- आपको बजट का मास्टर बना देने वाली क्लास
- आज पाठशाला में बजट के हेडमास्टर आए हैं
- आज के बाद बजट समझना बाएं हाथ का खेल
बजट की पाठशाला : जिस बजट के नंबर आम लोगों के ऊपर से निकल जाते हैं। उसे आसान से आसान भाषा में यहां समझ सकते हैं। एक तरफ लोग बजट में इंट्रेस्ट नहीं दिखाते, आंकड़ों से डरते हैं, लेकिन हकीकत ये है कि बाप बड़ा न भैया। सबसे बड़ा रुपया। जिसने रुपया को समझ लिया। उस पर लक्ष्मी की कृपा बरस जाती है। वो अपनी लाइफ खुद संवार लेता है। तो आपकी भी लाइफ संवर जाए यही हमारा प्रयास होगा और मेरे साथ आज बजट की पाठशाला में गेस्ट लेक्चरर की तरह जुड़ रहे हैं देश के पूर्व वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा।
जयंत सिन्हा किसी पहचान के मोहताज नहीं। वो 2014 से 2016 तक वित्त राज्य मंत्री रहे हैं। उन्होंने इंश्योरेंस बिल-बैंकरप्सी बिल पर काम किया। उन्होंने पीएम मुद्रा जैसी योजनाओं पर काम किया है। जयंत सिन्हा के पिता यशवंत सिन्हा देश के वित्त मंत्री रहे हैं। जयंत सिन्हा ने IIT दिल्ली से पढ़ाई की है, हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एमबीए है। अमेरिका में 25 साल फंड मैनेजर का काम किया। झारखंड के हजारीबाग से मौजूदा सांसद हैं।
लेकिन सबसे पहले ये जान लीजिए कि आज Econmic Survey संसद में पेश कर दिया गया है। हर साल बजट से ठीक पहले Econmic Survey पेश किया जाता है। ये अर्थव्यवस्था का Annual Report Card होता है। जिसमें हर सेक्टर का परफॉर्मेंस बताया जाता है। इस रिपोर्ट कार्ड में देश की मौजूदा आर्थिक स्थिति के बारे में अहम बातें बताई जाती हैं। इसमें आगे की तैयारी करने के लिए सुझाव दिए जाते हैं। लेकिन Econmic Survey में जिस Number की सबसे ज़्यादा चर्चा होती है। वो Number है GDP का Projection।
Economic Survey में वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए GDP ग्रोथ 9.2% बताई गई। अगले वित्तीय वर्ष यानी 2022-23 के लिए GDP ग्रोथ 8% से 8.5% का अनुमान है।
जयंत सिन्हा से चर्चा शुरू-जीडीपी का ये नंबर देश के लिए कितने मायने रखता है। जीडीपी से आम लोगों का क्या लेना देना है। जीडीपी ग्रोथ बढ़ती या घटती है तो आम लोगों पर क्या असर पड़ता है। ये सब समझाएंगे। सवाल जीडीपी आम लोगों के लिए जरूरी क्यों हैं? आम जनता के लिए यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सरकार और लोगों के लिए फैसले करने का एक अहम फैक्टर साबित होता है।
