- सरकार का टैक्स कलेक्शन लक्ष्य से ज्यादा होने की उम्मीद है, ऐसे में वित्त मंत्री के पास पैसा खर्च करने का मौका है।
- 5 राज्यों में चुनावों को देखते हुए वित्त मंत्री से लोकलुभावन घोषणाओं की उम्मीद है।
- अमीर और गरीब की बढ़ती खाई को रोकने के लिए वित्त मंत्री से बड़े कदम की उम्मीद है।
नई दिल्ली: दिल्ली की कुर्सी मजबूत करने वाले सबसे अहम राज्यों में चुनाव सिर पर हो और बजट पेश करना हो, तो किसी भी वित्त मंत्री के लिए चुनावी बजट से परहेज करना काफी मुश्किल होगा। यहां तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने, राजनीति से लेकर कोरोना संकट से उबरकर पटरी पर आ रही अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की दोहरी चुनौती है।
इस चुनौती के बीच इस बार की बजट से उम्मीदों की फेहरिस्त बेहद लंबी है। क्योंकि वित्त मंत्री से केवल आम आदमी को बड़ी राहत की आस नहीं है बल्कि उस कॉरपोरेट सेक्टर की लिस्ट भी लंबी है जो कुछ देने की हालत में रहता है। साफ है कि वित्त मंत्री को लोकलुभावन बजट से लेकर अर्थशास्त्र के सिद्धांतों के बीच ताल-मेल बैठाने की सबसे बड़ी चुनौती होगी।
बढ़ी कमाई का सरकार देगी फायदा
सरकार की ज्यादा कमाई को इन दो आंकड़ों से समझा जा सकता है। एक तो पिछले छह महीनों में हर महीने औसतन 1.20 लाख करोड़ रुपए तो सिर्फ जीएसटी से ही आए हैं। और वह 9 महीने में 10.50 लाख करोड़ रुपये को पार कर चुका है। इसी तरह डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन जिसमें पर्सनल इनकम टैक्स और कॉरपोरेट टैक्स आदि शामिल होते हैं। वह भी दिसंबर 2021 तक (यानी वित्त वर्ष के 9 महीने) में 9.45 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया है। यानी कुल टैक्स कलेक्शन 9 महीने में ही 20 लाख करोड़ रुपये पार कर चुका है। जबकि सरकार का मार्च तक टैक्स कलेक्शन का लक्ष्य 22.2 लाख करोड़ रुपये का है। साफ है कि सरकार इस बार मार्च तक लक्ष्य से कहीं ज्यादा कमाएगी।
कमाई के बाद अब खर्च की बात करते हैं। सरकार ने 2021-22 के लिए अतिरिक्त मांग के साथ 38 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च का लक्ष्य रखा था। लेकिन अक्टूबर की रिपोर्ट के अनुसार कई मंत्रालयों ने आवंटित बजट से 20-25 फीसदी राशि कम खर्च की थी। ऐसे में ऐसी संभावना है कि सरकार अपने खर्च के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएगी। यानी यहां भी सरकार का पैसा बचा है। इसका फायदा यह होगा कि सरकार अपने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य (जीडीपी का 6.8 फीसदी ) को पूरा कर पाएगी और वह बजट 2022 में पैसा खर्च करने के लिए बेहतर स्थिति में होगी। इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार 2021-22 में कैपिटल खर्च पिछले 7 साल में सबसे ज्यादा हुआ है। हालांकि यह खर्च सरकार द्वारा ही किया गया है, अभी प्राइवेट सेक्टर इस दिशा में कदम उठाने से हिचक रहा है।
नाराज को मिलेगी सौगात
जैसी संभावना है कि वित्त मंत्री का बजट, उस तबके को लुभाने के लिए जरूर कई सौगात दे सकता हैं, जो नाराज है। अब सवाल उठता है कि नाराज कौन लोग हैं। तो इसमें नौकरी के तलाश में युवा, महंगाई से परेशान आम आदमी, किसान, छोटे व्यापारी आते हैं। अब देखना है कि वित्त मंत्री इन तबकों को खुश करने के लिए क्या सौगात देती हैं।
अर्थशास्त्रियों का भी मानना है कि कोरोना के संकट से उबर रही अर्थव्यवस्था को छलांग लगाने के लिए सरकार को खर्च की परवाह नहीं करनी चाहिए। ऐसा कर वह मांग बढ़ा सकती है, जिससे नौकरियां भी बढ़ेंगी। कोरोना के दौरान लोगों की इनकम घटी है, ऐसे में सरकार उनकी इनकम बढ़ाने के लिए क्या कदम उठा सकती है। इस पर भी नजर है। साथ ही ऐसे कदम उठाने पर भी नजर होगी, जिससे लोगों की बचत बढ़े। क्योंकि जब बचत बढ़ेगी तभी लोग खर्च करेंगे।
बचत बढ़ाने के लिए इनकम टैक्स में राहत से लेकर, कर छूट जैसे प्रावधानों की वित्त मंत्री से उम्मीदे हैं।
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अमीर-गरीब की बढ़ती खाई पर कैसे लगेगी लगाम
ऑक्सफैम की ताजा रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक साल में देश के 84 फीसदी लोगों की इनकम गिर गई है। वहीं अरबपतियों की संख्या इसी अवधि में 102 से बढ़कर 142 हो गई है। रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2020 से नवंबर 2021 के बीच अरबपतियों की इनकम 23.14 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 53.16 लाख करोड़ रुपये हो गई । जबकि साल 2020 में 4.6 करोड़ लोग घोर गरीबी में चले गए।
इन आंकड़ों से साफ है कि भारतीय इकोनॉमी में k आकार वाली रिकवरी दिख रही है। यानी कुछ लोगों का विकास हो रहा है लेकिन कुछ लोगों की स्थिति बिगड़ रही है। ऐसे में फाइट इनइक्वैविटी अलायंस के सर्वे के अनुसार 78 फीसदी लोगों का मानना है कि 2 करोड़ रुपये से सालाना कमाने वालों पर 2 फीसदी कोविड सेस लगाया जाय। अब देखना है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण क्या सुपर रिच पर अतिरिक्स टैक्स लगाकर जरूरतमंदों पर पैसा खर्च करेगी । इसी तरह सर्वे में मनरेगा के तहत शहरों के लिए रोजगार गारंटी जैसी योजना की भी मांग है।
इकोनॉमिक सर्वे क्या देता है संकेत
इकोनॉमिक सर्वे ने 2022-23 के लिए 8 से 8.5 फीसदी ग्रोथ रेट की उम्मीद जताई है। अच्छी बात यह है कि यह ग्रोथ लक्ष्य 2020-21 के 9.2 फीसदी ग्रोथ अनुमान पर की गई है। ग्रोथ रेट कम होने का लक्ष्य होने के बाद भी 8-8.5 फीसदी ग्रोथ का भरोसा यह जताता है कि लो बेस के बाद जो 9.2 फीसदी ग्रोथ हासिल हो रही है। उस पर 8 फीसदी ग्रोथ होना अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने की संकेत देता है। हालांकि सर्विस सेक्टर अभी रिकवर नहीं हुआ है। जो कि रोजगार का सबसे बड़ा क्षेत्र है। ऐसे में मंत्री से सर्विस सेक्टर को बूस्ट की उम्मीद है। साथ ही सर्वे में पीएलआई स्कीम पर भरोसा जताया गया है, ऐसे में इसके लिए बड़े प्रावधान हो सकते हैं।