- कोरोना वायरस के चलते अर्थव्यवस्था डिरेल हो गई है
- करोड़ों का रोजगार छिन गया है, बेरोजगारी बढ़ गई है
- पैसे की कमी की वजह से लोन से लेकर अन्य खर्चों को मैनेज करने में लोग परेशान हैं
इस मुश्किल घड़ी में हमें कड़े फैसले लेने की जरूरत है। आमदनी घट गई है और बेरोजगारी बढ़ गई है। परिवार और कारोबार दोनों जगह कैश फ्लो कम हो गया है। व्यक्ति को इस परिस्थिति में अपना पेमेंट करने या न करने के फायदे-नुकसान के बारे में पता होना चाहिए। अक्सर, लोगों को साफ तौर पर यह मालूम ही नहीं होता है कि उनके लिए सबसे अच्छा विकल्प कौन-सा है। इसलिए, आइए तीन कठिन विकल्पों पर नजर डालते हैं जो आपको इस संकट काल में लेने पड़ सकते हैं।
अपना इंश्योरेंस प्रीमियम दें या अपनी EMI?
फिलहाल कई लोग यही सोच रहे होंगे कि उन्हें अपने इंश्योरेंस का प्रीमियम देते रहना चाहिए या नहीं। यदि आपको अपने इंश्योरेंस प्रीमियम पेमेंट या अन्य महत्वपूर्ण पेमेंट जैसे अपनी लोन EMI में से किसी एक को चुनना है तो आपको अपने इंश्योरेंस प्रीमियम का पेमेंट करना चाहिए। इस वैश्विक-महामारी के कारण हेल्थ रिस्क काफी बढ़ गया है। आपके या आपके परिवार के सदस्यों के अस्पताल में भर्ती होने पर आपकी गाढ़ी कमाई बहुत जल्द खत्म हो सकती है। इसलिए, अपने और अपने परिवार के सदस्यों के लिए हेल्थ कवरेज लेकर रखना जरूरी है। सिर्फ एम्प्लोयर के इंश्योरेंस के भरोसे न रहें क्योंकि नौकरी छूटने पर कवरेज भी खत्म हो सकता है।
लाइफ रिस्क को कवर करने के लिए टर्म इंश्योरेंस लेना भी जरूरी है, खास तौर पर इस वैश्विक-महामारी के दौरान। इसलिए, सबसे पहले इन दो तरह के इंश्योरेंस पर ध्यान दें। तो फिर आपकी EMI का क्या होगा? शुक्र है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने लोन EMI पर और तीन महीने का मोरेटोरियम दे दिया है। इससे आप बिना किसी जुर्माने या क्रेडिट स्कोर नुकसान के 31 अगस्त तक अपनी EMI देने से बच सकते हैं। लेकिन यह EMI सिर्फ टली है, कैंसल नहीं हुई है। इस पर इंटरेस्ट लगता रहेगा। एक भी छूटी हुई EMI के बदले कई एक्स्ट्रा EMI देनी पड़ेगी।
इन्वेस्टमेंट जारी रखें या सिर्फ सेविंग करें?
