- गुरुमूर्ति ने लोन को एकबारगी रिस्ट्रक्चरिंग पर जोर दिया
- इससे कोरोना वायरस महामारी के संकट से जूझ रहे बिजनेस वर्ल्ड को बैंक और लोन दे सकेंगे
- बैंकों ने 2004 से 2009 के दौरान जरूरत से ज्यादा लोन दिया
नई दिल्ली : कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन की वजह से देश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतर गई है। उसे वापस लाने के लिए सरकार जीतोड़ कोशिश कर रही है। अर्थशास्त्री भी चिंतन मनन कर रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन समेत कई अर्थशास्त्रियों ने अपने-अपने विचार रखे चुके हैं। अब भारतीय रिर्जव बैंक (आरबीआई) के डायरेक्टर एस गुरुमूर्ति ने रिजर्व बैंक द्वारा घाटे को नोट छापकर पूरा करने का पक्ष लिया है। उन्होंने कहा कि विदेशों से फंड लेने के बजाय यह बेहतर विकल्प होगा।
अर्थव्यवस्था को धन की जरूरत, नहीं दे रहे हैं बैंक
स्वदेशी विचार धारा वाले गुरुमूर्ति ने लोन को एक बार में रिस्ट्रक्चरिंग पर जोर देते हुए कहा कि इससे कोरोना वायरस महामारी के संकट से जूझ रहे बिजनेस वर्ल्ड को बैंक और लोन दे सकेंगे। उन्होंने कहा कि आज स्थिति यह है कि नियमों के हिसाब से 80% कर्जदार और लोन लेने के पात्र नहीं है ऐसे में बैंक उन्हें कर्ज नहीं दे पा रहे हैं। गुरुमूर्ति ने कहा कि बैंकों ने 2004 से 2009 के दौरान जरूरत से ज्यादा लोन दिया और अब वे लोन नहीं देकर समस्या में घिर रहे हैं। ऐसे समय जब अर्थव्यवस्था को धन की जरूरत है, बैंकों के पास पैसा है भी, लेकिन बैंक लोन नहीं दे पा रहे हैं क्योंकि हम गलत विवेकपूर्ण नियमों का अनुसरण कर रहे हैं। अब बैंक कर्ज नहीं देकर अर्थव्यवस्था को परेशानी में डाल रहे हैं। गुरुमूर्ति भारत प्रकाशन दिल्ली द्वारा 'भारतीय अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण: चुनौतियां और अवसरों' पर आयोजित वेबिनार में कहा कि बैंकों ने 11 लाख करोड़ रुपए की जमा में से कम से कम 6 लाख करोड़ रुपए रिजर्व बैंक में रखे हैं।
अर्थशास्त्रियों के विचार...
रघुराम राजन ने कर्ज के लिए रिजर्व बैंक से नोट निकाले जाने के विचार का समर्थन किया था। उन्होंने इस असाधारण समय में गरीबों व प्रभावितों तथा अर्थव्यवस्था की सुरक्षा के लिये सरकारी कर्ज के लिए रिजर्व बैंक द्वारा अतिरिक्त नोट जारी किए जाने और राजकोषीय घाटे की सीमा बढ़ाने की वकालत की। अर्थशास्त्री देवेंद्र कुमार पंत ने नए नोट छापकर पैसे जुटाने का सीधा पक्ष लिए बिना कहा कि इस समय आवश्यकता धन की है। अर्थशास्त्री राधिका राव ने कहा कि अभी 1.7 लाख करोड़ रुपए का राहत पैकेज दिया गया है, जो जीडीपी का सिर्फ 0.8 प्रतिशत है। उन्होंने इसे अपर्याप्त बताते हुए दूसरे राहत पैकेज की उम्मीद जाहिर की। कई अन्य अर्थशास्त्रियों ने भी गरीबों की मदद करने और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए लीक से हट कर संसाधनों का प्रबंध करने का सुझाव दिया है।