चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर यानी सीपीईसी शी जिनपिंग सरकार का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है जो पीओके से गुजरते हुए ग्वादर पोर्ट तक जा रही है। लेकिन अगस्त के महीने में चीनी इंजीनियरों, अधिकारियों और कर्मचारियों के काफिले पर हमले के बाद दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट आई है। ताजा मामला शुक्रवार का है जब बलूचिस्तान में चीनी काफिले पर हमला हुआ जिसमें चीनी कर्मचारी घायल हो गए और उसमें दो स्थानीय लड़कों की मौत हो गई। लेकिन सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है।
पीओके और बलूचिस्तान में ज्यादा विरोध
अगर आप ध्यान दें तो चीनी काफिले पर पहला हमला पीओके में हुआ था और दूसरा हमला बलूचिस्तान में। ये दोनों इलाके ऐसे हैं जहां कि अवाम को लगता है कि वो पाकिस्तान के अनधिकृत कब्जे में हैं और दूसरी तरफ चीन की मदद से पाकिस्तान उन पर जुल्म ढा रहा है। जानकार कहते हैं कि सीपीईसी के निर्माण में जिस तरह से पाकिस्तान चीन की मदद कर रहा है उसकी वजह से पीओके या बलूचिस्तान के लोगों को लगता है कि उनकी जमीन और जमीर दोनों का सौदा किया गया है, लिहाजा वो विरोध करते हैं।
कहां है ग्वादर पोर्ट
सबसे पहले ग्वादर पोर्ट के बारे में समझना होगा। दरअसल यह पोर्ट बलूचिस्तान प्रांत में इरान की सीमा के निकट है। सीपीईसी के जरिए ग्वादर पोर्ट तक चीन की पहुंच उसे यूरोप तक पहुंचने में या वेस्ट एशिया तक पहुंचने में वैकल्पिक मार्ग मिलेगा। इसके साथ ही सीपीईसी के बन जाने से चीन के लिए भारत पर नजर रखना आसाना होगा, लिहाजा चीन तरह तरह की मुश्किलों को झेलते हुए इस प्रोजेक्ट को बंद नहीं करना चाहता है। इसके अलावा इस प्रोजेक्ट में बिलियन डॉलर का निवेश हो चुकी है ऐसे में चीन के लिए पीछे हटना समझदारी भरा कदम नहीं होगा।
क्या कहते हैं जानकार
जानकार कहते हैं कि जिस तरह से पाकिस्तान ने पीओके और बलूचिस्तान में चीन को जमीन दी उसकी वजह से स्थानीय लोगों में नाराजगी है। उस नाराजगी को व्यक्त करने के लिए वो मुजफ्फराबाद की सड़कों पर निकलने के साथ ही क्वेटा में विरोध करते रहते हैं, कभी कभी वो विरोध हिंसक भी होता है और चीनी कर्मचारी निशाना बनते हैं। इस तरह की खबरें बलूचिस्तान और पीओके से आती रहेंगी। इस लिए आपने देखा होगा कि चीनी इंजीनियर ए के 47 से लैश होकर अपने काम को अंजाम देते हैं। लेकिन इसका दूसरा सबसे बड़ा असर यह होगा कि आने वाले समय में पाकिस्तान के लिए चीन को समझाना कठिन होगा।