अगर जीडीपी बढ़ रही है, तो इसका मतलब यह है कि देश आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में अच्छा काम कर रहा है और सरकारी नीतियां जमीनी स्तर पर प्रभावी साबित हो रही हैं और देश सही दिशा में जा रहा है। अगर जीडीपी सुस्त हो रही है या निगेटिव दायरे में जा रही है, तो इसका मतलब यह है कि सरकार को अपनी नीतियों पर काम करने की जरुरत है ताकि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में मदद की जा सके। सरकार के अलावा कारोबारी, स्टॉक मार्केट इनवेस्टर और अलग-अलग नीति निर्धारक जीडीपी डेटा का इस्तेमाल सही फैसले करने में करते हैं।
जब अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन करती है, तो कारोबारी और ज़्यादा पैसा निवेश करते हैं और उत्पादन को बढ़ाते हैं क्योंकि भविष्य को लेकर वे आशावादी होते हैं। लेकिन जब जीडीपी के आंकड़े कमजोर होते हैं, तो हर कोई अपने पैसे बचाने में लग जाता है. लोग कम पैसा खर्च करते हैं और कम निवेश करते हैं। इससे आर्थिक ग्रोथ और सुस्त हो जाती है।
ऐसे में सरकार से ज्यादा पैसे खर्च करने की उम्मीद की जाती है। सरकार कारोबार और लोगों को अलग-अलग स्कीमों के जरिए ज्यादा पैसे देती है ताकि वो इसके बदले में पैसे खर्च करें और इस तरह से आर्थिक ग्रोथ को बढ़ावा मिल सके। इसी तरह से नीति निर्धारक जीडीपी डेटा का इस्तेमाल अर्थव्यवस्था की मदद के लिए नीतियां बनाने में करते हैं। भविष्य की योजनाएं बनाने के लिए इसे एक पैमाने के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
आर्थिक सर्वे में अर्थव्यवस्था के लिए Green Light और Red Light क्या क्या हैं? सबसे पहले Green Light देखते हैं।
-कृषि सेक्टर पर कोरोना का असर नहीं। ग्रोथ रेट 3.6% से 3.9% हुई।
-तीसरी लहर का Consumption यानी खपत पर असर नहीं। खपत में 7% के रेट से ग्रोथ।
-भारत के शेयर मार्केट ने बहुत अच्छा Perform किया है।
-भारत के बैंकों की स्थिति सुधरी है, NPA का बोझ कम हुआ।
-जुलाई से GST कलेक्शन लगातार 1 लाख करोड़ रुपये प्रति महीने से ज़्यादा रहा है।
-अगले वित्तीय वर्ष में कच्चा तेल 70 से 75 डॉलर की रेंज में रहेगा, मॉनसून बेहतर रहेगा, महामारी से अर्थव्यवस्था में कोई बाधा नहीं आएगी।
अब अर्थव्यवस्था में Red Light क्या हैं। ये देखते हैं।
-Global महंगाई से भारत को भी चिंता होनी चाहिए।
-महंगे कच्चे तेल से Fuel Inflation 20% से ज़्यादा है।
-कोरोना से सर्विस सेक्टर की ग्रोथ पर नेगेटिव असर
जयंत सिन्हा से चर्चा ग्रीन और रेड लाइट पर। पॉजिटिव और नेगेटिव संकेत क्या बता रहे हैं। इससे बजट की क्या पिक्चर दिखाई दे रही है। अर्थव्यवस्था के लिए चिंता के संकेत क्या हैं।
-खुदरा महंगाई दर यानी Retail Inflation 5.59% है जो 5 महीने में सबसे ज्यादा है
-बेरोजगारी दर दिसंबर 2021 में बढ़कर 7.9% हो गई, जो नवंबर में 7% थी
-विनिवेश से 1 लाख 75 हज़ार करोड़ जुटाने का टारगेट था। ये टारगेट पूरा नहीं हुआ
-विकास कार्यों में सरकार का खर्च ज्यादा, कमाई के साधन बढ़ाने होंगे
बजट बनाने में वित्त मंत्री के सामने चुनौतियां क्या हैं?
