नेपेडॉ : म्यांमार में 1 फरवरी को सेना को तख्ता पलट कर लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार को सत्ता से हटा दिया और खुद सत्ता हथिया ली। इसके बाद से म्यांमार में सैनिक शासन के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जिसमें लोगों को तीन उंगलियों से सैल्यूट करते देखा जा रहा है। वे अपनी नेता आंग सान सू ची की रिहाई की मांग कर रहे हैं, जिन्हें सेना ने तख्ता पलट के साथ ही हितरासत में ले लिया गया है। सू ची के साथ-साथ कई अन्य नेताओं को भी हिरासत में लिया गया है, जिसके बाद यहां बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर कर लोकतंत्र बहाली की मांग कर रहे हैं।
म्यांमार में 10 फरवरी को सैनिक शासन के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन हुए थे, जिसमें लोगों को तीन उंगलियां दिखाकर सैल्यूट की मुद्रा में देखा गया। आखिर क्या अर्थ है इसका और ये विरोध का भला कौन सा तरीका है? विरोध का यह तरीका बीते साल पड़ोसी मुल्क थाईलैंड में देखा गया था, जहां लोकतंत्र की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे लोगों ने राजा महा वजीरालॉकॉर्न के खिलाफ प्रदर्शन किया था। बीते साल अक्टूबर में थाईलैंड में हुआ यह विरोध प्रदर्शन राजशाही के खिलाफ था। अब उसी तरह का विरोध-प्रदर्शन म्यांमार में सैन्य शासन के खिलाफ हो रहा है।
जैसा नाम से ही जाहिर है, इसमें तीन उंगलियों से सलामी दी जाती है। बीते साल अक्टूबर में युवाओं ने थाईलैंड में इस तरह का सैल्यूट शाही काफिले के सामने इस तरह से सैल्यूट किया था, जिसने खूब अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बटोरी थी। दरअसल, थाईलैंड में जहां पहले शाही काफिले के सामने से आम लोग निकल भी नहीं सकते थे। लोगों को सबकुछ रोककर जमीन पर घुटने टेकने होते थे, वहीं शाही काफिले को जब लोगों ने इस तरह से सैल्यूट दिखाया तो उसने अंतरराष्ट्रीय चर्चा बटोरी। थाईलैंड में ऐसा करना बड़ी बात मानी गई, जहां युवाओं ने सबसे पहले विरोध का यह तरीका 2014 में सैन्य शासन के खिलाफ अपनाया था।
पिछले कुछ साल में यह सबसे बड़े विरोध का प्रतीक बन गया है। विरोध जताने का यह तरीका 'हंगर गेम्स' बुक्स और हॉलीवुड की फिल्मों से सामने आया है। इसमें तीन उंगलियों से सैल्यूट का यह तरीका अत्याचारी निरंकुश शासक प्रेजीडेंट स्नो के खिलाफ एकजुटता दर्शाने के लिए लोग अपनाते हैं। इसे लोकप्रियता कैटनिस एवरडीन के किरदार के जरिये मिली, जिसे फिल्मों में जेनिफर लॉरेंस ने निभाया है। विरोध का यह तरीका स्वेच्छाचारी और दमनकारी शासन के खिलाफ अपनाया जाता है, जो थाईलैंड के बाद अब पड़ोसी देश म्यांमार में भी देखने को मिल रहा है, जहां 1 फरवरी को सेना ने तख्ता पलट कर सत्ता हथिया ली है।
म्यांमार में 1 फरवरी को हुए तख्ता पलट के बाद सबसे पहले स्वास्थ्यकर्मियों ने विरोध के लिए यह अनूठा तरीका अपनाया था, जिसके बाद बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरे युवाओं को भी ऐसा करते देखा गया। इसके जरिये वे सैन्य तानाशाही के खिलाफ विरोध और गुस्सा का इजहार कर रहे हैं, जबकि अपनी नेता आंग सान सू ची की रिहाई की मांग कर रहे हैं। उनके हाथों में कई पोस्टर, बैनर देखे जा रहे हैं, जिन पर आंग सान सू ची की तस्वीरें और उनकी रिहाई को लेकर नारे लिखे हैं। म्यांमार में लोग रेड रिबन लेकर भी सैन्य शासन का विरोध और लोकतंत्र बहाली की मांग को लेकर एकजुटता दर्शा रहे हैं।
म्यांमार में दशकों के सैन्य शासन के बाद 2011 से लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुरुआत हुई थी और दमनकारी सैन्य शासन का अंत हुआ था। लेकिन अब सेना ने यहां एक बार फिर सत्ता हथिया ली है, जिसका व्यापक विरोध हो रहा है। इसमें युवाओं की अधिक संख्या देखी जा रही है, जिनकी पहुंच बीते एक दशक में इंटरनेट सहित कई ऐसी चीजों तक हुई है। वे पश्चिमी दुनिया सहित वैश्विक जगत की विभिन्न संस्कृतियों के संपर्क में आए हैं और अपने अधिकारों को लेकर सजग हुए हैं। ऐसे में वे सैन्य शासन के खिलाफ विरोध जताने के लिए उस तरीके का इस्तेमाल आज कर रहे हैं, जिसने फिल्मों और इंटरनेट के जरिये दुनियाभर में सुर्खियां बटोरी।
जहां तक दक्षिण पूर्वी एशिया में विरोध के इस अनूठे तरीके की लोकप्रियता का सवाल है तो यह 2014 में यहां लोकप्रिय हुआ था, जब थाइलैंड में कुछ युवा एक शॉपिंग मॉल के बाहर खड़े हो गए थे और उन्होंने उस साल सैन्य तख्ता पलट के खिलाफ इस तरह से विरोध जताया था। तब वहां एक प्रदर्शनकारी ने सैन्य शासन के प्रति विरोध जताने के लिए सैल्यूट की यह मुद्रा अपनाई थी, जिसके बाद देखते ही देखते अन्य प्रदर्शनकारियों ने भी ऐसा ही किया। बस फिर क्या था, थाईलैंड में सैन्य शासन के खिलाफ विरोध का यह तरीका सुर्खियों में छा गया और बाद के कई प्रदर्शनों में प्रदर्शनकारियों ने थ्री फिंगर सैल्यूट के माध्यम से अपना विरोध जताया।
थाईलैंड की तत्कालीन सैन्य शासन ने तब इस पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन विरोध का यह तरीका दिनोंदिन लोकप्रिय होता गया। कुछ ही समय में यह एशिया के कई अन्य हिस्सों में भी लोकप्रिय हो गया। 2014 में हॉन्कॉन्ग के अंब्रेला रिवॉल्यूशन के दौरान भी लोगों को इस तरीके से विरोध जताते देखा गया था। दरअसल, विरोध का यह मूक तरीका स्वेच्छाचारी शासन के खिलाफ होता है। फिर फिल्मों और इंटरनेट की दुनिया ने इसे दुनियाभर में विरोध के एक अनूठे तरीके के तौर पर स्थापित कर दिया है, जिसकी तरफ युवा तेजी से आकर्षित हो रहे हैं और अपने अधिकारों की मांग को लेकर कर रहे आंदोलनों में इसे अपना रहे हैं।