Taliban News: अलकायदा सरगना अलजवाहिरी मार दिया गया है। उसका भी हश्र उसके आका ओसामा बिन लादेन की तरह हुआ है। फर्क इतना है कि लादेन पाकिस्तान में मारा गया और जवाहिरी अफगानिस्तान में। अलकायदा के इन दोनों सरगनाओं के मारे जाने में एक सबसे बड़ी समानता यह कि दोनों सत्ता प्रतिष्ठानों के बेहद करीब मारे गए। मई 2011 में लादेन ऐबटाबाद में पाकिस्तानी सेना के प्रशिक्षण सेंटर से महज 800 मीटर की दूरी पर मारा गया तो जवाहिरी काबल के पॉश इलाके में। काबुल का यह इलाका उस राष्ट्रपति महल से महज ढाई किलोमीटर की दूरी पर है जहां से तालिबान देश का शासन चलाता है। जवाहिरी के मारे जाने के बाद कई चीजें साफ हुई हैं और कई सवाल उभरे हैं।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या तालिबान दुनिया की आंखों में धूल झोंक रहा है। पिछले अगस्त में चुनी हुई सरकार का तख्तापलट कर सत्ता में आने वाले तालिबान ने विश्व को यह जताने की कोशिश की कि वह बदल गया है। उसमें पहले जैसी क्रूरता नहीं रही। वह अंतरराष्ट्रीय नियमों एवं समझौतों का पालन करेगा। उसने महिलाओं को अधिकार देने और समावेशी सरकार चलाने का वादा किया था। दुनिया को उसका सबसे बड़ा वादा था कि वह अपनी धरती का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों एवं आतंकियों को पालने-पोसने के लिए नहीं होने देगा। लेकिन अलजवाहिरी का मारा जाना उसके वादों पर सवाल खड़ा करने वाला है।
रिपोर्टों की मानें तो काबुल के जिस पॉश इलाके के सेफ हाउस में जवाहिरी अपने परिवार के साथ छिपा हुआ था। वह घर सराजुद्दीनी हक्कानी का है। सराजुद्दीन तालिबान सरकार में मंत्री है। जाहिर है कि तालिबान जवाहिरी की खातिरदारी कर रहा था और उसे संरक्षण दे रहा था। यह घटना बताती है कि आतंकवाद को लेकर तालिबान की सोच नहीं बदली वाली है। वह बदल गया है, ऐसा सोचना खुद को धोखे में रखना है। सवाल यह है कि क्या अमेरिका अब तालिबान के खिलाफ कोई कार्रवाई करेगा। रिपोर्टों की मानें तो सराजुद्दीन हक्कानी को तालिबान सरकार में शामिल कराने के लिए पाकिस्तान के खुफिया एजेंसी आईएसआई के तत्कालीन प्रमुख काबल गए थे और तालिबान सरकार में सराजुद्दीन हक्कानी को अहम पद देने की सिफारिश की थी। जाहिर है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों ने अलकायदा को प्रश्रय दिया है। दोनों देश दुनिया की आखों में धूल झोंक रहे हैं।
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रिपोर्टें इस बात की भी हैं कि तालिबान के सत्ता में आ जाने के बाद अलकायदा अफगानिस्तान में ज्यादा सक्रिय हो गया था। उसके आतंकवादी खुले घूम रहे थे। इस बात की जानकारी अमेरिका को भी हुई। इसके बाद उसने जवाहिरी को घेरने और उसे मार गिराने का अभियान शुरू किया। चर्चा इस बात की भी है कि जवाहिरी के ठिकाने की जानकारी किसी ने लीक की। हो सकता हो कि तालिबान या हक्कानी नेटवर्क से ही यह जानकारी लीक हुई है लेकिन एक मंत्री के घर में दुनिया के इतने बड़े आतंकी की मौजूदगी ज्यादा समय तक छिपी रह भी नहीं सकती। काबुल में जवाहिरी की मौजूदगी की भनक लग जाने के बाद अमेरिका चुपचाप बैठा रहेगा, यह सोचना गलत होगा। अमेरिका ने वही किया जो उसने 2011 में किया था। इस बार उसका तरीका दूसरा था। इस बार उसने रिपर ड्रोन भेजा और दो हेलफायर मिसाइल दाग कर जवाहिरी का काम तमाम कर दिया।
तालिबान और अलकायदा अगर यह सोचते हैं कि अफगानिस्तान से निकल जाने के बाद वे अमेरिका और उसकी सेना की पहुंच से दूर हो चुके हैं तो वे गलत हैं। अमेरिका की इस कार्रवाई ने यह साफ कर दिया है कि भले ही वह दूर है लेकिन अफगानिस्तान का हर एक हिस्सा उसकी जद में है। वह जब चाहे अपनी तकनीक एवं हथियार से उन्हें निशाना बना सकता है। ओसामा की तरह यह भी काफी जटिल ऑपरेशन था। जवाहिरी इमारत की जिस बालकनी में नजर आया।
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मिसाइल से केवल उसी हिस्से को निशाना बनाया गया। हमले में बाकी इमारत को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। इस तरह के सटीक हमले बहुत ही पुख्ता एवं सटीक जानकारी पर होते हैं। पिन प्वाइंट एकुरेसी के साथ हमला करने के लिए बेहतर कोऑर्डिनेट की जरूरत होती है जो कि सीआईए के पास थी। बहरहाल, अमेरिका ने अपने दूसरे दुश्मन जवाहिरी का अंत कर दिया है। तालिबान अपने वादे से मुकरा है। इसके लिए अमेरिका और दुनिया के देश तालिबान के खिलाफ कोई कार्रवाई करते हैं या नहीं, यह देखने वाली बात होगी।