- भारतीय क्रिकेट टीम के महान पूर्व कप्तान सौरव गांगुली का आज 41वां जन्मदिन
- पूर्व कप्तान सौरव गांगुली जिंदगी में बल्लेबाजी को छोड़कर सब कुछ दाएं हाथ से करते हैं
- आखिर दादा कैसे बन गए एक बाएं हाथ के शानदार बल्लेबाज
Sourav Ganguly Birthday: मौजूदा हफ्ता भारत के दिग्गज खिलाड़ियों के नाम है। ये वही कुछ दिन हैं जब कई पूर्व भारतीय कप्तानों के जन्मदिन मनाए जाते हैं। जहां 7 जुलाई को दुनिया ने पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का जन्मदिन मनाया, वहीं आज (8 जुलाई) देश पूर्व कप्तान सौरव गांगुली का जन्मदिन मना रहा है। जबकि इसके एक दिन बाद 10 जुलाई को पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर का जन्मदिन होगा। आइए फिलहाल हम आज के दिन जन्मे पूर्व कप्तान सौरव गांगुली के बारे में एक खास बात बताते हैं आपको।
दादा और 'प्रिंस ऑफ कोलकाता' के नाम से मशहूर पूर्व भारतीय कप्तान, दिग्गज बल्लेबाज और फिलहाल बीसीसीआई अध्यक्ष के पद पर बैठे सौरव गांगुली आज अपना 49वां जन्मदिन मना रहे हैं। दादा उन भारतीय कप्तानों में रहे जिन्होंने मैदान पर तमाम सफलताओं की ऊंचाइयों को छुआ, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने अपने अंदाज के जरिए तमाम किस्से भी सामने रखे जिन्हें आज भी याद किया जाता है।
गांगुली दाएं हाथ के खिलाड़ी से कैसे बने बाएं हाथ के बल्लेबाज
सौरव गांगुली जब फील्डिंग करते हैं तो दाएं हाथ से थ्रो करते हैं, गेंदबाजी करते हैं तो दाएं हाथ से करते हैं, यही नहीं, वो लिखते हैं, तो वो भी दाएं हाथ से ही करते हैं। अब आप भी कहेंगे कि ऐसे तो कुछ अन्य क्रिकेटर्स भी रहे हैं, लेकिन सौरव गांगुली के बाएं हाथ के बल्लेबाज बनने के पीछे की कहानी कुछ अलग थी। उनके भाई स्नेहाशीश गांगुली पहले से बंगाल के जाने-माने क्रिकेटर थे। वो सौरव के क्रिकेटर बनने के सपने को समझते थे।
जब सौरव 10वीं कक्षा में थे तो उनका दाखिला एक क्रिकेट अकादमी में करा दिया गया। सौरव पूर्ण रूप से एक दाएं हाथ के खिलाड़ी थे, लेकिन वो बाएं हाथ से इसलिए बल्लेबाजी करने व सीखने लगे ताकि अपने भाई के क्रिकेट सामान का इस्तेमाल कर सकें। स्नेहाशीश एक बाएं हाथ के बल्लेबाज थे और देखते-देखते उनका सामान इस्तेमाल करते हुए सौरव भी बाएं हाथ के बल्लेबाज बन गए।
सोशल स्टेटस के चलते 12वां खिलाड़ी बनने से मना कर दिया था
जूनियर क्रिकेट के दिनों से ही सौरव गांगुली अपने स्टेटस को लेकर काफी संवेदनशील थे। वो कोलकाता के एक अमीर व प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखते थे। बताया जाता है कि जब अंडर-15 क्रिकेट में शतक जड़ने के बाद सेंट जेवियर स्कूल में उन्हें जगह मिली लेकिन कई खिलाड़ियों ने उनके खराब व्यवहार की शिकायत की। दरअसल, एक जूनियर टूर के दौरान उनको जब 12वें खिलाड़ी की जिम्मेदारी सौंपी गई तो उन्होंने साफ-साफ मना कर दिया।
उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि 12वें खिलाड़ी के रूप में उनको खिलाड़ियों के लिए पानी का इंतजाम करना, खिलाड़ियों के सामान को व्यवस्थित करना और संदेश पहुंचाने जैसे काम करने होते लेकिन सौरव इन सब काम को अपने स्टेटस से नीचे मानते थे। खैर बाद में उनके खेल को देखते हुए 1989 में उन्हें बंगाल रणजी टीम में जगह मिल गई, ये वही साल था जब उनके बड़े भाई स्नेहाशीश को टीम से बाहर कर दिया गया था।