जरिए संचालित किए जा रहे थे। इसके अलावा पब्लिक सेक्टर कंपनी नेशनल लॉजिस्टिक्स सेल (NLC), फ्रंटियर वर्क्स ऑर्गनाइजेशन (FWO) और स्पेशल कम्युनिकेशंस ऑर्गनाइजेशन (SCO) का भी प्रबंधन पाकिस्तान सेना के पास है।
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पाकिस्तान में सेना का कब रहा शासन
1947 में आजाद होने के बाद पाकिस्तान के पहले 10 साल में 7 प्रधानमंत्री बने। इस अस्थिरता का सेना ने फायदा उठाया। और तत्कालीन सेना प्रमुख अयूब खान ने 1959 के आम चुनाव से पहले तत्कालीन राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा के साथ मिलकर सैनिक शासन लागू कर दिया । और इस तरह वह पाकिस्तान के पहले सैन्य शासन बन गए। अयूब खान का 1959 से लेकिन 1969 तक पाकिस्तान में शासन रहा। अयूब खान के दौर से सेना को सरकार का स्वाद मिल गया। उनके दौर में पाकिस्तान के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को जमीन आवंटित करने की भी परंपरा शुरू हुई। और फिर उसके बाद चाहे किसी की भी सरकार को पाकिस्तान में सेना के इशारे पर सब-कुछ होने लगा।
इसके बाद 1977 में पाकिस्तान के सेना प्रमुख मोहम्मद जिया उल हक ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो को कुर्सी से हटाकर फिर से सेना का शासन लागू कर दिया गया। बाद में भुट्टों को फांसी दे दी गई। और बाद जिया-उल-हक का सैनिक शासन 1985 तक चला। जियाल उल हक के बाद परवेज मुशर्रफ ने फिर 1999 में सैनिक शासन लगा दिया और उनका शासन 2002 तक चला।
शीत युद्ध से मिली मजबूती
पाकिस्तानी सेना को अमेरिका और तत्तकालीन सोवियत संघ के बीच चल रहे शीत युद्ध का भी फायदा मिला। क्योंकि उस दौरान अमेरिका रूस को कमजोर करने के लिए पाकिस्तान की सेना आधुनिकतम हथियार सप्लाई कर रहा था। जिसका असर यह हुआ कि पाकिस्तान सेना का राजनीति में दखल बढ़ा। और वह अपने बढ़ते रसूख की वजह से राजनीतिज्ञों पर हावी हो गई।
अब आगे क्या
एक बात तो साफ है कि जिस तरह अचानक साल 2020 में इमरान खान के खिलाफ विपक्ष ने एकजुट होकर मोर्चा बनाया और धुर-विरोधी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) गुट ने हाथ मिलाया है। यह पाकिस्तान की राजनीति में कोई सामान्य घटना नहीं है। साफ है कि बैकडोर से कहीं न कहीं पाकिस्तान सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा अहम भूमिका निभा रहे हैं। जिसकी तस्वीर कुछ दिनों बाद साफ हो सकती है। इस बीच यह कयास लगाए जा रहे हैं कि विपक्ष पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता शहबाज शरीफ के नेतृत्व में मिली-जुली सरकार बना सकता है। हालांकि पाकिस्तान की राजनीति में आगे कुछ भी हो लेकिन सेना की पैठ को देखते हुए, उसके बिना कुछ होना संभव नहीं दिखता है।