क्या नामुमकिन हो गया है तालिबान को रोकना? क्या अब कोई प्लान नहीं बचा? इस तरह अफगानिस्तान पर बढ़ा रहा कब्जा

तालिबान और अफगानिस्तान के बीच छिड़ी जंग भयावह रूप ले चुकी है। तालिबान काबुल के करीब पहुंच चुका है। क्या अफगानिस्तान के लिए कोई देश खड़ा नहीं होगा? क्या अमेरिका अफगानिस्तान की मदद के लिए सामने नहीं आएगा?

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अफगानिस्तान में बढ़ रहा तालिबान का कब्जा  |  तस्वीर साभार: AP
मुख्य बातें
  • अफगानिस्तान के हालात कंट्रोल से बाहर हैं। युद्ध का हर दिन आम नागरिकों पर भारी है
  • जुलाई तक 90 प्रतिशत अमेरिकी सेना अफगानिस्तान से निकल गई
  • इसके बाद तालिबान ने धावा बोल दिया

क्या तालिबान को रोकना नामुमकिन है? क्या तालिबान को रोकने का कोई प्लान नहीं बचा है? क्या दुनिया अफगानिस्तान का हाल देखती रहेगी और कुछ नहीं करेगी? तालिबान काबुल के एंट्री प्वाइंट पर पहुंच गया है। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी बहुत बड़े संकट में हैं। उनके सामने काबुल को बचाने की बड़ी चुनौती है। तालिबान पर अशरफ गनी ने आज दोपहर चुप्पी तोड़ी है। इस्तीफे की अटकलों के बीच बड़ा बयान दिया है। अशरफ गनी ने कहा कि उनका फोकस हिंसा, अस्थिरता और विस्थापन रोकने में है। वो अपने लोगों और इंटरनेशनल पार्टनर्स के साथ बात कर रहे हैं। वो अफगानिस्तान के लोगों पर युद्ध थोपने नहीं देंगे। उन्होंने तालिबान से शहरों को बचाने के लिए अपने सुरक्षाबलों की तारीफ की। उन्होंने सुरक्षाबलों को फिर से मोबलाइज़ करने की बात की है।

अशरफ गनी के इस्तीफे की अटकलें थीं। उन पर घरेलू और इंटरनेशनल दोनों तरफ से दबाव है। उनके इस्तीफे की शर्त के साथ तालिबान के साथ पावर शेयर की डील की बातें हो रही थीं।  लेकिन आज के बयान के बाद ये साफ है कि इस्तीफे वाले आइडिया को अशरफ गनी ने अभी खारिज कर दिया। लेकिन तालिबान की चुनौती हर घंटे बढ़ रही है। तालिबान की रणनीति है कि काबुल को घेर लिया जाए और अशरफ गनी की सरकार को अलग थलग कर दिया जाए। और अफगानिस्तान सरकार को मजबूर कर दिया जाए। तालिबान काबुल वाली अपनी रणनीति में कामयाब दिख रहा है। कल तालिबान ने पुर-ए-आलम शहर पर कब्जा कर लिया था। जो काबुल से 80 किलोमीटर दूर है।

34 में से 12 सूबों की राजधानी पर अब तालिबान का कब्‍जा 

बताया जा रहा है कि तालिबान काबुल से अब 40 किलोमीटर ही दूर हैं। कई रिपोर्ट्स में तो ये दावा किया गया कि तालिबान काबुल से सिर्फ 15 किलोमीटर दूर हैं। वो काबुल के एंट्री प्वाइंट पर पहुंच गया है। अफगानिस्तान में इस वक्त दो शहरों को बचाने की चुनौती है। पहली चुनौती काबुल को बचाने की है। दूसरी चुनौती मजार ए शरीफ को बचाने की है। मजार ए शरीफ सबसे अहम लोकेशन पर है। वो अफगान सेना के लिए सबसे अहम है। यहां पर तालिबान ने तीन तरफ से हमला बोल दिया है। अफगानिस्‍तान के 34 में से 12 सूबों की राजधानी पर अब तालिबान का कब्‍जा है। कल ही उसने कंधार पर भी कब्‍जा जमा लिया जो अफगानिस्‍तान का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। कंधार, हेरात, गजनी, कुंदुज, तकहर, बदख्शन, समनगन, निमरुज, फराह, जब्जजान, बगलान और सर-ए-पुल पर अब तालिबान का नियंत्रण है। हेरात, गजनी के बाद कंधार का हाथ से निकलना इसलिए अहम है क्‍यों कि कंधार में इंटरनेशनल एयरपोर्ट है, कंधार अफगानिस्‍तान का व्‍यापारिक केंद्र है। यानि बाहरी कनेक्शन और मदद के तार टूट गए हैं। यहीं तालिबान की पैदाइश हुई थी। अब तालिबान ने काबुल पर कब्‍जे के लिए जोर लगा रहा है। 

