Loan moratorium : लोन मोरेटोरियम को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार (01 अगस्त) को फिर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बैंक लोन पुनर्गठन के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन वे कोरोना वायरस महामारी के दौरान किस्तों को मोरेटोरियम की योजना के तहत EMI भुगतान टालने के लिए ब्याज पर ब्याज लेकर ईमानदार कर्जदारों को दंडित नहीं कर सकते। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बैंच ने मोरेटोरियम अवधि के दौरान स्थगित किस्तों पर ब्याज लेने के मुद्दे पर सुनवाई के दौरान कहा कि ब्याज पर ब्याज लेना, कर्जदारों के लिए एक दोहरी मार है।
मोरेटोरियम पर याचिकाकर्ता ने कही ये बात
याचिकाकर्ता गजेंद्र शर्मा की वकील राजीव दत्ता ने कहा कि किश्त मोरेटोरियम की अवधि के दौरान भी ब्याज लेने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि आरबीआई यह योजना लाया और हमने सोचा कि हम किस्त मोरेटोरियम अवधि के बाद EMI भुगतान करेंगे, बाद में हमें बताया गया कि चक्रवृद्धि ब्याज लिया जाएगा। यह हमारे लिए और भी मुश्किल होगा, क्योंकि हमें ब्याज पर ब्याज देना पड़ेगा। उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने बैंकों को बहुत अधिक राहत दी हैं और हमें सच में कोई राहत नहीं दी गई। साथ ही उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता तरफ से कोई चूक नहीं हुई है और एक योजना का हिस्सा बनने के लिए ब्याज पर ब्याज लेकर हमें दंडित नहीं किया जा सकता।
किया जाएगा लोन का पुनर्गठन
दत्ता ने दावा किया कि भारतीय रिजर्व बैंक एक रेगुलेटर है और बैंकों का एजेंट नहीं है। तथा कर्जदारों को कोरोना वायरस के दौरान दंडित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अब सरकार कह रही है कि लोन का पुनर्गठन किया जाएगा। आप पुनर्गठन कीजिए, लेकिन ईमानदार कर्जदारों को दंडित न कीजिए। कॉन्फेडरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (क्रेडाई) की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सी ए सुंदरम ने बैंच से कहा कि किश्त मोरेटोरियम को कम से कम 6 महीने के लिए बढ़ाया जाना चाहिए।