चुनाव को देखते हुए पॉपुलर घोषणाएं करना
महंगाई पर काबू करना
किसानों को राहत देने वाली घोषणाएं करना
बेरोजगारी से निपटना, नौकरियां बढ़ाना
घरेलू मांग को बढ़ाना, लोगों तक पैसा पहुंचाना
राजकोषीय घाटा कम कर निवेश बढ़ाना
चुनौतियों के बीच वित्त मंत्री जी को जनता की उम्मीदें भी पूरी करनी है। वित्त मंत्री से जनता की क्या उम्मीदें हैं। सबसे पहले टैक्सपेयर की बात करते हैं। टैक्सपेयर चाहता है कि इनकम टैक्स में छूट की सीमा को 2.5 लाख से बढ़ाकर 3 लाख या साढ़े 3 लाख किया जाए।
किसान चाहता है कि कृषि सम्मान निधि की रकम को बढ़ाया जाए। अभी इस योजना के तहत किसानों को हर साल 6000 रुपये मिलते हैं। किसान चाहता है कि डीजल और खाद के रेट कम हों, फसलों के सही दाम मिलें, खाद बीज सब्सिडी पर मिले, सस्ती बिजली मिले।
नौकरीपेशा लोग चाहते हैं कि
- टैक्स-फ्री एफडी का लॉक-इन पीरियड कम किया जाए
- वर्क फ्रॉम होम अलाउंस के रूप में 50 हज़ार रुपये का अतिरिक्त Deduction दिया जाए
- कोरोना को देखते हुए मेडिकल खर्चों पर मिलने वाली टैक्स छूट को बढ़ाया जाए।
मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास चाहता है कि
- LPG सिलेंडर के दाम कम हों
- राशन, सब्जियां, तेल सस्ता हो
- दवाइयां, मेडिकल इंश्योरेंस सस्ता हों
और सभी चाहते हैं कि
पेट्रोल-डीजल सस्ता हो, इसके लिए भी बजट से उम्मीद लगाए हैं
क्या इनकम टैक्स जीरो नहीं हो सकता। सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसे नेता कहते रहे हैं कि अगर वो वित्त मंत्री होते, तो इनकम टैक्स खत्म कर देते। उनका कहना है कि इनकम टैक्स के अलावा सरकार के पास पैसे जुटाने के बहुत तरीके हैं।
वर्तमान टैक्स स्लैब
सालाना आय टैक्स
0-2.50 लाख No Tax
2.50-3 लाख No Tax
3-5 लाख No Tax
5-7.50 लाख 10%
7.50-10 लाख 15%
10-12.50 लाख 20%
12.50-15 लाख 30%
बुजुर्ग(60+) के लिए इनकम टैक्स स्लैब
सालाना आय टैक्स
0 - 3 लाख NO TAX
3 - 5 लाख 5%
5 - 10 लाख 20%
10 लाख से ऊपर 30%
बुजुर्ग(80+) के लिए इनकम टैक्स स्लैब
सालाना आय टैक्स
0 - 5 लाख NO TAX
5 - 10 लाख 20%
10 लाख से ऊपर 30%
इनकम टैक्स स्लैब ( 2020-21 से लागू)
0 - 2.50 लाख NO TAX
2.50 - 3 लाख 5% (टैक्स छूट u/s 87a)
3 - 5 लाख 5% (टैक्स छूट u/s 87a)
5 - 7.50 लाख 10%
7.50 - 10 लाख 15%
10 - 12.50 लाख 20%
12.50 - 15 लाख 30%
इनकम टैक्स स्लैब - (पुराना टैक्स सिस्टम)
सालाना आय टैक्स - SUB HDR
0 - 2.50 लाख NO TAX
2.50 - 5 लाख 5%
5 - 10 लाख 20%
10 लाख से ऊपर 30%
इनकम टैक्स स्लैब - बुजुर्ग(60+)
0 - 3 लाख NO TAX
3 - 5 लाख 5%
5 - 10 लाख 20%
10 लाख से ऊपर 30%
इनकम टैक्स स्लैब - बुजुर्ग(80+)
0 - 5 लाख NO TAX
5 - 10 लाख 20%
10 लाख से ऊपर 30%
