नई दिल्ली: श्रीलंका पूर्ण पैमाने पर आर्थिक मंदी में हैं। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में पिछले वर्ष रिकॉर्ड 3.6 प्रतिशत की गिरावट आई। आपातकाल से पहले वहां दूध, गैस, केरोसीन जैसी घरेलू चीजों की भारी कमी हो गई थी। इनकी खरीद के लिए लोगों को लंबी कतारें लगानी पड़ रही हैं। विपक्ष का आरोप है कि इस अभाव के लिए खुद सरकार जिम्मेदार है, जिसने विदेशी मुद्रा बचाने के लिए पिछले साल मोटर वाहनों, कच्चे तेल, इलेक्ट्रॉनिक सामानों, कपड़ों, कॉस्मेटिक्स और मसालों का आयात रोक दिया। यह कहना ग़लत नहीं होगा कि श्रीलंका अप्रत्याशित दौर से गुज़र रहा है। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया की आर्थिक स्थिति की कमर तोड़ दी है।
इस आर्थिक संकट के प्रचंड रूप को कम करने के लिए आर्थिक आपातकाल लगाया गया है। आपको बता दें कि इसे सार्वजनिक सुरक्षा अध्यादेश कहा जाता है। लेकिन बड़ी बात यह है कि जिस आर्थिक संकट की मार पूरा देश हिल रहा है उससे कहीं ज्यादा महंगाई की मार लोगों को त्रस्त कर रही है। देश की आर्थिक स्थिति ठीक करने के लिए महंगाई आसमान छू रही है। जिसे नियंत्रित करने के लिए SRR को 2% से दोगुना करके 4% कर दिया गया है साथ ही ब्याज दरें भी बढ़ाएं गए हैं।
राष्ट्रपति गौतबाया राजपक्षे ने घोषणा की है कि श्रीलंका पूरी तरह से जैविक खेती करेगा। इसलिए श्रीलंका में सभी रासायनिक उर्वरकों और सभी कीटनाशकों पर तुरंत प्रतिबंध लगा दिया गया, जिसके फलस्वरूप फसलें बर्बाद हो रही हैं, चाय उद्योग अपने उत्पादन में 50% नुकसान देख रहा है। वहीं बाकी फसलों को कीड़े मकौड़े खा गए या उत्पादन ही कम हुआ। राष्ट्रपति गौतबाया राजपक्षे के इस अतार्किक फैसले का विरोध करने वाला पूरे सरकार में कोई नहीं था।
किसी ने यह प्रश्न तक नहीं किया कि अचानक जैविक खेती पर स्विच करने के लिए श्रीलंका तैयार नहीं है और इससे भरी नुकसान होगा। श्रीलंका के सामने वर्तमान में सामाजिक, आर्थिक और शासन संबंधी चुनौतियां हैं। कोई भी पदाधिकारी या नेता , राष्ट्रपति गौतबाया राजपक्षे से प्रश्न करने की ताकत नहीं रखता, ऊपर से नीचे तक पूरे तंत्र में जी-हुज़ूरी ही फैली हुई है। साथ ही श्रीलंका में मौलिक अधिकार, लोकतांत्रिक संस्थानों, सामाजिक सामंजस्य और सतत विकास के मामलों में जवाबदेही की कमी है।
श्रीलंका के आर्थिक संकट की स्थिति पैदा होने के बाद सबसे अहम सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसी स्थिति बनने की वजह क्या राष्ट्रपति गौतबाया राजपक्षे और उनकी उल-जलूल नीतियां हैं? क्या कोई राष्ट्रपति की बात काटने वाला न होने की वजह से श्रीलंका को इस घोर संकट का सामना करना पड़ा? सत्य तो यह ही है कि जब भी किसी सरकार में शासक को प्रश्न करने वाला कोई नहीं होता है, तब-तब देश को घोर आपदा का सामना करना पड़ता है, चाहे वह श्रीलंका हो या चीन या हमारा भारत।
आपातकालीन प्रावधान सरकार को आवश्यक खाद्य पदार्थों के लिये खुदरा मूल्य निर्धारित करने और व्यापारियों से स्टॉक ज़ब्त करने की अनुमति देते हैं।आपातकालीन कानून अधिकारियों को वारंट के बिना लोगों को हिरासत में लेने, संपत्ति को ज़ब्त करने, किसी भी परिसर में प्रवेश करने और तलाशी लेने, कानूनों को निलंबित करने तथा आदेश जारी करने में सक्षम बनाता है, इन पर अदालत में सवाल नहीं उठाया जा सकता है। सेना उस कार्रवाई की निगरानी करेगी जो अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने की शक्ति देती है कि आवश्यक वस्तुओं को सरकार द्वारा गारंटीकृत कीमतों पर बेचा जाए।