इन्वेस्टमेंट मार्केट्स वोलेटाइल हो गए हैं। इस वैश्विक-महामारी के आने के बाद से स्टॉक मार्केट्स से अरबों रुपए की दौलत साफ हो गई है। कई डेब्ट फंड्स और रियल एस्टेट पर बुरा असर पड़ा है। स्मॉल सेविंग स्कीम्स में भी रेट कटौती हुई है, और अधिकांश वन-इयर बैंक FD रेट्स 4-6 प्रतिशत की रेंज में हैं।
तो क्या आपको अपना इन्वेस्टमेंट बंद कर देना चाहिए? इस सवाल का जवाब सुव्यवस्थित तरीके से देना होगा।
सेविंग और इन्वेस्टमेंट में यही फर्क है कि सेविंग्स के लिए पैसे को एक अत्यंत सुरक्षित बैंक अकाउंट में रखा जाता है जबकि इन्वेस्टमेंट के लिए आपको ज्यादा रिटर्न के लिए ज्यादा रिस्क लेना पड़ता है। इसलिए, आपको इससे जुड़े कुछ सवालों के जवाब ढूंढने होंगे।
पहला सवाल: क्या आपके पास पर्याप्त पैसे हैं?‘पर्याप्त' का मतलब अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग होता है लेकिन फिलहाल, इसका मतलब अपने मौजूदा मंथली इनकम के छः गुना बराबर सेविंग्स है। यह एक इमरजेंसी फंड है जो नौकरी छूटने, हेल्थ प्रॉब्लम और प्राकृतिक आपदा जैसे मुश्किल समय से बाहर निकलने में मदद करता है। यदि आपके पास यह फंड नहीं है तो पहले सेविंग्स करें।
दूसरा सवाल, यदि आपके पास पैसे हैं, तो क्या आप ज्यादा रिस्क ले सकते हैं? यदि हाँ, तो इन्वेस्टमेंट चालू रखें।
तीसरा सवाल, क्या आप अपने इन्वेस्टमेंट को बढ़ने के लिए ज्यादा समय दे सकते हैं? इक्विटी इन्वेस्टमेंट में अच्छा रिटर्न पाने के लिए आपका इन्वेस्टमेंट होराइजन लम्बा होना चाहिए जैसे पांच साल या उससे ज्यादा। लेकिन यदि आपको थोड़े दिनों में ही पैसे वापस चाहिए या यदि आप रिस्क नहीं ले सकते तो आपके लिए बैंक डिपोजिट ही ठीक रहेगा।
EMI भरने के लिए इन्वेस्टमेंट तोड़ दें या मोरेटोरियम का इस्तेमाल करें?
इनकम न होने पर, EMI भरने के लिए अपनी सेविंग्स तोड़नी पड़ सकती है। इससे लम्बे समय में वेल्थ क्रिएट करने की कोशिश पर पानी फिर सकता है, लेकिन सवाल यह है कि आपको ऐसा करना चाहिए या नहीं। यदि आप मोरेटोरियम का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो आपको छूटी हुई EMI के कारण आपके लोन में जुड़ने वाले एक्स्ट्रा इंटरेस्ट का कैलकुलेशन करना चाहिए।
यदि आप अपनी सेविंग्स तोड़ना चाहते हैं तो उसका कॉस्ट जान लें। उदाहरण के लिए, एक साल से कम समय के लिए रखे गए इक्विटी म्यूच्यूअल फंड्स यूनिट्स को लिक्विडेट करने पर 1 प्रतिशत एग्जिट लोड लगता है। समय से पहले FD तोड़ने पर 1 प्रतिशत इंटरेस्ट पेनाल्टी लगती है। और समय से पहले अपनी एंडोमेंट पॉलिसी या ULIP को सरेंडर करने पर बहुत ज्यादा पेनाल्टी लगती है।
होल्डिंग पीरियड के आधार पर टैक्स भी लग सकता है। उदाहरण के लिए, लगभग 6 प्रतिशत का रिटर्न देने वाले लिक्विड म्यूच्यूअल फंड यूनिट्स को तीन साल बाद लिक्विडेट करने पर आपका पोस्ट-टैक्स रिटर्न 6 प्रतिशत से कम होगा। लेकिन दो साल के भीतर लिक्विडेट करने पर आपके इनकम टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स लगेगा जो 30 प्रतिशत तक जा सकता है जिससे आपका पोस्ट-टैक्स रिटर्न 5 प्रतिशत से कम हो सकता है। इसलिए, लिक्विडेशन से पहले उसका कॉस्ट ध्यान में रखें।
हमलोग एक संकट से गुजर रहे हैं लेकिन फाइनेंस के मामले में हमें धैर्य रखना चाहिए और जरूरी फैसले लेने चाहिए। हमारे लिए यही सबसे अच्छा होगा।
(इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)
(डिस्क्लेमर: यह जानकारी एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार पर दी जा रही है। बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं, इसलिए निवेश के पहले अपने स्तर पर सलाह लें।) ( ये लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसको निवेश से जुड़ी, वित्तीय या दूसरी सलाह न माना जाए)