वाशिंगटन : दुनियाभर में कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते मामलों और इससे होने वाली मौतों में लगातार बढ़ोतरी के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने पिछले दिनों कोविड-19 के इलाज में हाइड्रोसक्सीक्लोरोक्वीन दवा का परीक्षण रोक दिया था। इसे अस्थाई तौर पर सस्पेंड किया गया था, जिसे अब एक बार फिर शुरू करने का फैसला लिया गया है। भारत में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) इस पर खुशी जताई है और कहा कि पूर्व लिया गया फैसला निश्चित रूप से जल्दबाजी में लिया गया था।
डब्ल्यूएचओ ने बुधवार को इसकी घोषणा की कि कोरोना वायरस संक्रमण के संभावित उपचार में हाइड्रोसक्सीक्लोरोक्वीन दवा का क्लिनिकल ट्रायल फिर से शुरू किया जाएगा। डब्ल्यूएचओ ने 25 मई को मरीजों की सुरक्षा का हवाला देते हुए अस्थाई तौर पर हाइड्रोसक्सीक्लोरोक्वीन का परीक्षण रोकने का फैसला किया था, लेकिन अब यह इस नतीजे पर पहुंची है कि ट्रायल को जारी रखा जाएगा। डब्ल्यूएचओ ने यह फैसला लांसेट मेडिकल जर्नल में प्रकाशित उस शोध के बाद लिया था, जिसमें कहा गया कि यह दवा कोविड-19 के मरीजों में मौत का जोखिम बढ़ा सकता है।
भारत सरकार में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले CSIR ने एक बार फिर से हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का ट्रायल शुरू किए जाने के डब्ल्यूएचओ के फैसले पर खुशी जताई है। CSIR के डीजी शेखर सी मांडे ने कहा, 'हमें खुशी है कि डब्ल्यूएचओ ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का ट्रायल फिर शुरू करने का फैसला लिया है। मुझे यकीन है कि डब्ल्यूएचओ ने ट्रायल रोकने का फैसला जल्दबाजी में लिया होगा। यह बिना सोचे-समझे लिया गया फैसला था। उन्हें अस्थाई तौर पर ट्रायल सस्पेंड करने से पहले अपने आप आंकड़ों का विश्लेषण करना चाहिए था।'
हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा का इस्तेमाल आमतौर पर गठिया के इलाज में होता है। इसे मलेरिया के उपचार में भी कारगर बताया जाता है। यह दवा उस वक्त सुर्खियों में आई थी, जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे कोरोना संक्रमण के उपचार में कारगर करार देते हुए भारत से इसकी मांग की थी। बाद में कई अन्य देशों ने भी भारत से यह दवा मंगाई और ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो ने तो इसकी तुलना 'संजीवनी बूटी' से करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हनुमान का दर्जा दे दिया था। इजरायल, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन सहित कई देशों ने भारत से यह दवा मंगाई थी।