अफगानिस्तान पर तालिबान राज स्थापित होने के बाद हालात बेकाबू हो चले हैं। काबुल में फंसे हुए लोग सुरक्षित देशवापसी की गुहार लगा रहे हैं तो हर एक दिन कुछ ना कुछ इस तरह का वीडियो आता है जो तालिबान के असली चेहरे को उजागर करता है। इन सबके तालिबान के मुद्दे पर जी-7 की अहम बैठक होने जा रही है। इस बैठक से क्या कुछ बदलेगा यह देखने वाली बात होगी। क्या कुष शक्तिशाली मुल्क तालिबान सरकार को मान्यता देंगे या तालिबान के खिलाफ एक साझा लड़ाई लड़ी जाएगी। हालांकि अमेरिका ने साफ किया है कि वो तालिबान पर भरोसा नहीं करता है।
जी- 7 बैठक के मायने
जी-7 की बैठक के बारे में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने पहले हफ्ते ही जानकारी दी थी। उन्होंने कहा कि था कि वैश्विक शांति के लिए अमेरिका प्रतिबद्ध है, हमारी कोशिश है कि अफगानिस्तान उन लोगों के हाथों से बाहर निकले जो मानवता के दुश्मन हैं। उनके इस बयान के महज तीन बाद तालिबान ने अमेरिका को सीधे सीधे चेताते हुए कहा कि वो अपने सैनिकों को 31 अगस्त तक बुला ले नहीं तो अंजाम बुरा होगा। अब इस धमकी के बाद निश्चित तौर पर जी- 7 में चर्चा होगी। चर्चा इस बात पर भी होगी कि नेटो की भूमिका क्या रहने वाली है।
इस समय पंजशीर घाटी में तालिबान को कड़ी चुनौती मिल रही है । तालिबान के खिलाफ लड़ाई में शामिल अहमद मसूद की फौज का कहना है कि उसकी तरफ से बगलान में 300 तालिबानी आतंकी मारे गए हैं। पंजशीर वो इलाका है जहां तालिबान अपने पहले कार्यकाल में भी पकड़ मजबूत नहीं कर सका था। ऐसे में जी -7 के नेता क्या तालिबान के खिलाफ लड़ाई लड़ रही ताकतों को समर्थन देंगे ये देखने वाली बात होगी।
क्या है जी-7
जी-7 में यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान शामिल हैं। ये देश दुनिया की सात सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ वैश्विक शुद्ध सम्पत्ति का 62% से अधिक की अगुवाई करते हैं। शुरू में इस समूह में 6 देश शामिल थे और पहली बैठक 1975 में हुई थी। इसका मकसद दुनिया के सामने पैदा हुई आर्थिक संकट की वजह के समाधानों पर विचार किया गया। 1976 में कनाडा इस समूह में शामिल हुआ और इसे जी-7 का नया नाम मिला।
क्या कहते हैं जानकार
जानकारों का कहना है कि अफगानिस्तान में तालिबान राज का स्थापित होना पूरी दुनिया के लिए खतरनाक है। सवाल यह है कि अफगानिस्तान के सभी प्रांतों पर तालिबान बिना किसी प्रतिरोध के कब्जा करते रहे, इसे समझना जरूरी है। जिस तरह से तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया उससे साफ है कि स्थानीयत स्तरों पर उसे समर्थन मिला और उसके पीछे वजह यह थी कि जब अमेरिका ने ऐलान किया अब वो यहां से तय समय सीमा में निकल जाएंगे। अफगानिस्तान में आम तौर कट्टरपंथी तबका कहता रहा है कि अमेरिका ने हम लोगों के ऊपर कब्जा कर लिया है। अब जबकि हालात बदल चुके हैं तो आने वाले समय में तस्वीर क्या बनेगी इसे लेकर कोई भी निश्चित तौर पर कुछ कह पाने के हालात में नहीं है।