Pakistan Political Situation: भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की बात की जाए तो ये साफ है कि भारत से अलग होकर बना नया मुल्क पाकिस्तान (Pakistan) आज सालों बाद भी भारत के मुकाबले कहां खड़ा है ये जगजाहिर है, वहां की राजनीति मुख्यत: भारत विरोध पर ही टिकी है और कहा जाता है कि वहां कि सत्ता उसके ही हाथों आती है जो भारत का जितना विरोध करता है और कश्मीर के मुद्दे (Kashmir Issue) पर अलगाववादियों की विचारधारा का और 'कश्मीर की आजादी' का समर्थन करता है, पाकिस्तान के पूर्व पीएम इमरान खान भी इसी एजेंडे पर चलते रहे और अब नए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ (Shahbaz Sharif) भी इससे जुदा नहीं है...
पाकिस्तान की सरकार के साथ बिडंबना ये है कि वहां की अवाम कोई भी सरकार तो बनवा देती है मगर उसमें शामिल नेता ही अपनी जड़ों में मट्ठा डालने के काम में लग जाते हैं और वहां इंटरनल पॉलिटिक्स इतनी ज्यादा है कि वहां की सरकारें अपना कार्यकाल पूरा ही नहीं कर पाती हैं।
पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री बने शहबाज शरीफ ने शपथ ग्रहण के बाद अपना मंत्रिमंडल गठन करने में खासा समय लिया बताया जा रहा है कि इसके पीछे की वजह ये थी "कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा"... .यानी इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने के लिए अलग-अलग ताल ठोंक रहे विपक्षी दलों को एक साथ लाने में खासी मशक्कत करनी पड़ी।
हालांकि इन सभी को भी सत्ता की ऑक्सीजन चाहिए थे, क्योंकि लंबे अरसे ये सब सत्ता में आने की पुरजोर कोशिश कर रहे थे लेकिन उनका दांव लग नहीं पा रहा था, इसलिए जैसे ही मौका मिला ये सब एक दूसरे को पानी पी-पीकर कोसने वाले दल एक छाते के तले आ गए और अब बारी थी सत्ता का आनंद भोगने की तो वहां उनमें से तमाम लोगों को मिला झटका यानी जैसी वो मंत्रिमंडल में भागीदारी की उम्मीद कर रहे थे वैसा हुआ नहीं....
अब यहीं से आपसी मतभेद परत-दर-परत सामने आने लगे शहबाज शरीफ के मंत्रिमंडल के 34 सदस्यों ने कई दिन के विलंब के बाद आखिरकार 19 अप्रैल को पद की शपथ ली। पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी के नए मंत्रिमंडल के सदस्यों को पद की शपथ दिलाने से इनकार करने के बाद सीनेट के अध्यक्ष सादिक संजारानी ने उन्हें शपथ दिलवाई। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो-जरदारी का नाम नए मंत्रियों में शामिल नहीं था।
मंत्रिमंडल के गठन के बाद जमीयत उलेमा ए इस्लाम के अध्यक्ष मौलाना फजलुर्रहमान (Maulana Fazlur Rehman) ने कहा, 'अभी जो नई हुकूमत बनी है, जाहिर है कि वो एक साल के लिए है , ज्यादा से ज्यादा वो भी ज्यादा से ज्यादा । लेकिन इस हुकूमत के अंदर जमीयत उलमा ए इस्लाम का अपना वजूद है, अपना स्टैंड है। हम उनसे कह रहे हैं कि हमें फौरी तौर पर इलेक्शन चाहिए।' गौर हो कि शरीफ सरकार (Shahbaz Sharif) का कार्यकाल अभी डेढ़ साल बचा है, ऐसे में 1 साल का जिक्र ये इशारा करता है कि फजलुर्रहमान मंत्री पद बंटवारे से बेहद खफा हैं।
शहबाज शरीफ के एक और बड़े सहयोगी PPP अध्यक्ष बिलावल भुट्टो शहबाज शरीफ सरकार में मंत्री पद में बंटवारे से खफा हैं कहा जा रहा है कि उनका नाम विदेश मंत्री के तौर पर लिया जा रहा था लेकिन ऐसा हुआ नहीं, साथ ही बताते हैं कि पीपी पंजाब के गवर्नर,सीनेट चेयरमैन और कुछ अन्य पदों पर अपने उम्मीदवार नियुक्त करवाना चाहती है, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है सो जाहिर सी बात है नाराजगी चरम पर है तो बिलावल नवाज शरीफ से मिलने के लिए लंदन चले गए, हालांकि वहां भी उनकी नाराजगी दूर हुई हो इसमें संशय ही है।
शहबाज शरीफ ने प्रधानमंत्री बनते ही वही पुराना कश्मीर राग छेड़ दिया है उन्होंने भारत के साथ बातचीत के मुद्दे पर कहा कि वो भारत के साथ शांति चाहते हैं, लेकिन पहले कश्मीर का मुद्दा सुलझाना होगा,गौर हो कि भारत का रुख साफ है कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है और पाकिस्तान को इसमें दखल देने का कोई हक नहीं है वो अपने मुल्क तक ही सीमित रहे, लेकिन ये पाकिस्तान को स्वीकार नहीं तो जाहिर सी बात है कि शहबाज शरीफ भी इससे इतर नहीं हैं।
ऐसे में ये कहना गलत ना होगा कि पाकिस्तान के नए पीएम शहबाज शरीफ के लिए आने वाला टाइम बहुत ही झंझावतों भरा रहने वाला है और उनके लिए उनके अपने ही सहयोगी दल परेशानी का सबब बनते रहेंगे उपर से बेकाबू महंगाई अपना काम कर ही रही है।