मोदी सरकार के वित्त मंत्रियों ने पिछले 7 साल में बजट में कौन से गेमचेंजर ऐलान किए, वो आपको बताते हैं। 2014 के पहले बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इनकम टैक्स में छूट की सीमा को 2 लाख रुपये से बढाकर ढाई लाख रुपये कर दिया था।
2015 का बजट भी अरुण जेटली ने पेश किया था। उन्होंने ऐलान किया था कि कॉरपोरेट टैक्स रेट 4 साल में 30% से घटाकर 25% किया जाएगा।
2016 के बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बड़ा ऐलान किया था कि पब्लिक सेक्टर के बैंकों में 25 हज़ार करोड़ रुपये की पूंजी डाली जाएगी।
2017 के बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बड़ा ऐलान किया था कि ढाई लाख से पांच लाख रुपये तक की इनकम पर टैक्स रेट 10% से घटाकर 5% किया जाएगा।
2018 के बजट में अरुण जेटली ने आयुष्मान भारत योजना का ऐलान किया था जिसमें 10 करोड़ गरीब परिवारों को 5 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज की सुविधा दी गई।
2019 का बजट निर्मला सीतारमण ने पेश किया था और इसमें बड़ा ऐलान किया गया था कि 400 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार करने वाली कंपनियों के लिए कॉरपोरेट टैक्स 30% से 25% होगा।
2020 के बजट में निर्मला सीतारमण ने इनकम टैक्स स्लैब के दो विकल्प दिए थे। अगले 5 साल में इंफ्रास्ट्रक्चर में 100 लाख करोड़ रुपये के निवेश का ऐलान किया था।
2021 के बजट में निर्मला सीतारमण ने हेल्थ बजट 94 हज़ार करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2 लाख 38 हज़ार करोड़ रुपये कर दिया था। 75 साल से ज़्यादा की उम्र के बुज़ुर्गों को इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने से छूट दी गई थी।
NDA में वित्त मंत्री - (2014 के बाद)
अरुण जेटली ने 5 बार 2014, 2015, 2016, 2017, 2018 बजट पेश किया।
पीयूष गोयल ने एक बार साल 2019(अंतरिम) बजट बजट पेश किया
निर्मला सीतारमण ने 2019, 2020, 2021, 2022 चौथा बजट पेश करेंगी।
इस बार के बजट से वित्त मंत्री क्या संदेश दे सकती हैं। सरकार की मैसेजिंग क्या होगी?
-महामारी में भी सरकार गरीबों और किसानों के साथ हैं
-मध्यम और लघु उद्योगों को लगातार राहत दी गई है
-सरकार मध्यम वर्ग के लिए बड़ा ऐलान कर सकती हैं
-कोरोना के कुचक्र से अर्थव्यवस्था को उभारने का संकेत
-दुनिया में भारत की अर्थव्यवस्था का विकास सबसे तेज
-कोरोना काल में हेल्थ सेक्टर पर ज्यादा खर्च
बजट के दिन शेयर बाज़ार का परफॉर्मेंस कैसा रहता है।
2021 के बजट वाले दिन सेंसेक्स- 48,600 पर पहुंच गया था, 2300 प्वाइंट की उछाल थी।
2020 के बजट वाले दिन सेंसेक्स-39,700 पर पहुंचा था, 1092 प्वाइंट की गिरावट आई थी।
2019 के बजट वाले दिन सेंसेक्स-36,469 पर पहुंचा था, 213 प्वाइंट की गिरावट आई थी।
मोदी सरकार के इन 7 सालों में सेंसेक्स कैसे बढ़ा।
