Russia Ukraine war news : युद्ध की कहानियां सुनने में भले ही अच्छी लगती हों लेकिन युद्ध अपने आप में बहुत ही भयावह और विनाशकारी होता है। यूक्रेन में युद्ध हो रहा है। इस देश पर रूसी हमला तीसरे सप्ताह में प्रवेश कर गया है। लड़ाई रुकने का नाम नहीं ले रही है। हमले पहले से ज्यादा भीषण एवं तेज होते जा रहे हैं। रूसी हमलों के बाद यूक्रेन के शहर खंडहर, बीयांबान और मलबे में तब्दील हो गए हैं। शहरों में जगह-जगह मलबे का ढेर फैला है। आसमान में धुएं का गुबार और हवा में फैली बारूद की गंध तबाही का मंजर बयां कर रही है। लाखों लोगों की दुनिया उजड़ गई है। लोग सुरक्षित ठिकानों की तलाश में पड़ोंसी देशों में शरण लिए हैं। पलायन एवं विस्थापन लगातार जारी है। अपने ठिकानों से उजड़ने का दर्द एवं टीस लोगों की आंखों में साफ देखा जा सकता है। यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक अब तक 25 लाख से ज्यादा लोग यूक्रेन छोड़ चुके हैं।
युद्ध हमेशा इसी तरह की बर्बादी एवं तबाही लेकर आता है। सरकार, सेना, नागरिक इसकी कीमत सभी को चुकानी पड़ती है। एक दिन का युद्ध मुल्कों को वर्षों पीछे धकेल देता है। फिर भी युद्ध होते हैं। आक्रमणकारी देश हमला करने की अपनी वजहों को वाजिब एवं तर्कसंगत बताते हैं। रूस ने भी यूक्रेन पर अपने हमले को जायज ठहराने की कोशिश की है। दरअसल, रूस का कहना है कि यूक्रेन यदि यूरोपीय यूनियन एवं नाटो में शामिल हो जाता है तो उसकी सुरक्षा को खतरा पैदा हो जाएगा। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन को लेकर लंबे समय से अपनी चिंता जाहिर करते आए हैं। पुतिन नहीं चाहते कि नाटो उनकी दहलीज तक आए। पुतिन को लगता है कि यूक्रेन में अगर नाटो के सैनिक आ जाते हैं और किसी बात को लेकर यूक्रेन एवं रूस के साथ गोलीबारी हो जाती है तो कीव की मदद करने के लिए नाटो के देश एक साथ आ जाएंगे।
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दरअसल, इस पूरे विवाद के जड़ में नाटो एवं पश्चिमी देश हैं। सवाल है कि आज के समय में नाटो की जरूरत क्यों है? उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) का गठन द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात 1949 में किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य साम्यवादी एवं सोवियत रूस की ताकत को सीमित करना था। नाटो में अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली, कनाडा सहित 30 देश हैं। ये सभी ताकतवर मुल्क हैं। नाटो का एक चार्टर कहता है कि नाटो के किसी एक देश पर हमला हुआ तो उसका जवाब सभी 30 देश मिलकर देंगे। साल 1991 में सोवियत रूस का विघटन हो गया। उससे 15 देश अलग हो गए। अलग होने वालों में यूक्रेन भी शामिल था। बाद में इन 15 देशों में कुछ यूरोपीय यूनियन के सदस्य बन गए। सोवियत यूनियन के बिखराव के बाद भी नाटो अपने मकसद को छोड़ा नहीं । वह आज भी रूस की घेरेबंदी करना चाहता है।
मान लीजिए यूक्रेन यदि नाटो में शामिल हो जाता है और नाटो देश की सेनाएं उसके यहां आ जाती हैं। मान लीजिए कि यूक्रेन की ओर से यदि रूस की तरफ गोली चलाई जाती है और रूस यदि गोली का जवाब गोली से देता है तो नाटो के चार्टर के मुताबिक इस जवाबी कार्रवाई को नाटो के सभी देशों पर हमला माना जाएगा। नाटो के सभी 30 सदस्य देश रूस से मोर्चा लेने के लिए सामने आ जाएंगे। ऐसे में रूस के लिए 30 देशों से टकराना आसान नहीं होगा। नाटो का सदस्य बन जाने पर पश्चिमी देश रूस को निशाना बनाते हुए यूक्रेन में अपनी मिसाइलें तैनात कर सकते हैं। इन सारी स्थितियों को रूस अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानता है। अपनी इस चिंता को उसने बार-बार अमेरिका एवं पश्चिमी देशों से अवगत कराया है लेकिन इसकी अनदेखी हुई।
