Sri Lanka Crisis: पिछले हफ्ते जब श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने देश के दिवालिया होने की बात, संसद में कहीं, उसी समय यह साफ हो गया था कि लंका अब और गहरे संकट की ओर बढ़ रहा है। जिससे निकलने का रास्ता इस वक्त मौजूदा सरकार को सूझ नहीं रहा है। रानिल विक्रमसिंघे ने बयान में यह भी साफ तौर पर कहा था कि इस आर्थिक संकट से अभी निजात नहीं मिलने वाली है, यह संकट 2023 में भी जारी रहेगा। उनके बयान के ठीक 3 दिन बाद श्रीलंका में लोगों का गुस्सा राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे पर उतरा। और भुखमरी, महंगाई से लेकर, जरूरी वस्तुओं की किल्लत का सामना कर रहे लोगों के सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया।
उनके घर के सामने करीब 1 लाख प्रदर्शनकारी पहुंच गए। जान बचाने के लिए राजपक्षे राष्ट्रपति भवन से भाग गए हैं। ऐसी खबरें हैं कि उन्होंने श्रीलंका छोड़ दिया है। इस बीच श्रीलंका के राष्ट्रपति भवन के स्वीमिंग पुल, किचन, बेडरूम से लेकर दूसरी जगहों की तस्वीर अब पूरी दुनिया में वायरल हो रही हैं। इन परिस्थितियों में सबसे बड़ा सवाल यही है कि श्रीलंका का आगे क्या होगा ...
श्रीलंका में अराजकता
श्रीलंका के मौजूदा हालात काफी अराजक हैं। वहां पर सरकार का शासन से नियंत्रण खत्म हो चुका है। सेना प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने की थोड़ी बहुत कोशिश कर रही है। लेकिन हालात पूरी तरह से नियंत्रण से बाहर है। और प्रदर्शनकारियों की मांग है कि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे इस्तीफा दे। बढ़ते दबाव के बीच प्रधानमंत्री कार्यालय के तरफ से कहा गया है कि 13 जुलाई को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे इस्तीफा दे देंगे। इसके अलावा श्रीलंका की मौजूदा कैबिनेट भी इस्तीफा देगी। और सभी दलों के द्वारा मिल कर बनी अंतरिम सरकार को सत्ता सौंप देगी। इस बीच विपक्षी दल भी सभी दलों की अंतरिम सरकार के गठन के लिए राजी हो गए हैं।
इस संकट में श्रीलंका का संविधान क्या कहता है
श्रीलंका के संविधान के अनुसार यदि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों इस्तीफा देते हैं, तो संसद का स्पीकर अधिकतम 30 दिनों के लिए कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा। संसद अपने सदस्यों में से 30 दिनों के भीतर एक नए राष्ट्रपति का चुनाव करेगी, जो बचे कार्यकाल के अनुसार यानी मौजूदा स्थिति में दो वर्षों के लिए राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा।
श्रीलंका पर करीब 51 अरब डॉलर का कर्ज हैं। और वह उसके ब्याज चुकाने में भी असमर्थ है। जून में वह 7 अरब डॉलर के पेमेंट को चुकाने में फेल रहा है। ऊपर से 80 फीसदी से ज्यादा खाद्य महंगाई दर ने जनता को बेहाल कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार देश की 62 लाख लोग भरपेट भोजन पाने के लिए भी मजबूर है। दवाओं की किल्लत है, आयात ठप है। हालात यह है कि देश में पेट्रोल-डीजल नहीं के बराबर हैं। स्कूल और अन्य सेवाएं तेल की बचत के लिए बंद कर दी गई हैं।
आईएमएफ के साथ हो रही डील भी अटकी
