नई दिल्ली। पूरी दुनिया में कोरोना के कुल मामले में अब तक 35 लाख के आंकड़े को पार कर चुके हैं और 2 लाख से ज्यादा लोग काल के गाल में समा चुके हैं। चीन के वुहान से तबाही वाला वायरस चाहे विकसित देश हों विकासशील हर एक को परेशान कर रहा है। हर एक को उम्मीद वैक्सीन में है। लेकिन पुख्ता तौर पर यह कोई नहीं बता पा रहा है कि कोरोना का मुकाबला करने वाली वैक्सीन कब तक आएगी। ब्रिटेन के वैज्ञानिक चेडाक्स 1 के सितंबर में आने का दावा कर रहे हैं ।
डोनाल्ड ट्रंप का दावा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भरोसा है कि इस साल के अंत तक वैक्सीन बाजार में होगी। इसका अर्थ यह है कि कोरोना के साथ पूरी दुनिया को कम से कम दिसंबंर तक जीना है। इन सबके बीच अमेरिका ने रेमडिसिवियर दवा के इस्तेमाल की इजाजत दी है हालांकि इसका इस्तेमाल इमरजेंसी में किया जा रहा है। इससे पहले हाइड्राक्सीक्लोरोक्वीन का इस्तेमाल किया जा रहा था। लेकिन कुछ वजहों से इस दवा के इस्तेमाल पर आंशिक रोक लगा दी गई है।
चेडॉक्स -1 पर परीक्षण जारी
ब्रिटेन के शोधकर्ताओं का कहना है कि वो इस वायरस के इलाज के लिए बनायी जा रही वैक्सीन चेडॉक्स के अंतिम चरण में हैं। इस वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल जारी है और इसके बेहतर नतीजे आ रहे हैं। लेकिन कुछ जानकारों का कहना है कि जिस तरह से कोरोना वायरस अपने नेचर को बदल रहा है उसमें कोई एक खास वैक्सीन पूरी दुनिया के काम आ सके इसे लेकर संदेह है। वैज्ञानिक कहते हैं कि ठंडे देशों में इस वायरस की प्रकृति अलग है, जबकि गरम देशों में अलग। लिहाजा कोई एक वैक्सीन ही पूरी दुनिया के लिए कारगर होगी कह पाना मुश्किल है।
भारत में भी वैक्सीन पर काम जारी
जेनर इंस्टीट्यूट का मानना है कि कि दो महीने में कम से कम यह पता चल जाएगा कि जिन वैक्सीन का दावा किया जा रहा है कि वो बीमारी को किस हद तक कम पाएगी। किसी वैक्सीन को तैयार करने का प्रोटोकॉल 12 से 18 महीने का होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन भी यही कहती है। इस बीच जेएनयू के Special Centre for Molecular Medicine के प्रोफेसर सेंटर लगातार कोराेना को हराने के लिए काम कर रहा है। हम कोरोना के लिए लैब के साथ मिलकर काम कर रहे हैं