2014 में सेंसेक्स 25,375 पर था।
2019 में सेंसेक्स 41,000 पर था।
2021 में सेंसेक्स 48,600 पर था।
2022 में सेंसेक्स 58,000 पर हैं।
SBI की एक रिपोर्ट के मुताबिक
पिछले साल अप्रैल और मई के दो महीनों में 44.7 लाख रिटेल निवेशक शेयर बाजार से जुड़े हैं
साल 2020 में सक्रिय निवेशकों की संख्या 1 करोड़ 40 लाख तक बढ़ी है
पिछले साल सितंबर तक कुल डीमैट अकाउंट की संख्या 7 करोड़ पहुंच गई
साल 2021 में 2 करोड़ 40 से ज्यादा डीमैट अकाउंट खुले चुके हैं इसमें ज्यादातर फर्स्ट टाइम इनवेस्टर्स हैं
भारत में 80 करोड़ से ज्यादा वयस्क हैं, अगर ऐसे ही लोग शेयर बाजार से जुड़ेंगे तो ग्रोथ की संभावना और बढ़ जाएगी
लेकिन सरकार की बैलेंस शीट देखिए
पिछले साल बजट में जो टारगेट रखे गए थे
वित्तीय वर्ष 2021-22 का अनुमान
कमाई-20 लाख करोड़
खर्च- 35 लाख करोड़
घाटा-15 लाख करोड़
15 लाख करोड़। जो आप Fiscal Deficit यानी वित्तीय घाटा शब्द सुनते हैं, ये वही है
सरकार की एक दिन की कमाई
20 लाख करोड़ सालाना/365 दिन=5479 करोड़ रुपये
एक सवाल जो आपके मन में आया होगा कि जब कमाई 20 रुपये है, खर्च 35 रुपये है, और घाटा 15 रुपये है तो देश चलता कैसे है? ये 15 रुपये कहां से आते हैं?
पहले सवाल का जवाब
चूंकि सरकारों को अक्सर कल्याणकारी काम करने होते हैं, सरकार कॉरपोरेट कंपनी की तरह काम नहीं करती, उसे ऐसी चीजें पर भी खर्च करना होता है जिससे उसकी कोई कमाई ना हो लेकिन जनता का कल्याण हो रहा हो। इसलिए सरकार हमेशा घाटे में रहती है। घाटे में ही चलती है । विकास कार्यों को पूरा करने के लिए सरकार उधार लेती है ।
अब सरकार तीन तरह से उधार ले सकती है
नई करेंसी छापकर - RBI से उधार
घरेलू स्त्रोतों से - बॉन्ड जारी कर या पहले से बैंक के पास पड़े पैसों से उधार
विदेशी स्त्रोतों से- विश्व बैंक, IMF, एशियाई विकास बैंक से उधार
अब दूसरे सवाल का जवाब
सरकार एक तय सीमा से ज्यादा करेंसी इसलिए नहीं छापती क्योंकि इससे देश में महंगाई बढ़ सकती है. अगर ज्यादा नोट छपेंगे तो इससे लोगों के पास ज्यादा पैसा आ जाएगा. जब ज्यादा पैसा आएगा तो उनकी जरूरतें भी बढ़ेंगी. इससे महंगाई बढ़ेगी. साथ ही हम जिन चीजों का उपभोग करते हैं या सेवाएं लेते हैं वो तो उतनी ही हैं लेकिन बाजार में करेंसी बढ़ जाने से उनकी कीमत में इजाफा हो जाएगा. मतलब कोई देश जितनी ज्यादा करेंसी छापेगा, वहां उतनी ही महंगाई बढ़ जाएगी. इसे मुद्रास्फीति कहा जाता है. मुद्रास्फीति को अगर काबू नहीं किया गया तो इससे अर्थव्यवस्था भी चौपट हो सकती है ।
इसके एक Example से समझा दीजिए
सरकार की कमाई कहां से होती है?
टैक्स कलेक्शन=इनकम टैक्स+कॉरपोरेट टैक्स+जीएसटी+कस्टम+एक्साइज़+सर्विस टैक्स
नॉन टैक्स रेवेन्यू=डिविडेंड प्रॉफिट+इंटरेस्ट+अन्य
डिसइंवेस्टमेंट
सरकार की कमाई बढ़ी या घटी?
