- चेतेश्वर पुजारा ने राहुल द्रविड़ की जमकर तारीफ की
- पुजारा ने बताया कि द्रविड़ ने उन्हें क्रिकेट से स्विच ऑफ का महत्व समझाया
- पुजारा ने कहा कि वो शब्दों में बयां नहीं कर सकते कि द्रविड़ का उनकी जिंदगी पर क्या प्रभाव रहा
नई दिल्ली: भारतीय टेस्ट टीम के प्रमुख बल्लेबाज चेतेश्वर पुजारा शब्दों में बयां नहीं कर सकते कि राहुल द्रविड़ का उनकी जिंदगी पर क्या प्रभाव रहा है, लेकिन वह उनके हमेशा आभारी रहेंगे क्योंकि द्रविड़ ने उन्हें क्रिकेट से स्विच ऑफ होने का महत्व भी बताया है। द्रविड़ को अपने खेलने वाले समय में 'द वॉल' के नाम से जाना जाता था। पुजारा की अधिकांश द्रविड़ से तुलना होती रही है। सौराष्ट्र के बल्लेबाज ने कहा कि वह द्रविड़ के आभारी हैं, जिन्होंने उन्हें निजी और पेशेवर जिंदगी अलग-अलग रखने का महत्व समझाया।
क्रिकइंफो से बातचीत करते हुए पुजारा ने कहा, 'द्रविड़ ने मुझे क्रिकेट से स्विच ऑफ होने के महत्व को समझने में मदद की। मेरा पहले यही विचार था कि पूरे समय क्रिकेट के बारे में सोचते रहता था, लेकिन जब उनसे बात हुई तो उन्होंने इस पर काफी स्पष्टता दिखाई और मुझे भरोसा हुआ कि क्या करने की जरूरत है। मैंने काउंटी क्रिकेट में भी देखा कि कैसे वहां लोग अपनी निजी और पेशेवर जिंदगी को अलग-अलग रखते हैं। मैं इस सलाह की काफी कद्र करता हूं। कई लोग मुझे काफी फोकस्ड मानते हैं। जी हां, मैं फोकस्ड हूं, लेकिन मुझे पता है कि कब स्विच ऑफ होना है। क्रिकेट के अलावा भी जिंदगी है।'
मेरे प्रेरणास्रोत हैं राहुल द्रविड़: पुजारा
भारत के पूर्व दिग्गज बल्लेबाज राहुल द्रविड़ ने 164 टेस्ट में 13,288 रन और 344 वनडे में 10,889 रन बनाए। उन्होंने 79 वनडे में भारत की कप्तानी की, जिसमें से 42 मुकाबले जीते। इसमें लक्ष्य का पीछा करते हुए लगातार 14 मैचों का रिकॉर्ड शामिल है। पुजारा ने कहा, 'मैं एक लाइन में बता नहीं सकता कि राहुल भाई मेरे लिए कितने मायने रखते हैं। वह हमेशा से मेरे प्रेरणास्रोत रहे हैं और हमेशा रहेंगे।'
पुजारा को ऐसे हुआ जिम्मेदारी का एहसास
पुजारा की मानसिकता और उनकी बल्लेबाजी तकनीक की तुलना अधिकांश द्रविड़ से की जाती है, लेकिन सौराष्ट्र के बल्लेबाज ने कहा कि उन्होंने कभी भी पूर्व भारतीय कप्तान की नकल करने की कोशिश नहीं की। पुजारा ने कहा, 'हमारे खेल में समानता है, लेकिन यह इसलिए नहीं क्योंकि मेरा उनकी तरफ काफी झुकाव है। यह सौराष्ट्र के लिए मेरे अनुभव के कारण आया, जहां मैंने सीखा कि सिर्फ शतक बनाना ही पर्याप्त नहीं है। आपको अपनी टीम को साथ लेकर चलना होगा। इस तरह मुझे जिम्मेदारी का एहसास हुआ। टीम को विशाल स्कोर तक पहुंचाने के लिए मुझे अपने विकेट का महत्व समझ आया। मैंने सौराष्ट्र के अपने जूनियर क्रिकेट के दिनों में यह चीज सीखी थी, जो घरेलू क्रिकेट में कमजोर टीम थी।'