सुप्रीम कोर्ट ने लोन मोरेटोरियम मामले में मंगलवार (23 मार्च) को फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ब्याज को पूरी तरह से माफ नहीं किया जा सकता क्योंकि उन्हें (बैंक) खाताधारकों और पेंशनरों जैसे जमाकर्ताओं को ब्याज का भुगतान करना पड़ता है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और आरबीआई की लोन मोरेटोरियम पॉलिसी में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, और 6 महीने के लोन मोरेटोरियम अवधि का विस्तार करने की मांग को ठुकरा दी। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि पूर्ण ब्याज की माफी संभव नहीं है क्योंकि यह जमाकर्ताओं को प्रभावित करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, आरबीआई द्वारा 31 अगस्त 2020 से आगे लोन किस्त मोरेटोरियम अवधि का विस्तार नहीं करने के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि यह नीतिगत फैसला है। लोन किस्त मोरेटोरियम अवधि के दौरान उधार लेने वालों से कोई चक्रवृद्धि, दंडित ब्याज नहीं लिया जाएगा, पहले से वसूल की गई राशि को वापस या समायोजित किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह केन्द्र के राजकोषीय नीतिगत फैसलों की न्यायिक समीक्षा तब तक नहीं कर सकता, जब तक कि यह गलत या मनमाने ढंग से ना बनाई गई हो।
गौर हो कि रियल एस्टेट और बिजली सेक्टर समेत विभिन्न सेक्टर्स के व्यावसायिक संघों ने कोविड-19 महामारी के मद्देनजर लोन मोरेटोरियम और अन्य राहत का विस्तार किए जाने का आवेदन किया था। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने पिछले साल 17 दिसंबर को सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
पिछली सुनवाई में केंद्र ने कोर्ट को बताया कि कोविड-19 महामारी के मद्देनजर रिजर्व बैंक द्वारा 6 महीने के लिए लोन की किस्तों के भुगतान स्थगित रखने जाने की छूट की योजना के तहत सभी वर्गो को अगर ब्याज माफी का लाभ दिया जाता है तो इस मद पर 6 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा धनराशि छोड़नी पड़ सकती है।
केंद्र ने कहा कि अगर बैकों को यह बोझ वहन करना होगा तो उन्हें अपनी कुल शुद्ध परिसंपत्ति का एक बड़ा हिस्सा गंवाना पड़ेगा, जिससे अधिकांश कर्ज देने वाले बैंक संस्थान अलाभकारी स्थिति में पहुंच जाएंगे ओर इससे उनके अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो जाएगा।
जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एम आर शाह की पीठ से केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इसी वजह से ब्याज माफी के बारे में सोचा भी नहीं गया और सिर्फ किस्त स्थगित करने का प्रावधान किया गया था। शीर्ष अदालत कोविड-19 महामारी के मद्देनजर रिअल एस्टेट और ऊर्जा सेक्टर सहित विभिन्न संस्थाओं द्वारा राहत के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई् कर रही है।
कोर्ट ने गत वर्ष 27 नवंबर को सरकार को निर्देश दिया कि वह कोरोना वायरस महामारी के असर को देखते हुए आठ अलग-अलग कैटेगरी के दो करोड़ रुपए तक के सभी लोन पर वसूली मोरेटोरियम की अवधि का ब्याज छोड़ने के उसके फैसले को लागू करने के हर जरूरी उपाय सुनिश्चित कराए। रिजर्व बैंक द्वारा वसूली मोरेटोरियम की घोषित अवधि 03 मार्च से 31 अगस्त 2020 तक 6 महीने के लिए थी।