नई दिल्ली। पहले चीन-अमेरिका के बीच ट्रेड वार फिर कोरोना का अवतार और अब यूक्रेन पर रूस का प्रहार, इन सब ने दुनिया को अगर कुछ दिया है और जो दिख रहा है वो है मानवीय कष्ट, बढ़ती महंगाई और बिगड़ता वर्ल्ड आर्डर। एक के बाद एक वैश्विक घटनाओं ने और विशेष कर हालिया यूक्रेन रूस के बीच युद्ध के तूफान ने दुनिया के लगभग सभी बड़ी और इंडस्ट्रियल देशों को जकड़ लिया है। युद्ध ने तमाम देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर असर दिखाया है। और इस बार ये आपके सीधे रसोई घर में दिख रहा है।
क्या है आरबीआई का अस्त्र रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट?
रेपो दर वह दर है जिस पर केंद्रीय बैंक (भारतीय रिजर्व बैंक) किसी भी तरह की पैसे कमी होने पर बैंकों को पैसे देता है। इस प्रक्रिया में केंद्रीय बैंकों के पास रखा प्रतिभूति (सिक्योरिटीज) खरीदता है। कल भारतीय रिज़र्व बैंक ने रेपो रेट को दशमलव पचास पैसे बढ़ा कर कर संकेत दे दिया की अब बाजार से एक्सेस पैसा निकालना चाहती है ताकि महंगाई काबू में किया जा सके।
दरअसल साल शुरुआत से ही महंगाई की दर आरबीआई के लक्ष्य से ज्यादा थी। आरबीआई ने खुदरा महंगाई दर को 2-6 फीसदी के बीच सीमित रखने का लक्ष्य रखा है. हालिया उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स पर आधारित महंगाई दर 7.79 फीसदी पर पहुंच गई. यह आठ साल में सबसे ऊँचे स्तर पर है और जनवरी, 2022 से ही छह फीसदी से ज्यादा पर है.जिसके लिए आरबीआई ने ये कदम उठाया है।
क्यों बढ़ी महंगाई?
दिल्ली के अर्थशास्त्री और फाइनेंस एक्सपर्ट डॉक्टर शरद कोहली बताते हैं कि भारत में महंगाई दो कारणों से है पहला तो ये कि सप्लाई साइड इफ़ेक्ट जिसे अर्थशास्त्र की भाषा में कॉस्ट पुश कहते हैं, जिसमें सामानों की लागत बढ़ गयी है और महंगाई महसूस हो रही है और दूसरी डिमांड पुल जो हमने ऊपर बात की कि देश के अंदर खरीदने की क्षमता यानी बायिंग कैपेसिटी बढ़ी हुई है। हाल के चुनावों में भाजपा समर्थित सरकारों का एक बार फिर से आना दरअसल इसका प्रमाण है हालाँकि इसका दूसरा पहलु ये भी है कि निचले तबके के लोग महंगाई से प्रभावित हुए है इसमें कोई दो राय नहीं है।
(अर्थशास्त्री और फाइनेंस एक्सपर्ट डॉक्टर शरद कोहली)
क्या है भारत में बढ़ती महंगाई का कारण और क्यों आरबीआई मार्केट से पैसे निकाल रहा है?
दरअसल ये जानना दिलचस्प है कि महंगाई बढ़ने के कई कारणों में एक मुख्य कारण ये है कि कोरोना के काल में सरकार ने भारी खर्च किया था आपको अगर याद हो वित्तमंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण के इकोनॉमिक पैकेजेज, जब लोगों के पास कोरोना काल में पैसे नहीं थे तो सरकार ने पैसे दिए डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिये और इनडायरेक्ट रूप से मार्केट को सहूलियत देते हुए भी जैसे बैंक रेट का काम रहना और टैक्सेज में भी रियायत आदि, अब रोचक बात ये है कि मार्किट का एक बडा तबका ऐसा है जिसकी खर्च क्षमता यानी स्पेंडिंग कैपेसिटी बढ़ी हुई है जिसपर सेंट्रल बैंक लगाम लगाना चाहता है और रेपो रेट में बढ़ोतरी कर रहा है।
हालांकि आतंरिक दृष्टि से देखें तो जहां एक ओर मौसम की मार से फसल प्रभावित हुए हैं और सप्लाई रुक रही है और महंगाई को बल मिल रहा है वही एक्सटर्नल फोर्सेज जैसे विदेशों से आने वाले एडिबल मैटेरियल जिसमें पाम और क्रूड आयल, इलेक्ट्रॉनिक सामान फ़र्टिलाइज़र जैसी चीजों की भी आवक कम हुई है जिसने और भी महंगाई को बल दिया है।
विश्व में स्टैगफ्लेशन की आहट, एक्सपोर्ट पर अंकुश, पर क्या भारत पर पड़ेगा इसका असर?
स्टैगफ्लेशन वो स्थिति होती है जिसमें आर्थिक तरक्की की रफ्तार सुस्त पड़ जाती है,और बेरोजगारी और महंगाई दोनों ऊंचे स्तर पर रहते हैं जिस पर अर्थशास्त्री डॉक्टर शरद कोहली कहते हैं कि दुनिया भर में स्टैगफ़्लैशन का खतरा दिख रहा है IMF ने विश्व अर्थव्यवस्था को स्टैगफ्लेशन का अनुमान लगाया है अमेरिका में लगातार सुस्त होती इकनोमिक ग्रोथ और आगे आने वाले महीनों में अनुमान लगाया जा रहा है कि ये वृद्धि नेगेटिव हो जायेगी और इन्फ्लेशन यानी मुद्रास्फीति और बढ़ेगी जिसे अमेरिकन सरकार ने माना है पर ये स्थिति भारत में नहीं है हमारी ग्रोथ थोड़ी धीमी जरूर हुई है पर ये अब भी विश्व में लीड कर रही है।
मार्केट के जानकारों और अर्थशास्त्रियों की माने तो विश्व के मुकाबले भारत में स्थिति अभी भी काफी अच्छी है और भारतीय अर्थव्यवस्था कॉम्पिटिटिव बनी हुई है।