भारत से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 2005 से 2019 के वर्षों में लगभग 1.7 बिलियन डॉलर था साथ ही कोलंबो बंदरगाह भारत के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत के ट्रांस-शिपमेंट कार्गो का 60% संभालता है। अब यह सब निवेश और सम्बन्ध खतरे में है। इस साल की शुरुआत से ही दोनों पड़ोसियों के बीच संबंध खराब होते दिख रहे हैं। इसी साल फरवरी में, श्रीलंका ने घरेलू मुद्दों का हवाला देते हुए कोलंबो बंदरगाह के पूर्वी कंटेनर टर्मिनल परियोजना में भारत और जापान के साथ त्रिपक्षीय साझेदारी से पीछे हट गया।
वहीं 2020 की जुलाई में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका (CBSL) के साथ सार्क करेंसी स्वैप फ्रेमवर्क 2019-22 के तहत 400 मिलियन डॉलर तक की withdrawal के लिए एक मुद्रा-स्वैप समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। भले ही यह समझौता 13 नवंबर 2022 तक वैध था, लेकिन भारत ने श्रीलंका के मौजूदा आर्थिक असंतुलन और International Monetary Fund programme की कमी के कारण, समझौते को विराम दे दिया है, साथ ही इसकी रिन्यूअल भी नहीं किया।
वर्ष 2017 में चीन के कर्ज की वजह से ही श्रीलंका को अपना हंबनटोटा बंदरगाह 99 साल की लीज पर चीन को देना पड़ा। इसके बावजूद श्रीलंका ने चीन से कर्ज लेना कम नहीं किया। । इसी साल श्रीलंका और चीनी संस्थानों के बीच कई लोन पर negotiations हो चुकी हैं जिसके तहत, China Development Bank ने 1.3 बिलियन डॉलर का बजटीय समर्थन सिंडिकेटेड ऋण के रूप में श्रीलंका को दिया। वहीं इसी साल मार्च में पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना के साथ श्रीलंका का 1.5 बिलियन डॉलर का currency swap pact समझौता भी हुआ है ।
एशिया के शिपिंग मार्गों में श्रीलंका का प्रमुख रणनीतिक स्थान है, जिसकी वजह से चीन ने श्रीलंका की इंफ्रास्ट्रक्चर में 2006 से 2019 के बीच लगभग $12 बिलियन भारी निवेश किया है। मई में, श्रीलंका ने कोलंबो पोर्ट सिटी आर्थिक आयोग अधिनियम पारित किया, जो बंदरगाह के चारों ओर एक विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने का प्रावधान रखता है, साथ ही इस अधिनियम में चीन द्वारा फंडेड एक नया आर्थिक आयोग स्थापित करने का प्रावधान भी है।
आने वाले वक़्त में श्रीलंका अपने आर्थिक संकट से उबरने के लिए चीन के साथ बहुत बड़े समझौते कर सकता है। यह समझौते भारत के लिये आने वाले वक़्त में बहुत हानिकारक साबित हो सकते हैं । वह भी उस वक़्त जब भारत पहले से ही अफगानिस्तान और म्यांमार के साथ कूटनीतिक तंगी पर है। बांग्लादेश, नेपाल और मालदीव जैसे अन्य दक्षिण एशियाई देश भी बड़े पैमाने पर basic infrastructure projects के वित्तपोषण के लिए चीन की ओर रुख कर रहे हैं। इसलिए हिंद महासागर क्षेत्र में अपने रणनीतिक हितों को संरक्षित करने के लिए, भारत को श्रीलंका के साथ नेबरहुड फर्स्ट की नीति का पोषण करना महत्वपूर्ण होगा, यद्यपि सावधानी के साथ, वरना वर्ल्ड आर्डर में "हम फर्स्ट-हम फर्स्ट" की रेस में भारत बहुत पीछे छूट जाएगा।