- साल 2000 में सचिन तेंदुलकर के कप्तानी से इस्तीफा देने के बाद सौरव गांगुली के हाथ में आई थी टीम इंडिया की कमान
- उन्हें उपकप्तान बनाने के लिए भी चयन समिति को करनी पड़ी थी कड़ी मशक्कत
- तत्कालीन कोच ने की थी ज्यादा कोल्ड्रिंक पीने की शिकायत
नई दिल्ली: साल 2000 में सौरव गांगुली ने टीम इंडिया की कमान उस मुश्किल वक्त में संभाली थी जब भारतीय क्रिकेट मैच फिक्सिंग के जाल में उलझा हुआ था। सचिन तेंदुलकर के कप्तानी से इस्तीफा देने के बाद गांगुली ने टीम की कमान संभाली। टीम इंडिया के कप्तान के रूप में काम करते हुए प्रिंस ऑफ कोलकाता के नाम से प्रसिद्ध गांगुली ने भारतीय क्रिकेट की चाल, चरित्र और चेहरा हमेशा के लिए बदल दिया।
गांगुली इस जिम्मेदारी को संभालते हुए भारत के सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ कप्तान बने। उनकी कप्तानी में भारत ने श्रीलंका में आयोजित चैंपिंयस ट्रॉफी का खिताब अपने नाम किया और 2003 में दक्षिण अफ्रीका में आयोजित विश्वकप के फाइनल में पहुंची। गांगुली की कप्तानी वाली टीम इंडिया विरोधी टीमों पर दबाव बनाने में सफल रही और इस दौरान कई यादगार जीत दर्ज की।
गांगुली के कप्तान बनने की राह आसान नहीं थी। साल 1992 में ऑस्ट्रेलिया में वेस्टइंडीज के खिलाफ डेब्यू करने के 4 साल बाद उनकी टीम इंडिया में वापसी हुई। उन्होंने लॉर्ड्स में अपने डेब्यू टेस्ट में शतक जड़ा और इसके बाद भारत के सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज के रूप में अपना नाम दर्ज कराया।
तत्कालीन कोच नहीं चाहते थे गांगुली बनें उपकप्तान
भारतीय क्रिकेट एसोसिएशन प्रमुख और पूर्व चयनकर्ता अशोक मल्होत्रा ने दावा किया है सौरव गांगुली के न केवल कप्तान बल्कि उपकप्तान बनने का भी विरोध हुआ था। भारतीय टीम के पूर्व कोच नहीं चाहते थे कि गांगुली सचिन तेंदुलकर के डिप्टी बनें। टीम में लीडरशिप रोल में लाने के लिए प्रयास करने पड़े थे।
बोर्ड अध्यक्ष ने नहीं बनने दिया उपकप्तान
मल्होत्रा ने कहा, मुझे अच्छी तरह याद है कि सौरव गांगुली को बतौर उप-कप्तान चुनना मुश्किल काम था। हमने कोलकाता में उन्हें उपकप्तान चुना था और उस दौरान कोच ने उनके बारे में कहा था कि वो बहुत कोक पीते हैं। वो एक-एक रन लेते हैं दो नहीं लेते। इस चर्चा के दौरान मैंने कहा था कि थम्सअप उन्हें उपकप्तान बनने के लिए अयोग्य नहीं बनाता है। काफी चर्चा के बाद सौरव गांगुली के पक्ष में 3-2 से निर्णय हुआ था।
उन्होंने आगे कहा, लेकिन उसके बाद (मैं अध्यक्ष का नाम नहीं लूंगा) वो चयन के बीच में कूद पड़े। ऐसा बीसीसीआई के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था। उन्होंने और अध्यक्ष ने हमसे कहा, महानुभव आइए इसपर फिर से विचार करें। हममें से दो लोग अपने मत पर डटे रहे लेकिन एक ने कहा कि अध्यक्ष ने कहा है तो हमें उनके निर्णय के साथ जाना चाहिए। इसलिए हम तब उन्हें उपकप्तान नहीं बना सके लेकिन बाद में ऐसा हुआ। आज वो एक महान कप्तान हैं लेकिन उन्हें कप्तान और उपकप्तान बनाने के लिए प्रयास करने पड़े थे।'
अनिल कुंबले और अजय जडेजा थे कप्तानी की दौड़ में सबसे आगे
मल्होत्रा ने सौरव गांगुली के कप्तान बनने की कहानी सुनाते हुए कहा कि सचिन तेंदुलकर के उत्तराधिकारी बनने की दौड़ में अजय जडेजा और अनिल कुंबले सबसे आगे थे। उन्होंने कहा, हममे से किसी को भी नहीं पता था कि सौरव गांगुली कप्तान बनेंगे क्योंकि सचिन तेंदुलकर उस वक्त कप्तान थे। लेकिन जब उन्होंने इस्तीफा दे दिया तो हमें लोगों को उन्हें कप्तान बनाने के लिए सबको मनाना पड़ा क्योंकि अजय जडेजा और अनिल कुंबले कतार में थे। मुझे इसके लिए अतिरिक्त प्रयास करने पड़े।'