- भारत की रेटिंग अगस्त 2006 के बाद से लगातार 'बीबीबी-' है।
- लेकिन परिदृश्य स्थिर से नकारात्मक के बीच बदलता रहा है।
- फिच ने जोर देकर कहा कि भारत की मध्यम अवधि की वृद्धि संभावनाएं ठोस बनी हुई हैं।
नई दिल्ली। भारतीय अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर अच्छी खबर आई है। रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स (Fitch Ratings) ने शुक्रवार को भारत की सॉवरेन रेटिंग (India Sovereign Rating) में बदलाव कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय एजेंसी फिच ने भारत की रेटिंग को बढ़ा दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वित्त वर्ष 2023 के लिए भारत की जीडीपी ग्रोथ के अनुमान को पहले के स्तर पर बरकरार रखने के बाद अब फिच ने भारत की सॉवरेन रेटिंग के परिदृश्य को दो साल बाद नकारात्मक से स्थिर कर दिया है।
BBB- है भारत की सॉवरेन रेटिंग
फिच के अनुसार तेजी से आर्थिक सुधार की वजह से मध्यम अवधि के दौरान वृद्धि में गिरावट का जोखिम कम हो गया है। इसलिए भारत की सॉवरेन रेटिंग के परिदृश्य में बदलाव किया गया है। फिच रेटिंग्स ने भारत की सॉवरेन रेटिंग को 'बीबीबी-' पर कायम रखा। इस संदर्भ में रेटिंग एजेंसी ने कहा कि, 'परिदृश्य में बदलाव हमारे इस विचार को दर्शाता है कि वैश्विक जिंस कीमतों में तेजी के झटकों के बावजूद भारत में आर्थिक सुधार और वित्तीय क्षेत्र की कमजोरियों में कमी के कारण मध्यम अवधि के दौरान वृद्धि में गिरावट का जोखिम कम हो गया है।'
आर्थिक वृद्धि के अनुमान को किया कम
हालांकि, फिच रेटिंग्स ने चालू वित्त वर्ष के लिए आर्थिक वृद्धि के अनुमान को कम करके 7.8 फीसदी कर दिया है, जिसके पहले 8.5 फीसदी रहने की उम्मीद जताई गई थी। वैश्विक जिंस कीमतों में तेजी के कारण महंगाई बढ़ने के चलते यह कटौती की गई। फिच ने कहा कि, 'भारत की अर्थव्यवस्था में कोविड-19 महामारी के झटके से ठोस सुधार देखने को मिल रहा है।' पिछले वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था 8.7 फीसदी की दर से बढ़ी और देश के केंद्रीय बैंक आरबीआई को चालू वित्त वर्ष में 7.2 फीसदी वृद्धि की उम्मीद है।
ठोस बनी हुई हैं भारत की वृद्धि संभावनाएं
फिच ने जोर देकर कहा कि भारत की मध्यम अवधि की वृद्धि संभावनाएं ठोस बनी हुई हैं। फिच ने कहा कि समकक्षों के मुकाबले भारत का मजबूत वृद्धि परिदृश्य रेटिंग के लिए एक प्रमुख सहायक कारक है। रेटिंग एजेंसी ने कहा, 'हमें वित्त वर्ष 2023-24 और वित्त वर्ष 2026-27 के बीच लगभग सात फीसदी की वृद्धि का अनुमान है। यह सरकार के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, सुधार एजेंडे को आगे बढ़ाने और वित्तीय क्षेत्र में दबाव कम करने से प्रेरित है। फिर भी, आर्थिक सुधार और कार्यान्वयन की असमान प्रकृति को देखते हुए इस पूर्वानुमान के लिए चुनौतियां भी हैं।'
(एजेंसी इनपुट के साथ)