इस्लामाबाद : अफगानिस्तान में तालिबान की बढ़त के साथ ही जो दो देश इसे मान्यता देने को आतुर दिख रहे थे, उनमें चीन के साथ-साथ पाकिस्तान भी शामिल रहा है। तालिबान को लेकर पाकिस्तान के रुख को प्रधानमंत्री इमरान खान के उस बयान से भी समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने अफगानिस्तान में तालिबान राज का समर्थन करते हुए यहां तक कह दिया कि इसने 'मानसिक गुलामी' की जंजीरों को तोड़ा है। लेकिन अब पाकिस्तान के सुर बदले-बदले से नजर आ रहे हैं।
अब तक अफगानिस्तान में तालिबान के शासन को मान्यता देने की जल्दबाजी में दिख रहे पाकिस्तान का अब कहना है कि इस बारे में वह कोई भी फैसला एकतरफा नहीं लेगा। पाकिस्तान के सूचना एवं प्रसारण मंत्री फवाद चौधरी ने मंगलवार को इस संबंध में सरकार का रुख स्पष्ट किया। उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'पाकिस्तान, तालिबान पर एकतरफा निर्णय नहीं लेगा। नए अफगान शासन को मान्यता देने से पहले अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय दृष्टिकोण पर भी विचार किया जाएगा।'
तालिबान को लेकर पाकिस्तान के रुख में आए इस बदलाव को पाकिस्तान की सरकार में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से प्रतिबंधों के डर के तौर पर भी देखा जा रहा है। विशेषज्ञ पहले ही चेता चुके हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद अगर हालात बिगड़ते हैं और पाकिस्तान की नजदीकी तालिबान से बढ़ती है तो इस्लामाबाद को अमेरिका की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है और ऐसे में अमेरिका तथा पाकिस्तान के संबंध तनावपूर्ण बने रहेंगे।
पाकिस्तान, जो पहले ही आतंकवाद के वित्तपोषण के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं करने को लेकर आतंकी फंडिंग पर नजर रखने वाली वैश्विक संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ग्रे लिस्ट में है, पर तालिबान को लेकर उसके रुख को लेकर अगर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ओर से कोई प्रतिबंध लगाया जाता है तो उसकी आर्थिक स्थिति के लिए यह और भी मुश्किलभरा हो सकता है।
जानकारों के मुताबिक, उसे तालिबान के मसले पर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में अलग-थलग पड़ने का भी डर है। ऐसे में तालिबान को लेकर पाकिस्तान के रुख में आए बदलाव को आसानी से समझा जा सकता है।