नेट टैक्स कलेक्शन
कलेक्शन टारगेट-15.4 लाख करोड़
अनुमानित कलेक्शन-18.4 लाख करोड़
यानी टैक्स से कमाई करीब 3 लाख करोड़ रुपये बढ़ी है
सरकार की इनकम का सोर्स
जीएसटी-11 लाख करोड़
पर्सनल इनकम टैक्स- 5 लाख करोड़
कंपनी इनकम टैक्स-6 लाख करोड़
एक्साइज़ ड्यूटी- 4 लाख करोड़
कस्टम ड्यूटी- 1.3 लाख करोड़
डिसइंवेस्टमेंट-9300 करोड़
PSUs डिविडेंड- 26,000 करोड़
RBI डिविडेंड- 99,000 करोड़
सरकार के खर्च का हिसाब
कुल खर्च- 34.8 लाख करोड़
राजस्व खर्च- 29.3 लाख करोड़
पूंजी खर्च- 5.5 लाख करोड़
राजस्व खर्च= सरकार चलाने का खर्च
=सैलरी+सिस्टम पर खर्च+सब्सिडी+पेंशन+लोन पर ब्याज का पेमेंट+राज्यों को ग्रांट
पूंजी खर्च= हाईवे+रोड+रेलवे+डिफेंस+डेवेलपमेंट+इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स
सरकार के 100 रुपये में कहां कितना खर्च?
केंद्रीय योजनाएं-22 रुपये
लोन का ब्याज- 18 रुपये
राज्यों का हिस्सा-16 रुपये
सैलरी- 9 रुपये
सब्सिडी- 8 रुपये
डिफेंस- 8 रुपये
पेंशन-5 रुपये
अन्य-14 रुपये
टैक्स कलेक्शन से जो कमाई बढ़ी, वो सब्सिडी में जा रही है।
टैक्स से कमाई बढ़ी-3 लाख करोड़
सब्सिडी पर खर्च- करीब 5 लाख करोड़
फूड सब्सिडी-3.90 लाख करोड़
खाद सब्सिडी-1.40 लाख करोड़
अब डिजिटल करेंसी और क्रिप्टो की बात करते हैं
-भारत में 10 करोड़ क्रिप्टो इंवेस्टर हैं
-क्रिप्टो करेंसी 70 हज़ार करोड़ रुपये का निवेश है
-2020 में क्रिप्टो मार्केट की 641% ग्रोथ हुई है
-ज़्यादातर निवेशक 21-35 एज ग्रुप के हैं
-क्रिप्टो करेंसी पर बिल का क्या हुआ ?
- मानसून सत्र में सरकार बिल लाने वाली थी
नोटों की बात हो रही है तो थोड़ा इतिहास भी देख लेते हैं।
RBI ने 1938 में पहला नोट छापा था। ये नोट पांच रुपये का था। इसमें किंग जॉर्ज द फिफ्थ की फोटो थी। इसी सीरीज़ में RBI ने 100 रुपये, 1000 रुपये और 10,000 रुपये का नोट छापा था।
नोटों के बारे में कुछ रोचक तथ्य ये हैं कि
-आज़ादी के बाद एक साल तक RBI ने पाकिस्तान के लिए भी नोट छापे थे
-भारत का सबसे बड़ा नोट 10,000 रुपये का था, जो 1978 तक चला था
-रिजर्व बैंक अधिकतम 10,000 रुपये का ही नोट छाप सकता है
-महात्मा गांधी की फोटो के साथ पहला नोट 1969 में छापा गया
-500 रुपये का पहला नोट 1987 में छापा गया
नोट छापने पर कितना खर्च आता है?