ऐसा था तालीबानी राज

काबुल पहली बार 1996 में तालिबान के कंट्रोल में आया था। तब ये अफगानिस्तान में चार साल के गृह युद्ध के बाद हुआ था। तब काबुल पर कंट्रोल करते ही तालिबान ने पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नजीबुल्ला को सरेआम फांसी दे दी थी। तालिबान ने महिलाओं को नौकरी करने से रोक दिया था। बच्चियों को स्कूल जाने से रोक दिया था। महिलाओं को पूरा शरीर ढक कर निकलना होता था। महिलाओं के बाहर निकलने पर उनके साथ किसी पुरुष का होना जरूरी थी। ऐसा नहीं करने पर पत्थरों से पीट पीट कर मार दिया जाता था। इस बार भी तालिबानियों ने अपना राज आते ही यही करना शुरू कर दिया है। तालिबानी जगह जगह अपने हिसाब का शरिया कानून चला रहे हैं। 

अमेरिका और नेटो की सेना के अफगानिस्‍तान छोड़ने के कुछ ही हफ्तों में तालिबान ने जिस तरह अफगानिस्‍तान के एक तिहाई से ज्यादा हिस्‍सों पर कब्‍जा कर लिया है। उसी का नतीजा है कि अफगान सरकार ने सत्ता साझा करने की पेशकश की है। और हाल की लड़ाई ये साफ हो गया है कि अफगानिस्‍तान में बंदूक का राज आना तय है और लोकतंत्र के सूरज की रोशनी मद्धम पड़ रही है। तालिबान ने हेरात के पुलिस हेडक्वॉर्टर पर भी कब्जा कर लिया है। बता दें कि हेरात अफगानिस्तान का तीसरा सबसे बड़ा शहर है।

4 करोड़ अफगानी क्या करें?

तालिबान काबुल की तरफ बढ़ रहा है। बाहर के देश अपने डिप्लोमेट्स को निकालने में लगे हैं। बाहर के देश अपने नागरिकों को निकालने के लिए लगे हैं। इसके लिए अमेरिका और ब्रिटेन ने अपने सैनिक भेजे हैं। लेकिन 4 करोड़ अफगानी क्या करें? उन्हें तालिबान से बचाने वाला कोई नहीं है। अफगानिस्तान में बहुत बड़ा संकट आ गया है। वहां भगदड़ मच गई है। शहरों से लाखों आम अफगानी भाग रहे हैं। इनके लिए खाने पीने का बड़ा संकट हो गया है। करीब 2 करोड़ लोग युद्ध में सीधे फंसे हैं। तालिबान का राज आने का सबको डर है। सबको युद्ध में फंसने का डर है। काबुल में लोग गुहार लगा रहे हैं। किसी तरह से वहां से निकाल देने की बात कर रहे हैं। 

भारत को हो रहा भारी नुकसान

अफगानिस्तान में तालिबान के साथ संघर्ष से भारत को भी नुकसान हो रहा है। भारत ने अफगानिस्तान में अरबों रुपए निवेश किए हुए हैं। एक अनुमान के मुताबिक अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में भारत के 400 से ज्यादा प्रोजेक्ट्स या तो चल रहे हैं या फिर शुरू होने वाले थे। आपको कुछ बड़े प्रोजेक्ट्स के बारे में बताते हैं..

  • हेरत में 290 मिलियन डॉलर की लागत से अफगानिस्तान-इंडिया फ्रेंडशिप डैम...पहले इस डैम का नाम सलमा डैम हुआ करता था
  • 90 मिलियन डॉलर की लागत से अफगानिस्तान की नई संसद की बिल्डिंग का निर्माण भी भारत ने किया है 
  • 135 मिलियन डॉलर की लागत से डेलरम-जरांज हाईवे का निर्माण
  • 80 मिलियन डॉलर की लागत से 100 कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट 
  • काबुल में शतूत बांध के निर्माण का प्रोजेक्ट
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