US Recession and Impact on India:क्या अमेरिका में मंदी ने दस्तक दे दी है, आधिकारिक रूप से भले ही अभी इसको स्वीकार नहीं गया है लेकिन आकंड़े इसी बात के संकेत दे रहे हैं। कॉमर्स विभाग द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार अमेरिका की जीडीपी (GDP)लगातार दूसरी तिमाही में निगेटिव ग्रोथ में हैं। जून तिमाही में जीडीपी दर -0.9 फीसदी रही है। जबकि पहली तिमाही में जीडीपी दर -1.6 फीसदी रही थी। लगातार दो तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट निगेटिव रहने से तकनीकी रूप से अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी के दौर में पहुंच चुकी है। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन हो या फिर फेडरल रिजर्व प्रमुख जेरोम पावेल ने मंदी की संभावना से इंकार किया है।
महंगाई ने बिगाड़ा खेल
अमेरिका में जिस तरह महंगाई 40 साल के उच्चतम स्तर पर है। उसका असर मांग पर पड़ा है। जून में महंगाई 9.1 फीसदी पर पहुंच गई है। जो कि फेड रिजर्व के सामान्य स्तर से 2 फीसदी ज्यादा है। इसी वजह से फेड रिजर्व ने ब्याज दरों में एक बार फिर 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी है। इस बढ़ोतरी के साथ पिछले दो बार में फेड रिजर्व 1.5 फीसदी तक ब्याज दरें बढ़ा चुका है। ब्याज दरों में बढ़ोतरी पर फेडरल रिजर्व के प्रमुख जेरोम पावेल ने कहा है कि अमेरिकी इकोनॉमी के लिए सबसे बड़ा जोखिम लगातार बढ़ती महंगाई दर है। हालांकि आर्थिक मंदी को लेकर फेड के अध्यक्ष ने इतनी चिंता नहीं जताई है। वहीं उसने आगे ब्याज दरों में बढ़ोतरी के रफ्तार में कमी के भी संकेत दिए हैं।
निगेटिव ग्रोथ के बावजूद जो बाइडेन और पावेल इसलिए अभी भी मंदी की आशंका नहीं जता रहे हैं, इसकी एक बड़ी वजह है, रोजगार के आंकड़े हैं। असल में अमेरिका में निगेटिव ग्रोथ के बावजूद हर महीने 4 लाख का नौकरी मिलना है। अमेरिकी राजस्व सचिव जेनेट येलन ने कहा, जब हर महीने 4 लाख से ज्यादा नौकरियां पैदा कर रहे हों, तो यह मंदी नहीं है।
भारत पर क्या होगा असर
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अगर मंदी की ओर बढ़ रही है, तो उसका निश्चित तौर पर दुनिया भर पर असर पड़ेगा। हालांकि ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट इस मामले में भारत के लिए बड़ी राहत देती है। उसके अनुसार एशिया में भारत अकेला ऐसा देश है जहां पर मंदी की जीरो फीसदी संभावना है। उसकी एक बड़ी वजह भारत का खुद का बाजार। है जिसकी वजह से घरेलू मांग बड़े स्तर पर राहत देगी।
जहां तक अमेरिका से भारत के कारोबार की बात है तो अगर मंदी आती है तो भारत के सबसे बड़े एक्सपोर्ट मार्केट पर असर होगा। यूनाइटेड स्टेट सेसंस ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार साल 2021 में भारत ने अमेरिका को करीब 73 अरब डॉलर का एक्सपोर्ट किया था। जबकि अमेरिका से 40 अरब डॉलर का निर्यात किया था। जाहिर है अमेरिका में मंदी से भारत के निर्यात पर सीधा असर होगा।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था को जिस तरह मंदी की ओर जाने से रोकने के लिए फेडरल रिजर्व ने लगाता ब्याज दरें बढ़ाई हैं। उसे देखते हैं निवेशक (FII) आने वाले समय इमर्जिंग इकोनॉमी से बिकवाली करेंगे। और वह मंदी की आशंका को देखते हुए गोल्ड और दूसरे सुरक्षित जगहों पर निवेश करेंगे। वहीं अमेरिका में ऊंची ब्याज दरों की वजह से वहां पर निवेश कर सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो उसका असर भारतीय शेयर बाजार पर दिखेगा। केवल 2022 में भारतीय बांड और इक्विटी बाजार से विदेशी निवेशकों ने 30 अरब डॉलर से ज्यादा का पूंजी निकाल ली है।
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हालांकि मंदी से कच्चे तेल की कीमतों पर सीधा असर हो सकता है। और अगर 2008 की मंदी के दौर से तुलना की जाय तो उस समय कच्चे तेल के दाम 35 डॉलर प्रति बैरल पर आ गए थे। भारत करीब 80 फीसदी पेट्रोलियम उत्पादों को आयात करता है। अगर कच्चे तेल की कीमतें गिरी तो भारत के चालू खाता घाटा में कमी आएगी।
इसके अलावा IMFके ताजा अनुमान में दुनिया में साल 2022-23 में सबसे ज्यादा ग्रोथ रेट 7.4 फीसदी रहेगी। जबकि स्पेन की 4.0 फीसदी और चीन की 3.3 फीसदी ग्रोथ रहेगी। वहीं उसने अमेरिका की ग्रोथ रेट भी 2.3 फीसदी का अनुमान जताया है। और अगर ऐसा होता है तो साफ है कि अमेरिकी की जीडीपी की गिरावट का दौर जल्द निकल जाएगा।