2000 रुपये का नोट छापने में 3 रुपये 54 पैसे लगते हैं
500 रुपये का नोट छापने में 2 रुपये 65 पैसे लगते हैं
200 रुपये का नोट छापने में 2 रुपये 48 पैसे लगते हैं
100 रुपये का नोट छापने में 1 रुपये 89 पैसे लगते हैं
50 रुपये का नोट छापने में 1 रुपये 24 पैसे लगते हैं
20 रुपये का नोट छापने में 87 पैसे लगते हैं
10 रुपये का नोट छापने में 86 पैसे लगते हैं
बजट के रोचक तथ्य
बजट की प्रथा 1850 में इंग्लैंड में शुरू हुई थी
आज़ादी से पहले भारत का बजट इंग्लैंड में पेश होता था
1999 से पहले आम बजट शाम को 5 बजे पेश होता था
1999 में सुबह 11 बजे बजट पेश करने की परंपरा बनी
2016 तक फरवरी के आखिरी दिन आम बजट पेश होता था
2017 में बजट पेश करने का दिन बदल कर 1 फरवरी हुआ
2017 से पहले रेल बजट अलग से पेश किया जाता था
2017 में रेल बजट को आम बजट में मिला दिया गया
पहले वित्त मंत्री बजट दस्तावेज एक ब्रीफकेस में लाते थे
निर्मला सीतारमण 2019 में बही खाते में बजट लेकर आई
2020 में निर्मला सीतारमण ने टैबलेट से बजट भाषण पढ़ा था
बजट कैसे तैयार किया जाता है?
बजट बनाने की प्रक्रिया संसद में इसे पेश करने से छह महीने पहले शुरू हो जाती है। यह काफी-लंबी चौड़ी प्रक्रिया होती है। इसके तहत अलग-अलग प्रशासनिक निकायों से आंकड़े मंगाए जाते हैं। इन आंकड़ों से पता किया जाता है कि उन्हें कितने फंड की जरूरत है। इसके साथ ही यह तय किया जाता है कि जनकल्याण योजनाओं के लिए कितने पैसों की जरूरत होगी. इसी हिसाब से अलग-अलग मंत्रालयों को फंड मुहैया कराए जाते हैं।
बजट बनाने में वित्त मंत्री के अलावा वित्त सचिव, राजस्व सचिव और व्यय सचिव अहम भूमिका निभाते हैं। इस दौरान हर रोज कई बार वित्त मंत्री से उनकी बजट के सिलसिले पर बातचीत होती है. बैठक या तो नॉर्थ ब्लॉक ( जहां वित्त मंत्रालय है) में होती है या वित्त मंत्री के आवास पर। बजट बनाने के दौरान पूरी टीम को प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष का सहयोग मिलता रहता है. अलग-अलग क्षेत्र के एक्सपर्ट भी बजट टीम में काम करते हैं।
बजट पेश करने से पहले विभिन्न उद्योगों के प्रतिनिधियों और उद्योग संगठनों के लोगों से भी वित्त मंत्री सलाह-मशविरा करते हैं। इन मुलाकातों में ये संगठन अपने-अपने सेक्टर को सुविधाएं और टैक्स राहत देने की मांग रखते हैं। बजट से पहले तमाम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों को अंतिम रूप दिया जाता है।
बजट की गोपनीयता कैसे रखी जाती है?
चुनिंदा अधिकारी बजट दस्तावेज तैयार करते हैं. इस प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाले सभी कंप्यूटरों को दूसरे नेटवर्क से डीलिंक कर दिया जाता है ताकि यह लीक न हो। बजट पर काम कर रहा स्टाफ करीब दो से तीन हफ्ते तक नॉर्थ ब्लॉक के दफ्तरों में ही रहता है. उनको बाहर आने की इजाजत नहीं होती। नॉर्थ ब्लॉक के बेसमेंट में लगे प्रिंटिंग प्रेस में बजट तैयार करने से जुड़े अफसर और कर्मचारी लगभग लॉक कर दिए जाते हैं। बजट बनाने की प्रक्रिया के दौरान उन्हें अपने परिजनों तक से बातचीत करने या मिलने की इजाजत नहीं होती है।