20वीं सदी दो बड़े विश्व युद्ध का गवाह बना था। उन दोनों विश्व युद्ध में 1939 से 1945 के बीच चली लड़ाई को मानव जात कभी भूल नहीं सकता। उस युद्ध का अंत विनाश के तौर पर जिसका दंश जापान आज भी झेल रहा है। हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिकी द्वारा एटम बम गिराए जाने के बाद तबाही का जो मंजर सामने आया दिल दहलाने वाला था। लेकिन उस तबाही के बीच हम एक ऐसे शख्स सुनाओ त्सुबोई के बारे में बताएंगे जो जिंदा बच गए थे और उन्होंने उस मंजर को बयां किया था। हालांकि अब वो इस दुनिया में नहीं हैं,96 वर्ष की उम्र में 24 अक्टूबर को उन्होंने अस्पताल में आखिरी सांस ली।
हिरोशिमा पर हमले के समय 20 वर्ष के थे सुनाओ
6 अगस्त 1945 को जब हिरोशिमा पर एटम बम गिराया गया 20 वर्ष के सुनाओ त्सुबोई अपने कॉलेज जा रहे थे। एटम बम के हमले में उनकी जान तो बच गई थी लेकिन शरीर जल गया था। शरीर पर जगह जगह घाव थे। उस हमले में करीब एक लाख 40 हजार लोगों की जान गई थी। वो बताते हैं कि 6 अगस्त को वो नंगे करीब तीन घंटे तक दौड़े।
20 वर्षीय त्सुबोई, जो उस समय एक इंजीनियरिंग का छात्र था, बमबारी के 40 दिन बाद बेहोशी से निकला जब युद्ध समाप्त हो गया था।त्सुबोई इतने कमजोर और जख्मी थे कि अपनी चेतना में वापस लौटने के बाद उन्हें फर्श पर रेंगने का अभ्यास करना शुरू करना पड़ा।सुनाओ त्सुबोई ने जापान के स्कूलों में गणित पढ़ाया और युवाओं को युद्ध के दौरान अपने अनुभवों के बारे में बताया। 'कभी हार न दें' सुनाओ त्सुबोई का ट्रेडमार्क वाक्यांश था। विशेष रूप से परमाणु हथियारों के बिना दुनिया के लिए उनकी लड़ाई के लिए।
कैंसर से थे पीड़ित
सुनाओ त्सुबोई ने परमाणु बम हमले के कारण संपर्क में आए विकिरण के दुष्प्रभाव के रूप में वर्षों से कैंसर और अन्य बीमारियों का विकास किया था। वह अपने कामकाजी जीवन की अवधि अस्पताल में एनीमिया के इलाज के लिए बिताते हैं। जब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हिरोशिमा की अपनी ऐतिहासिक यात्रा की, तो उन्होंने त्सुबोई से मुलाकात की।