- कृषि और किसान से जुड़े तीन बिल लोकसभा के बाद राज्यसभा में पास हो गए
- पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान इन बिलों का सबसे ज्यादा विरोध कर रहे हैं
- यहां MSP पर गेहूं और धान की सरकारी खरीद व्यापक पैमाने पर होती है
नई दिल्ली : फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के मसले पर किसान सरकार से महज वादे नहीं, बल्कि MSP से नीचे किसी फसल की बिक्री न हो, इस बात की गारंटी चाहते हैं। सरकार कृषि के क्षेत्र में सुधार के नए कार्यक्रमों को लागू करने के लिए जिसे ऐतिहासिक विधेयक बता रही है, दरअसल किसान उस विधेयक को MSP की गारंटी के बगैर बेकार बता रहे हैं। कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020 और कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 रविवार को राज्यसभा में पारित होने के बाद दोनों विधेयकों को संसद की मंजूरी मिल गई है। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जहां MSP पर गेहूं और धान की सरकारी खरीद व्यापक पैमाने पर होती है वहां के किसान इन विधेयकों का सबसे ज्यादा विरोध कर रहे हैं।
पंजाब में भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के प्रदेश अध्यक्ष और ऑल इंडिया कोर्डिनेशन कमेटी के सीनियर कोर्डिनेटर अजमेर सिंह लखोवाल ने आईएएनएस से कहा कि ये विधेयक किसानों के हित में नहीं हैं क्योंकि इनमें MSP को लेकर कोई जिक्र नहीं है। उन्होंने कहा कि किसान चाहते हैं कि उनकी कोई भी फसल MSP से कम भाव पर न बिके। भाकियू नेता ने कहा कि खरीद की व्यवस्था किए बगैर MSP की घोषणा से किसानों का भला नहीं होगा।
बिहार में MSP पर सिर्फ धान और गेहूं की खरीद होती है। बिहार के मधेपुरा जिला के किसान पलट प्रसाद यादव ने कहा कि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की सिफारिश पर सरकार हर साल 22 फसलों का MSP और गन्ने का लाभकारी मूल्य यानी एफआरपी तय करती है, लेकिन पूरे देश में कुछ ही किसानों को कुछ ही फसलों का MSP मिलता है। उन्होंने कहा कि सरकार को किसानों के हित में यह जरूर सुनिश्चित करना चाहिए कि उनको तमाम अनुसूचित फसलों का MSP मिले। उन्होंने कहा कि शांता कुमार समिति की रिपोर्ट ने भी बताया है कि देश के सिर्फ छह फीसदी किसानों को MSP का लाभ मिलता है, लिहाजा देश के सभी किसानों की फसलें कम से कम MSP पर बिक पाए, इस व्यवस्था की दरकार है।
किसानों की इस शिकायत का जिक्र राज्यसभा में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सांसद सतीश चंद्र मिश्रा ने भी किया। उन्होंने कहा कि आज किसान जो आंदोलन कर रहे हैं उनकी सिर्फ एक आशंका है कि इस विधेयक के बाद उनको MSP मिलना बंद हो जाएगा। बसपा सांसद ने कहा, अगर विधेयक में किसानों को इस बात का आश्वासन दिया गया होता कि उनको न्यूनतम समर्थन मूल्य अवश्य मिलेगा तो शायद यह आज चर्चा का विषय नहीं होता।
कृषि विधेयकों पर किसानों के साथ-साथ मंडी के कारोबारी भी खड़े हैं क्योंकि कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020 और कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन में APMC से बाहर होने वाली फसलों की बिक्री पर कोई शुल्क नहीं है, जिस कारण से उन्हें APMC मंडियों की पूरी व्यवस्था समाप्त होने का डर सता रहा है। हालांकि केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों और व्यापारियों को आश्वस्त किया है कि इन विधेयकों से न तो MSP पर किसानों से फसल की खरीद पर कोई फर्क पड़ेगा और न ही APMC कानून के तहत संचालित मंडी के संचालन पर।
जबकि राजस्थान खाद्य पदार्थ व्यापार संघ के चेयरमैन बाबूलाल गुप्ता कहते हैं कि जब मंडी के बाहर कोई शुल्क नहीं लगेगा तो मंडी में कोई क्यों आना चाहेगा। ऐसे में मंडी का कारोबार प्रभावित होगा। हरियाणा में कृषि विधेयकों को लेकर किसानों ने प्रदेशभर में सड़कों पर जाम लगाकर विरोध प्रदर्शन किया। भाकियू के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष गुराम सिंह ने आईएएनएस को बताया कि पूरे प्रदेश में रविवार को किसानों ने विधेयक का विरोध किया है और विधेयक के पास होने के बाद अब विरोध-प्रदर्शन और तेज होगा।