नई दिल्ली। फर्ज करें कि अगर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस से कुलभूषण जाधव को फौरी तौर पर राहत नहीं मिली होती तो क्या होता। पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने एकतरफा कार्रवाई करते हुए मौत की सजा मुकर्रर कर दी। लेकिन भारत सरकार के अथक प्रयास के बाद मामला आईसीजे तक पहुंचा और कुलभूषण को अपनी बेगुनाही साबित करने का मौका मिला। यह बात अलग है की पाकिस्तान की तरफ से अड़चनें पैदा की जाकी रही। कुलभूषण जाधव पर आज पाकिस्तान के इस्लामाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई होगी।
कुलभूषण जाधव का मुद्दा इस्लामाबाद हाईकोर्ट में
अगर सुनवाई के तरीके पर गौर करें तो जाधव के खिलाफ या समर्थन में पाकिस्तान खुद है। इसका अर्थ यह है कि मुद्दई, गवाह और मुंसफ सब कुछ पाकिस्तान ही है। भारत सरकार की तरफ से जाधव को भारतीय वकील मुहैया कराने की मांग थी। लेकिन पाकिस्तान किसी भयवश उस मांग को ठुकरा दिया। हकीकत यह है कि पाकिस्तान दिखावे के नाम पर सुनवाई ही कर रहा है। दरअसल पाक ने जाधव को काउंसलर पहुंच की सुविधा तो दी लेकिन उसमें कई तरह के प्रतिबंध थे।
पाकिस्तान के रवैये पर शक
इंडियन नेवी के अवकाश प्राप्त अधिकारी कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान ने अगवा कर उनसे झूठे कबूलनामे करवाए। झूठे कबूलनामों के आधार पर जासूसी और आतंकवाद' के जुर्म में वहां की एक सैन्य अदालत ने अप्रैल 2017 में जाधव को फांसी की सजा सुनाई। इसके खिलाफ भारत ने आईसीजे का रुख किया। इंटरनैशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने जाधव की फांसी पर रोक लगा दी। पिछले साल आईसीजे ने पाकिस्तान को वियना कन्वेंशन के उल्लंघन का दोषी ठहराते हुए उसे भारत को जाधव तक राजनीतिक पहुंच मुहैया कराने का आदेश दिया था।