इस बीच श्रीलंका को राहत पैकेज देने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)से चल रही बातचीत भी अटक गई है। इसके पहले जून के महीने में आईएमएफ की टीम श्रीलंका पहुंची थी। और रानिल विक्रमसिंघे सरकार के साथ राहत पैकेज के लिए बातचीत कर रही थी। श्रीलंका में आईएमएफ के वरिष्ठ मिशन प्रमुख पीटर ब्रेउर और श्रीलंका के लिए आईएमएफ मिशन प्रमुख मासाहिरो नोजाकी ने रविवार को कहा है कि हम श्रीलंका में चल रहे घटनाक्रम पर करीब से नजर रखे हुए हैं। हम जल्द ही मौजूदा संकट को खत्म होने की उम्मीद कर रहे हैं। इसके बाद आईएमएफ से एक बार फिर राहत पैकेज के लिए बातचीत शुरू हो सकेगी। इस बीच हम तकनीकी स्तर पर वित्त मंत्रालय और श्रीलंका के सेंट्रल बैंक के अधिकारियों के साथ बातचीत जारी रखे हुए हैं।
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नई सरकार के गठन के बाद खुलेगा रास्ता
राजनीतिक घटनाक्रम और आईएमएफ के बयान से साफ है कि श्रीलंका में आर्थिक संकट को दूर करने रास्ता नई सरकार के गठन के बाद ही तैयार हो पाएगा। और इसके लिए उसे आईएमएफ के राहत पैकेज से ही बड़ी उम्मीद है। इसके लिए प्रधानमंत्री रानिल विक्रम सिंघे ने भारत, चीन, रूस से भी मदद की अपील की है। भारत पहले से ही श्रीलंका को आर्थिक सहायता दे रहा है। भारत करीब 4 अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन सहायता दे चुका है।
राजपक्षे परिवार पर लोगों का फूटा गुस्सा
श्रीलंका में गृहयुद्ध जैसे हालात के लिए सबसे ताकतवर राजनीतिक परिवार राजपक्षे को जिम्मेदार माना जा रहा है ।फरवरी 2022 तक राजपक्षे परिवार के 5 सदस्यों के पास देश के सबसे अहम पद थे। गोटबाया राजपक्षे के पास श्रीलंका का राष्ट्रपति, उनके भाई महिंद्र राजपक्षे प्रधानमंत्री, इसी तरह वित्त मंत्री का पद बासिल राजपक्षे, सिंचाई मंत्री का पद चामल राजपक्षे और खेल मंत्री का पद नामल राजपक्षे के पास था। और परिवार के दूसरे सदस्य भी अहम पदों पर काबिज थे ।असल में राजपक्षे परिवार पिछले 17 साल में 13 श्रीलंका की सत्ता पर काबिज रहा है।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका में हालात बिगड़ने के बीज 2019 के राष्ट्रपति चुनाव के समय ही बो दिए गए थे। जब तत्कालीन राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार गोटबाया राजपक्षे ने यह ऐलान किया कि वह अगर चुनाव जीतते हैं तो टैक्स में भारी कटौती करेंगे। राजपक्षे का यह चुनावी दांव तो चल गया लेकिन उसका नुकसान अब श्रीलंका को उठाना पड़ रहा है। चुनाव जीतने के बाद 15 फीसदी वैल्यू एडेड टै्कस (VAT)को घटाकर 8 फीसदी कर दिया गया। इसके अलावा दूसरी रियायतें भी दी गई। लिहाजा सरकार की खर्च की तुलना में कमाई घट गई।
इसके अलावा श्रीलंका सरकार ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के नाम पर उर्वरक आयात पर प्रतिबंध लगा दिया। जिसका असर कृषि उत्पादन पर सीधा हुआ। लगातार गिरती अर्थव्यवस्था की एक वजह कोविड-19 की वजह से पर्यटन का बैठ जाना भी था। और उसके बाद सुधरते हालात में 2019 में ईस्टर के मौके पर आतंकवादी हमले ने विदेशी पर्यटकों का भरोसा तोड़ दिया। और आज इस स्थिति में श्रीलंका पहुंच गया है।