सेना के साथ एक पेज पर होने का दावा करने वाले इमरान की बाजवा से क्यों ठन गई? 

दुनिया
आलोक राव
Updated Apr 01, 2022 | 12:17 IST

Imran Khan News : एक्सपर्ट कहते हैं कि पीएम बनने के कुछ साल बाद इमरान खान यह भूल गए कि पाकिस्तान में सेना के आगे सरकार कुछ नहीं है। विदेश नीति से लेकर घरेलू एवं सभी बड़े फैसले सेना प्रमुख के इशारे पर होता है। इमरान खान को गुमान हो गया कि वह सेना से भी बड़े हैं।

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प्रधानमंत्री पद पर चंद दिनों के मेहमान हैं इमरान खान।  |  तस्वीर साभार: AP

इमरान खान की सत्ता से विदाई होनी तय है। पाकिस्तानी असेंबली में तीन अप्रैल को अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग होगी। सत्ता और सीटों दोनों का समीकरण इमरान खान के खिलाफ जा चुका है। उनका प्रधानमंत्री पद से हटना एक औपचारिकता भर रह गई है। बताया जा रहा है कि इमरान की इस विदाई के पीछे विपक्ष कम वहां की सेना ज्यादा जिम्मेदार है। रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने के लिए सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने बिसात बिछाई और इस बिसात की बाजी में इमरान खान फंस गए। 

सेना के साथ इमरान खान की तकरार ने लोगों को हैरान किया क्योंकि सत्ता में आने के बाद खुद इमरान और उनके मंत्रियों ने कई बार यह दावा किया कि सरकार और सेना दोनों एक पेज पर हैं। पीटीआई के नेताओं का दावा था कि सेना और सरकार के बीच इस तरह की केमेस्ट्री पहले कभी नहीं देखी गई। यानि कि घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर दोनों की सोच एवं विचार एक जैसे हैं। सरकार और सेना के बीच बेहतर समझ है। पाकिस्तान में साल 2018 में इमरान खान की सरकार बनी। इसके बाद उनकी सरकार और सेना के बीच करीबी रही। आगे चलकर बाजवा को सेवा विस्तार भी मिला। यहां तक इमरान एवं सेना के बीच सबकुछ ठीकठाक चलता रहा। 

फिर शुरू हुआ सेना के साथ टकराव
पाकिस्तानी मामलों के जानकारों का कहना है कि इमरान खान और सेना के बीच पहली रिश्ते में खटास तब आनी शुरू हुई जब आईएसआई प्रमुख के पद पर जनरल बाजवा की पसंद वाले अधिकारी की नियुक्ति पर इमरान ने हीलाहवाली की। यहीं से दोनों के बीच टकराव होना शुरू हुआ। इसके बाद सेना के बारे में इमरान खान के बयानों ने सेना को नाराज किया। कुछ दिनों पहले इमरान ने अपनी सेना को 'भ्रष्ट' बताया और भारतीय सेना की प्रशंसा करते हुए कहा कि वह सरकार के मामलों में दखल नहीं देती। जाहिर है कि इमरान के ये बयान सेना के साथ उनकी अनबन की ओर इशारा किया। 

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इमरान खान का उनका गुमान ले डूबा
एक्सपर्ट कहते हैं कि पीएम बनने के कुछ साल बाद इमरान खान यह भूल गए कि पाकिस्तान में सेना के आगे सरकार कुछ नहीं है। विदेश नीति से लेकर घरेलू एवं सभी बड़े फैसले सेना प्रमुख के इशारे पर होता है। इमरान को यह गुमान हो गया कि वही सबसे बड़े हैं। वह भूल गए कि जब किसी प्रधानमंत्री ने ऊंची उड़ान भरने की कोशिश की तो सेना ने उसके पर कतर दिए। पाकिस्तान की सेना से कोई बड़ा हो जाय या दिखाने की कोशिश करे, यह बात वहीं की सेना बर्दाश्त नहीं कर सकती लेकिन इमरान ने खुद को बड़ा दिखाने की कोशिश की। इमरान खान के अब तक के कार्यकाल को भी देखा जाए तो हर मोर्चे पर उनकी सरकार विफल रही है। 

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हर मोर्चे पर विफल रहे इमरान
महंगाई, अर्थव्यवस्था, विदेश नीति सहित सभी घरेलू एवं अतंरराष्ट्रीय मोर्चों पर इमरान खान की विफलता सामने आई। वह महंगाई पर नियंत्रण नहीं पा सके। खाने-पीने की वस्तुओं के दाम आसमान छूते रहे। सरकारी खजाने पर विदेशी कर्जे के बोझ बढ़ता गया। एफएटीएफ की 'ग्रे लिस्ट' से देश को वह निकाल नहीं पाए। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से उन्हें कर्जा मिलना एक तरह से बंद है। उनके बयानों से सऊदी अरब और अमेरिका दोनों नाराज हुए। ये दोनों देश पाकिस्तान को वित्तीय मदद देते आए थे लेकिन इमरान की रणनीति एवं कूटनीति ऐसी रही कि दोस्त देश उनसे मुंह मोड़ते गए। जानकार कहते हैं कि यहां तक कि चीन भी पाकिस्तान से नाराज है। गत अगस्त में दासु डैम के पास हुए धमाके में चीन के 8 इंजीनियरों की मौत हो गई।

'सदाबहार दोस्त' चीन भी हुआ नाराज
यह धमाका कैसे हुआ और किसने किया, पाकिस्तान सरकार इसका पता नहीं लगा पाई। अंत में जाकर इमरान सरकार को चीन को मुआवजा देना पड़ा। पाकिस्तान में सीपेक को लेकर जिस तरह का माहौल है उससे बीजिंग खुश नहीं है। ऐसे में चीन के इशारे पर यदि इमरान सरकार पर यदि संकट आया है तो इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए। अमेरिका के साथ भी इमरान ने अपने रिश्ते बिगाड़े। उन्होंने कई बार सार्वजनिक रूप से कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने उन्हें फोन नहीं किया। इसके लिए खान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने अमेरिका की आलोचना की। 

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इमरान ने अपने लिए खुद मुसीबत खड़ी की
अफगानिस्तान पर ताबिलान का कब्जा होने के बाद एक साक्षात्कार में इमरान खान ने यह भी कहा कि वह अमेरिकी सेना को अपने सैन्य ठिकानों का इस्तेमाल नहीं करने देंगे। कहने का मतलब है कि घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय मोर्चों दोनों मोर्चों पर इमरान ने अपनी लिए मुसीबत खुद खड़ी की। उन्होंने सोचा कि सेना के साथ नाराजगी मोल लेकर भी वह सत्ता में बने रह सकते हैं। यह उनकी गलतफहमी है। पाकिस्तान में सेना ही सबकुछ शायद इमरान यह बात भूल गए।    
 

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