नई दिल्ली : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास, पंचायत राज और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शुक्रवार को कहा कि कृषि वैज्ञानिक जब गांव-गांव तक पहुंचेंगे तो किसानों को कृषि से संबंधित नई जानकारी मिलेगी जिससे उनको फायदा होगा। कृषि मंत्री ने कहा कि देश तकरीबन हर जिले में कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) हैं और सरकार इनके संसाधन बढ़ाने की कोशिश में जुटी है। उन्होंने राज्यों से केवीके के संसाधनों का सदुपयोग करने की अपील की। केंद्रीय मंत्री तोमर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की क्षेत्रीय जलवायु समिति-चार (उत्तर प्रदेश, बिहार व झारखंड) की द्विवार्षिक बैठक में बोल रहे थे।
राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल करते हुए,जलवायु के हिसाब से अलग-अलग जोन बनाकर आठ समितियां गठित की गई हैं ताकि क्षेत्र विशेष की समस्याओं की जानकारी जुटाकर उन पर चर्चा करते हुए किसानों के हितों व कृषि क्षेत्र के विकास को ध्यान में रखकार योजनाएं बनाई जाएं। तोमर ने कहा कि हम सभी का एक ही लक्ष्य है कि हमारे देश की कृषि उन्नत हो और जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान बढ़े। वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो, कृषि का क्षेत्र भी लाभप्रद हो और इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर सृजित हो। इस दिशा में केंद्र व राज्य सरकारें लगातार काम कर रही हैं।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि गांव-गांव में जब भंडारण की सुविधा होगी तो किसान अपनी उपज बाद में उचित मूल्य पर बेच सकेंगे। साथ ही, छोटी-छोटी फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स गांव-गांव में खुलने से भी किसानों को लाभ मिलेगा। बैठक में केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री परषोत्तम रूपाला ने कहा कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के प्रधानमंत्री के लक्ष्य को प्राप्त करने में सरकार की योजनाएं कारगर साबित होंगी और कृषि सुधार के नए कानून बनने से सभी को फायदा होगा।
इस मौके पर उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही ने राज्य में कृषि क्षेत्र के विकास की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि राज्य में केंद्र की योजनाओं को अमल में लाया जा रहा है और मृदा स्वास्थ्य परीक्षण में रिकॉर्ड स्तर पर काम हुआ है। इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री तोमर ने आईसीएआर के प्रकाशनों का विमोचन भी किया। बैठक में बिहार के कृषि मंत्री अमरेंद्र प्रताप सिंह, झारखंड के कृषि मंत्री बादल पत्रलेख, आईसीएआर के डीजी डॉ. त्रिलोचन महापात्र, सभी डीडीजी व विभिन्न संस्थानों के निदेशक, तीनों राज्यों के कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपति एवं कृषि विभाग के अधिकारी और वैज्ञानिक भी शामिल हुए।