रूस की मांग रही है कि नाटो को अपना विस्तारवादी रवैया छोड़ना चाहिए। यूक्रेन अथवा किसी अन्य पड़ोसी देश को नाटो में शामिल करने की कवायद टकराव बढ़ा सकती है। रूस चाहता है कि यूरोप के देशों में तैनात अपनी मिसाइलों को नाटो पीछे हटाए। रूस की इन चिंताओं को अमेरिका एवं पश्चिमी देशों ने कभी गंभीरता से नहीं लिया और वे यूक्रेन को नाटो में शामिल करने के लिए बिसात बिछाते रहे। साल 2014 के बाद यूक्रेन ने यूरोपीय संघ में शामिल होने की इच्छा जताई तो रूस ने उसके एक हिस्से क्रीमिया पर हमला कर उस पर कब्जा कर लिया। इसके बाद 2019 में यूक्रेन ने यूरोपीय यूनियन एवं नाटो में शामिल होने के लिए अपने संविधान में संशोधन किया। यही नहीं पश्चिमी देशों के साथ यूक्रेन ने युद्धाभ्यास करना शुरू कर दिया। बात इतनी भर नहीं थी पुतिन के दावों की मानें तो यूक्रेन परमाणु हथियार बनाने में जुटा था। इसीलिए रूस के सशस्त्र बलों ने हमलों में उसके परमाणु संयंत्रों को निशाना बनाया।
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यूक्रेन में रूस के हमले कितने दिन चलेंगे इसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। थोड़ी सी चूक दूनिया को तृतीय विश्व युद्ध में झोंक सकती है। सवाल है कि यूक्रेन की इस तबाही और बर्बादी को क्या रोका नहीं जा सकता था। तो इसका जवाब हां भी हो सकता है। पुतिन का कहना है कि आधुनिक यूक्रेन का निर्माण रूस ने ही किया है। यूक्रेन के साथ उसके सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संबंध हैं। रूस आज भी उसे अपने अभिन्न हिस्से के रूप में देखता है। पुरानी कहावत है कि आप दोस्त बदल सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं। पड़ोसी अगर रूस जैसा महाशक्ति हो तो उसके साथ दोस्ताना रवैया ही अच्छा है। इस बात को राष्ट्रपति जेलेंस्की को समझनी चाहिए थी लेकिन वह अमेरिका एवं पश्चिमी देशों के बहकावे में आ गए। युद्ध से पहले अमेरिका एवं पश्चिमी देश अपने बयानों से यह जताते रहे कि यूक्रेन पर हमला होने की सूरत में वे रूस के खिलाफ अपनी सेना उतार देंगे।
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जेलेंस्की बयानों के झांसे में आकर अपने तेवर को तल्ख करते गए जिसका परिणाम यह हुआ कि रूस ने पहले लोहांस्क एवं दोनेत्सक को स्वतंत्र देश की मान्यता देकर उन्हें आजाद मुल्क घोषित किया। फिर उनकी सैन्य मदद करने के नाम पर यूक्रेन में 'स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशंस' का आदेश दे दिया। चंद दिनों में यह 'स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशंस' युद्ध में बदल गया। रूस की सैन्य शक्ति के मुकाबले यूक्रेन कहीं नहीं ठहरेगा। यह बात जानते हुए भी जेलेंस्की ने अपने देश को युद्ध की आग में झोंक दिया। अमेरिका सहित पश्चिमी देशों से जिस तरह की मदद की वह उम्मीद कर रहे थे, वह नहीं मिली।
रूस, यूक्रेन के शहरों पर हमले करते गया। उसे रोकने के लिए अमेरिका और पश्चिमी देशों ने उस पर प्रतिबंधों की घोषणा की। लेकिन इन प्रतिबंधों का उस पर कोई असर नहीं हुआ। तमाम शहरों को जमींदोज करने के बाद वह राजधानी कीव को घेर चुका है और धावा बोलने की तैयारी में हैं। यहां भीषण लड़ाई हो सकती है। कीव की लड़ाई में यूक्रेन एवं रूस दोनों को अपने सैनिकों की शहादत झेलनी पड़ेगी। मानवता के लिए जरूरी है कि दोनों देश बर्बादी के रास्ते से हटकर किसी समझौते तक पहुंचे और बीच का कोई रास्ता निकालें। किसी भी युद्ध का अंत युद्ध से नहीं बल्कि बातचीत से होता है। इसलिए, विकल्प बातचीत ही है, युद्ध नहीं।