नई दिल्ली : भारत के साथ 2+2 रणनीतिक वार्ता के लिए अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो और रक्षा मंत्री मार्क एस्पर सोमवार को नई दिल्ली पहुंच रहे हैं। इस बातचीत में भारत की तरफ से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर हिस्सा लेंगे। इस बैठक में दोनों देश अपने रणनीतिक साझेदारी की समीक्षा करने के साथ-साथ द्विपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए एक खाका तैयार करेंगे। साथ ही हिंद प्रशांत भेत्र में चीन के प्रभाव को कम करने सहित क्षेत्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा हो सकती है।
BECA कार पर मुहर लग सकती है
सूत्रों की मानें तो अमेरिका के साथ बेसिक एक्सचेंज एंड को-ऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA) पर मुहर लग सकती है। इसके अलावा रक्षा सौदों पर भारत और अमेरिका आगे बढ़ सकते हैं। अमेरिकी विदेश मंत्री भारत की यात्रा के बाद श्रीलंका, मालदीव और इंडोनिशेया जाएंगे। कुल मिलाकर पोंपियो की यह यात्रा काफी महत्वपूर्ण है लेकिन चीन ऐसा दिखाने की कोशिश कर रहा है कि पोंपियो का यह दौरा साधारण है और इसका कोई लाभ नहीं होने वाला है।
ग्लोबल टाइम्स में दिखी झुंझलाहट
चीन सरकार की यह झुंझलाटह उसके मुखपत्र 'ग्लोबल टाइम्स' में दिखी है। समाचार पत्र ने लिखा है कि इन देशों को चीन के खिलाफ एकजुट करने के लिए पोंपियो की यह यात्रा हो रही है। समाचार पत्र ने पोंपियो की यात्रा के दौरान BECA समझौते का जिक्र किया है। समाचार पत्र का कहना है कि अमेरिका श्रीलंका और मालदीव से चीन के साथ आर्थिक सहयोग कम करने के लिए कह सकता है। इसके अलावा वह दक्षिण चीन सागर में चीन के खिलाफ सख्त रुख अख्तियार करने के लिए जकार्ता पर दबाव डाल सकता है।
पोंपियो की आलोचना की
समाचार पत्र ने आगे लिखा है, 'पोंपियो की यह यात्रा उनके करीब तीन साल के समापन के तौर पर देखी जा सकती है। उनके कार्यकाल की उपलब्धि यह रही है कि उन्होंने चीन के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर एक समूह बनाने का अथक प्रयास किया है। चीन विरोधी रुख रखने वाले पोंपियो अपनी इस कोशिश में बहुत कम हासिल कर पाए हैं।'
'चीन पर मनोवैज्ञानिक दबाव नहीं बनेगा'
इस दौरे पर 'ग्लोबल टाइम्स' आगे लिखता है, 'अमेरिका के नजदीक जाकर भारत सीमा विवाद में चीन के ऊपर बढ़त हासिल करना चाहता है। भारत चीन का पड़ोसी देश है और उसकी ताकत बीजिंग से कमजोर है। क्या भारत अमेरिका के एंटी चाइना रुख के अग्रिम मोर्चे पर खड़ा होगा? ऐसा नहीं होगा। भारत-अमेरिका के बढ़ते संबंध चीन को चिंतित कर सकते हैं लेकिन यह बीजिंग पर कोई मनोवैज्ञानिक दबाव नहीं बना पाएगा। चीन कोई सामरिक लाभ नई दिल्ली को नहीं देगा।'
'मालदीव और श्रीलंका छोटे देश हैं'
पत्र के मुताबिक मालदीव और श्रीलंका छोटे देश हैं और इनका हित दुनिया के शक्तिशाली देशों के साथ अपने संबंध मधुर रखने में हैं। ये देश अपने यहां निवेश और ज्यादा पर्यटक चाहते हैं। अमेरिका इन दोनों देशों में कोई निवेश नहीं करेगा। चूंकि इतने बड़े देश के विदेश मंत्री उनके यहां आ रहे हैं इसलिए दोनों देश उनका गर्मजोशी के साथ स्वागत करेंगे। साथ ही मालदीव और श्रीलंका कोई बड़ा वादा नहीं करेंगे क्योंकि चीन ने इन दोनों देशों के आर्थिक विकास में काफी सहयोग दिया है।
'इतिहास में पोंपियों का मजाक उड़ेगा'
पत्र ने आगे लिखा है कि 'पोंपियो अमेरिकी इतिहास के सबसे खराब विदेश मंत्रियों में से एक हैं लेकिन वह खुद को काफी सक्षम समझते हैं। वह सोचते हैं कि वैश्वीकरण के युग में वह अंतरराष्ट्रीय संबंधों के तर्क को बदल देंगे लेकिन इतिहास में 'विदूषक' के रूप में उनका मजाक बनेगा क्योंकि उनकी कार्यशैली ऐतिहासिक चलन एवं वास्तविकता को स्वीकर करने के खिलाफ है।