आतंकवाद के खिलाफ पाक का दोहरा रुख, यासीन मलिक की सजा के खिलाफ संसद में प्रस्ताव पारित

आखिर कोई पाकिस्तान की नीयत पर शक क्यों ना करे। ताजा मामला यासीन मलिक से जुड़ा है। जेकेएलएफ मुखिया को भारत में एनआईए कोर्ट ने सजा सुनाई है तो पाकिस्तान की संसद ने संयुक्त सत्र में सजा के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है।

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भारत में यासीन मलिक को सजा, पाक संसद में प्रस्ताव पारित 

यासीन मलिक को एनआईए कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। ऐसी सजा जिसे उसे जिंदा रहने तक भुगतना होगा। मलिक को सजा जब मिली तो पीडीपी मुखिया महबूबा मुफ्ती बिलबिला उठीं। पाकिस्तान की तरफ से भी विरोध की आवाज आई। लेकिन हद तो तब हो गई जब पाकिस्तान की संसद में संयुक्त सत्र में मलिक की सजा के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया।

मलिक के समर्थन में पाकिस्तान के सभी दल
खास बात यह है कि पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ ने तो सजा के ऐलान के साथ ही दुनिया के अलग अलग मुल्कों से अपील करते हुए कहा कि वो भारत सरकार का विरोध करें। लेकिन बात सिर्फ शहबाज शरीफ तक ही नहीं रुकी। इस समय भारत पर फिदा इमरान खान के सुर भी शरीफ जैसे थे। उन्होंने कहा कि जो फैसला आया है उसकी वो मुखालफत करते हैं। शहबाज शरीफ ने कहा था कि भारत में जो राजनैतिक कैदी हैं उनके साथ किस तरह का सलूक किया जा रहा है उस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। यासीन मलिक को सजा का अर्थ है कि भारत में मानवाधिकारों का कोई मूल्य नहीं है।

सजा दिलाने में जैक, जॉन की महत्वपूर्ण भूमिका
जैक’, ‘जॉन’ और ‘अल्फा’ राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) के उन संरक्षित गवाहों में से कुछ नाम हैं जिन्होंने प्रतिबंधित जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक को सजा दिलवाने में अहम भूमिका निभाई।ये नाम आतंकी वित्त पोषण मामले में महत्वपूर्ण संरक्षित गवाहों को उनकी सुरक्षा के लिए पहचान छिपाते हुए दिए गए थे। आतंकवाद के वित्त पोषण मामले में एनआईए ने 70 स्थानों पर छापे के दौरान लगभग 600 इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त किए थे।
दिल्ली की अदालत ने बुधवार को मलिक को आतंकवाद के वित्त पोषण मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

घटनाक्रम से अवगत अधिकारियों ने बताया कि लगभग चार दर्जन संरक्षित गवाह थे लेकिन कूट (कोड) नाम केवल कुछ चुनिंदा लोगों को दिए गए थे जो एक पुख्ता मामला बनाने में मदद कर सकते थे।मामले की जांच एजीएमयूटी कैडर के 1996 बैच के आईपीएस अधिकारी महानिरीक्षक अनिल शुक्ला के नेतृत्व में एनआईए की एक टीम ने की थी, जिसके तत्कालीन निदेशक शरद कुमार संगठन का नेतृत्व कर रहे थे।कुमार ने गुरुग्राम में अपने घर से  बताया, “फैसला निश्चित रूप से मामले की जांच करने वाली टीम की कड़ी मेहनत का इनाम है। मैं सजा से बहुत संतुष्ट हूं। उसने (यासीन) मौत की सजा से बचने के लिए अपराध स्वीकार कर चतुराई दिखाई। लेकिन फिर भी, उसकी सजा को देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने का सपना देखने वालों के लिए एक निवारक के रूप में काम करना चाहिए।”

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अधिकारियों ने कहा कि अब अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में तैनात शुक्ला एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखे जाते हैं, जिन्होंने अलगाववादियों को धन की आपूर्ति रोककर कश्मीर घाटी में पथराव की घटनाओं को समाप्त किया। उन्होंने मामले में संरक्षित गवाह रखने की नीति का पालन करने का फैसला किया था ताकि कोई कोर-कसर न रह जाए।मलिक (66) के खिलाफ आरोप तय करते समय, विशेष एनआईए न्यायाधीश ने संरक्षित गवाहों ‘जैक’, ‘जॉन’ और ‘गोल्फ’ समेत अन्य पर भरोसा किया था, जिन्होंने प्रदर्शन और बंद के लिये अन्य हुर्रियत नेताओं के साथ सैयद अली शाह गिलानी और मलिक की नवंबर 2016 में हुई बैठकों के बारे में उल्लेख किया था।


 

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