Sri Lanka in Crisis And Rajpaksa Family: साल 1948 में आजाद होने के बाद श्रीलंका का राजनीतिक इतिहास परिवारों के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा है। देश की सत्ता में सबसे पहले भंडारनायके परिवार की एंट्री हुई थी। उसके बाद यह सिलिसिला जयवर्द्धने, सेनानायके परिवारों से होता हुआ राजपक्षे परिवार तक पहुंचा। इन सात दशकों में लेकिन राजपक्षे परिवार ने जैसा श्रीलंका की राजनीति में दबदबा रखा, वैसे कोई और नहीं कर पाया।
एक समय राजपक्षे परिवार के 6 सदस्य श्रीलंका के शीर्ष पदों पर बैठे हुए थे। एक तरफ जहां गोटाबाया राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति थे, वहीं उनके भाई महिंदा राजपक्षे देश के प्रधानमंत्री , दूसरे भाई चमाल राजपक्षे सिंचाई मंत्री जबकि तीसरे भाई बासिल राजपक्षे वित्त मंत्री थे। जबकि महिंदा राजपक्षे के बेटे नमल राजपक्षे खेल मंत्री और चमाल राजपक्षे के बेटे शशींद्र राजपक्षे कृषि मंत्री थे। यानी चार भाई और 2 बेटे मिलकर श्रीलंका की सत्ता चला रहे थे। साफ है जिस तरह सभी प्रमुख पदों पर राजपक्षे परिवार की मौजूदगी थी, उसे साफ था कि राजपक्षे परिवार का श्रीलंका की सत्ता पर कब्जा था। और आज जो लोगों का गुस्सा परिवार के खिलाफ फूटा है, वह उसी दबदबे का नतीजा है।
पिछले 17 साल में 13 साल राजपक्षे परिवार के पास सत्ता
श्रीलंका में पहली बार राजपक्षे परिवार के पास पूर्ण सत्ता साल 2005 में आई। जब महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति बने, उसके बाद उनकी मदद के लिए उनके भाई गोटबाया राजपक्षे अमेरिका से वापस लौटे और बाद में डिफेंस सेक्रेटरी बने। श्रीलंका में एलटीटीई के खात्म का श्रेय राजपक्षे परिवार को जाता है। लेकिन इस दौरान उन पर संयुक्त राष्ट्र संघ सहित अन्य संस्थाओं के जरिए मानव अधिकार उल्लंघन का आरोप लगा। 2015 तक श्रीलंका में राजपक्षे परिवार की सत्ता रही। और उसके बाद विपक्ष के पास श्रीलंका की कमान पहुंची
लेकिन 4 साल बाद 2019 में एक बार फिर राजपक्षे परिवार ने चुनावों में सत्ता हासिल कर ली और इस बार गोटबाया राजपक्षे राष्ट्रपति बने। लेकिन इस बार की सत्ता बेहद अलग थी। धीरे-धीरे राजपक्षे परिवार के 6 सदस्य सत्ता पर काबिज हो चुके थे। इस बीच कोविड-19, ईस्टर पर आतंकी हमले, रूस-यूक्रेन युद्ध और राजपक्षे परिवार की गलत नीतियों की वजह से श्रीलंका में वह हुआ जो कभी नहीं हुआ।
करीब 26 साल तक गृह युद्ध का सामना करने वाले श्रीलंका की स्थिति उस समय भी उतनी बुरी नहीं हुई, जितनी की आज है।बीते 12 अप्रैल को ऐसा पहली बार हुआ, जब श्रीलंका सरकार ने अंतरराष्ट्रीय पेमेंट डिफॉल्ट कर दिया। उसके बाद हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि देश के 62 लाख से ज्यादा लोगों को भरपेट खाना तक नहीं मिल रहा है। महंगाई दर 80 फीसदी के पार पहुंच चुकी है। पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस नहीं है, स्कूल बंद हैं, दवाइयों कि किल्लत हैं। श्रीलंका दिवालिया हो चुका है और राष्ट्रपति गोटबाया देश छोड़कर फरार हैं। और लोग सड़कों पर है। राष्ट्रपति भवन पर आम लोगों का कब्जा है।
इन फैसलों ने बिगाड़े हालात