नई दिल्ली। श्रीलंका में त्राहिमाम मचा है। श्रीलंका की आर्थिक बदहाली की नजीर ये है कि साल 2018 में GDP जीडीपी और कर्ज का अनुपात 91 फीसदी था जो कि 2021 में बढ़कर 119 फीसदी पहुंत चुका है। नजीर ये भी है कि जनता सड़कों पर है, राष्ट्रपति भवन पर लोग कब्जा कर चुके हैं, राष्ट्रपति के बेडरूम में सोया जा रहा है, स्वीमिंग पूल में नहाया जा रहा है, दुकानों पर राशन नहीं, पेट्रोल पंप पर तेल नहीं और सुधरने की संभावना फिलहाल नहीं। इसी बीच ये भी लगातार कहा और पूछा जा रहा है कि क्या भारत की हालत श्रीलंका जैसी होने जा रही है? विश्व की अग्रणी अर्थव्यवस्था की कतार में आने को तत्पर भारत में क्या श्रीलंका जैसी अव्यवस्था होने जा रही है? ये वो सवाल जो आज पब्लिक डोमेन में हैं और जवाब तलाशने के लिए थोडे से आंकड़े जानने होंगे।
- विदेशी मुद्रा भंडार- श्रीलंका के पास विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 15 हजार करोड़ रुपये है। जबकि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 49 लाख करोड़ रुपये है। यानी इतना 32600 फीसदी ज्यादा।
- गोल्ड रिजर्व - श्रीलंका के पास गोल्ड रिजर्व यानी सोने का भंडार सिर्फ 1.6 टन बचा है। जबकि भारत के पास गोल्ड रिजर्व 744 टन है।
- विकास दर - श्रीलंका की विकास दर का अनुमान 3.1 फीसदी है। जबकि भारत की विकास दर दुनिया में सबसे तेज 8.2 फीसदी रहने का अनुमान है।
- मंहगाई दर - श्रीलंका की महंगाई दर 54.6 फीसदी है। जबकि भारत की महंगाई दर 7.4 फीसदी है और ये दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले कम है।
- शेयर बाजार - श्रीलंका का शेयर बाजार पांच साल में 50 फीसदी गिरा है। जबकि भारत का शेयर बाजार पिछले 5 साल में 70 फीसदी बढ़ा है।
कितना है श्रीलंका और भारत का कर्ज
श्रीलंका और भारत के कर्ज के आंकड़ों को लेकर भी ये दावा किया जा रहा है कि भारत की हालत श्रीलंका जैसी हो जाएगी क्योंकि श्रीलंका पर जहां कुल विदेशी कर्ज लगभग 4 लाख करोड़ रुपये है वही भारत पर लगभग 49 लाख करोड़ रुपये है। लेकिन कर्ज की रकम के आधार पर ये तय कर देना एक सतही आंकलन होगा। कोई भी देश अपनी अर्थव्यवस्था के अनुपात में ही कर्ज लेता है और GDP के अनुपात में श्रीलंका का कुल कर्ज 111 फीसदी है जबकि भारत का कर्ज लगभग 60 फीसदी फीसदी।
पिछले दशक के मुकाबले कम हुआ है कर्ज
जीडीपी से कर्ज का अनुपात जितना कम होगा, एक देश कर्ज को चुकाने में उतना ही सहज होगा। हालांकि मौजूदा वक्त में देश में कर्ज पिछले दशक के मुकाबले घटा है। अगर केंद्र की सरकारों के कार्यकाल को एक काल खंड माना जाए तो आंकड़ा ये कहता है कि मनमोहन सरकार यानी 2006 से 2013 में देश पर कर्ज था लगभग 270 बिलियन डॉलर और मोदी सरकार में यानी 2014 -2021 में कर्ज है लगभग 160 बिलियन डॉलर। GDP से कर्ज के अनुपात की बात की जाए तो आंकड़े 2013 के अंत में ये अनुपात 22.4 फीसदी था और 2022 में 19.9 फीसदी है। मार्च 2020 में यही अनुपात 20.6 फीसदी था जो कि मार्च 2021 में बढ़कर 21.1 फीसदी हुआ और मार्च 2022 में 19.9 फीसदी हो गया है वोभी तब जबकि कर्ज बढ़ा है।
यानी ये समझा जा सकता है कि भारत के श्रीलंका जैसा बनने की बातें फिलहाल एक लफ्फाजी ही नजर आती है या फिर कोई सोचा समझा एजेंडा।