काबुल: हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण में यह बात सामने निकलकर आई है कि 69 प्रतिशत अफगान लोग भारत को अफगानिस्तान के "सबसे अच्छा दोस्त" देश मानते हैं। ब्रुसेल्स स्थित एक समाचार वेबसाइट ईयू रिपोर्टर ने बताया कि अफगानिस्तान के लोगों के बीच एक सर्वेक्षण किया गया था, जिसमें आम लोगों के उनके अतीत, वर्तमान परिदृश्य और उनकी भविष्य की आकांक्षाओं के आकलन से संबंधित सवाल पूछे गए और जानकारिया जुटाई गईं।
आंकड़ों से पता चलता है कि 67 प्रतिशत से अधिक अफगान लोगों का मानना है कि अमेरिका द्वारा निकासी के लिए चुनी गई गलत और कुप्रबंधित निकासी की वजह से ही पाकिस्तान और चीन को अवसर मिला और उन्होंने तालिबान को काबुल पर कब्जा करने के लिए प्रोत्साहित किया। अफगानिस्तान में भारत के मजबूत हित और सामरिक हित हैं। दोनों देशों के बीच बहुत प्राचीन ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं। पाकिस्तान के सभी प्रयासों के बावजूद, लोगों से लोगों के स्तर पर भारत-अफगानिस्तान संबंध अच्छे रहे हैं।
राजनयिक स्तर पर निरंतर शून्यता भारत के हितों के लिए खतरा है और सामान्य अफगानों के बीच भारत द्वारा की गई मेहनत पर पानी फेर सकता है। भारत इस क्षेत्र के देशों में अफगानिस्तान में सबसे बड़ा डोनर रहा है जिसने लगभग 3 बिलियन डॉलर का दान दिया है, और यह दुनिया में (अफगानिस्तान के लिए) पांचवां सबसे बड़ा डोनर है। बुनियादी ढांचे के निर्माण से लेकर मेडिकल स्टाफ और भोजन की टीम भेजने तक, भारत की मदद कई प्रकार की रही है।। काबुल में एक शानदार नया संसद भवन भारत की ओर से एक उपहार है, हालांकि विडंबना यह है कि यह उस देश में असंगत लगेगा जो लोकतंत्र को मानने से इंकार करता है।
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अफगानी नागरिक इलाज के लिए भारत आ रहे हैं। बड़ी संख्या में अफगान छात्रों को भारतीय कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में नामांकित किया गया है। भारतीय सैन्य अकादमी (देहरादून) नियमित रूप से अफगान कैडेटों को स्वीकार करती रही है। भारत तालिबान शासित अफगानिस्तान को मानवीय सहायता प्रदान करता रहा है। दोनों देशों के बीच व्यापार काफी हद तक पाकिस्तान के हठधर्मिता के कारण नहीं पनपा है, जिसने अफगानिस्तान को भारतीय निर्यात के लिए अपना भूमि मार्ग खोलने से इनकार कर दिया है।
सर्वे के मुताबिक, आंकड़ों से पता चला कि 78 प्रतिशत लोगों का मानना है कि पिछली सरकार भ्रष्ट थी और विदेशों द्वारा दी जाने वाली सहायता कभी जरूरतमंदों को नहीं मिली और 72 प्रतिशत लोगों का मानना है कि तालिबान का अधिग्रहण स्थानीय नेताओं के भ्रष्टाचार के कारण हुआ। यूरोपीय संघ के रिपोर्टर ने सर्वेक्षण के हवाले से कहा कि 78 प्रतिशत लोगों का मानना है कि तालिबान को उसके पड़ोसी देशों से विदेशी सहायता का एक बड़ा हिस्सा मिला लेकिन इसका लाभ अफगान लोगों को निहीं मिला।
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