- कोविड-19 महामारी के कारणजीएसटी संग्रह पर बहुत बुरा असर पड़ा है
- जीएसटी संग्रह में आने वाली कमी की भरपाई भारत की संचित निधि से नहीं की जा सकती
- क्षतिपूर्ति के रूप में राज्यों को 3 लाख करोड़ रुपए की जरूरत होगी
नई दिल्ली : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में 41वीं जीएसटी काउंसिल की बैठक हुई। जीएसटी काउंसिल की बैठक के बाद राजस्व सचिव ने कहा कि कोविड-19 महामारी के कारण माल एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह पर बहुत बुरा असर पड़ा है। राजस्व सचिव ने कहा कि महान्यायवादी ने यह राय दी है कि जीएसटी संग्रह में आने वाली कमी की भरपाई भारत की संचित निधि से नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2020-21 में जीएसटी संग्रह में 2.35 लाख करोड़ रुपए की कमी रही है, इसमें से केवल 97,000 करोड़ रुपए की कमी का कारण जीएसटी क्रियान्वयन है। शेष कमी का कारण महामारी है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि पांच घंटे चली जीएसटी परिषद की बैठक में राज्यों को क्षतिपूर्ति के दो विकल्पों पर चर्चा की गई। वित्त मंत्री ने कहा कि जिन विकल्पों पर चर्चा हुई, वे केवल चालू वित्त वर्ष के लिये हैं, जीएसटी परिषद अगले साल अप्रैल में एक बार फिर मामले पर विचार करेगी। वित्त मंत्री ने कोरोना वायरस महामारी का जिक्र करते हुए कहा कि इस प्राकृतिक आपदा से चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में गिरावट आ सकती है। राजस्व सचिव ने कहा कि जीएसटी क्षतिपूर्ति मद में अप्रैल-जुलाई के लिए राज्यों का बकाया 1.5 लाख करोड़ रुपए है।
केंद्र के आकलन के अनुसार चालू वित्त वर्ष में क्षतिपूर्ति के रूप में राज्यों को 3 लाख करोड़ रुपए की जरूरत होगी। इसमें से 65,000 करोड़ रुपए की भरपाई जीएसटी के अंतर्गत लगाए गए सेस से प्राप्त राशि से होगी। इसीलिए कुल कमी 2.35 लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान है।
राजस्व सचिव अजय भूषण पांडे ने कहा कि इसमें से 97,000 करोड़ रुपए जीएसटी की कमी की वजह से जबकि शेष का कारण कोविड-19 का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव है। पांडे ने कहा कि रिजर्व बैंक से विचार-विमर्श के बाद राज्यों को विशेष विकल्प उपलब्ध कराये जा सकते हैं। इसके तहत वाजिब ब्याज दर 97,000 करोड़ रुपए उपलब्ध कराए जा सकते हैं। राशि का भुगतान पांच साल बाद (जीएसटी लागू होने के) 2022 के अंत में सेस संग्रह से किया जा सकता है।
राज्यों के पास दूसरा विकल्प यह है कि वे क्षतिपूर्ति की पूरी राशि 2.35 लाख करोड़ रुपए विशेष उपाय के तहत कर्ज लें। पांडे ने कहा कि राज्यों को इन प्रस्तावों पर विचार के लिए 7 दिन का समय दिया गया है।